(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग तथा निराला सृजनपीठ, साहित्य अकादमी, म.प्र. संस्कृति परिषद, म. प्र. शासन, संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय “प्रेरणा” युवा रचनाकरों की सृजनात्मक कार्यशाला का आयोजन किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. विकास दवे , निदेशक , साहित्य अकादमी म.प्र. विशिष्ट अतिथि डॉ. श्रीराम परिहार, निदेशक, निराला सृजनपीठ, साहित्य अकादमी म. प्र. शासन थे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा की गई।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य में शब्द का अर्थ संदर्भ के सापेक्ष होता है इसलिए प्रत्येक शब्द सन्दर्भ के सापेक्ष में अपना अर्थ गढ़ लेता है और साहित्यकार वही है जो उसे पढ़ लेता है। इस तरह शब्द की यात्रा तय होती है। साहित्यकार वही है जो अन्य के दुःख, पीड़ा को समझ उसे शब्द देता है संकेत देता है और यह संकेत पीढ़ियों तक चलता है। हम उन साहित्यकारों को नमन करें जो पीढ़ियों के लिए संस्कार की धारा बहाते हैं।
मुख्य अतिथि डॉ. विकास दवे ने प्रेरणा के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज तकनीकी युग में युवाओं को दिग्भ्रमित होने से बचाने की आवश्यकता है। देश की संस्कृति, ज्ञान परम्परा के विरुद्ध जो कुछ भ्रम व नकारात्मकता है उसके यथार्थ से उसे परिचित कराने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि समाज एवं राष्ट्र को अपनी आँखों के सामने रखो आपको आपना लक्ष्य मिल जायेगा।
विशिष्ट अतिथि डॉ. श्रीराम परिहार, निदेशक, निराला सृजनपीठ , साहित्य अकादमी, म.प्र. ने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम राष्ट्र बोध को समझे। उन्होंने कहा कि आप यहाँ रिते -रिते आए तो भरे भरे जाने चाहिए। उन्होंने प्रतिभागियों को भाषा बोध के प्रति, पर्यावरण के प्रति, अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक होने सचेत होने को कहा।
प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. रीटा सिंह जी, वरिष्ठ कवियत्री ने ‘काव्य शिल्प : रचना एवं प्रयोग’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कविता संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति है। कविता में सरलता और सुगमता होनी चाहिए ताकि आप जो कहना चाहते हैं वह पाठकों तक पहुंचे। इस अवसर पर उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र “साहित्य पत्रकारिता संभावनाएं एवं चुनौतियों” विषय पर अपने व्याख्यान में डॉ. राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका,इंदौर ने कहा कि पत्रकारिता में तत्कालीनता की होड़ छोड़ कर तथ्यात्मकता की ओर विशेष ध्यान दें। आज पत्रकारिता में मूल्यनिष्ठा की आवश्यकता है।
तृतीय तकनीकी सत्र में डॉ.राम परिहार, निदेशक , निराला सृजनपीठ ने “ललित निबंध: कोमल मन का पल्लव” विषय पर अपने विचार रखे। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि शब्द नाभि से उठता है। परा, पश्यंती, मध्यमा व वैखरी वाणी के चार प्रकार हैं। निबंध लेखन के विचार रीढ़ की हड्डी के सामान होता है। उन्होंने ललित निबंध के स्वरुप पर प्रकाश डालते हुए भाषा बोध पर भी अपने विचार रखे।
चतुर्थ तकनीकी सत्र में बाल साहित्य एवं बाल पत्रकारिता पर डॉ. विकास दवे , निदेशक, साहित्य अकादमी, म. प्र. ने अपने वक्तव्य में बाल साहित्य की सृजन प्रक्रिया और स्वरुप को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य लिखना इतना आसान नहीं है। यह लिखने के लिए आपको बच्चों के मनोविज्ञान को समझना होता है। उन्हीं की तरह सोचना होता है। बाल साहित्य लिखना परकाया प्रवेश करने जैसा होता है। बच्चों के लिए लिखना बच्चों जैसा होना।
समापन सत्र में प्रो. खेमसिंह डहेरिया, कुलपति अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल ने कहा कि युवाओं में वायु जैसी शक्ति व उर्जा होती है। वायु संहारक का कार्य भी करती है और शीतलता प्रदान कर जीवन देने का काम भी करती है। हमें युवाओं की शक्ति को सही दिशा में ले जाने की आवश्यकता है। अखंड भारत की कल्पना को फिर से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में स्वागत भाषण कार्यक्रम की संयोजक एवं अधीष्ठाता पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग प्रो. मनीषा शर्मा ने दिया, आभार ज्ञापन प्रो. राघवेन्द्र मिश्र एवं डॉ. कृष्णमूर्ति बी. बाय. ने दिया, कार्यक्रम का संचालन सुश्री अभिलाषा एलिस तिर्की एवं डॉ. वसु चौधरी ने किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न नगरों से आये 25 प्रतिभागियों सहित पत्रकारिता एवं जनसंचार, हिंदी विभाग और राजनीति शास्त्र के 50 प्रतिभागियों ने प्रतिभागिता की।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य में शब्द का अर्थ संदर्भ के सापेक्ष होता है इसलिए प्रत्येक शब्द सन्दर्भ के सापेक्ष में अपना अर्थ गढ़ लेता है और साहित्यकार वही है जो उसे पढ़ लेता है। इस तरह शब्द की यात्रा तय होती है। साहित्यकार वही है जो अन्य के दुःख, पीड़ा को समझ उसे शब्द देता है संकेत देता है और यह संकेत पीढ़ियों तक चलता है। हम उन साहित्यकारों को नमन करें जो पीढ़ियों के लिए संस्कार की धारा बहाते हैं।
मुख्य अतिथि डॉ. विकास दवे ने प्रेरणा के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज तकनीकी युग में युवाओं को दिग्भ्रमित होने से बचाने की आवश्यकता है। देश की संस्कृति, ज्ञान परम्परा के विरुद्ध जो कुछ भ्रम व नकारात्मकता है उसके यथार्थ से उसे परिचित कराने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि समाज एवं राष्ट्र को अपनी आँखों के सामने रखो आपको आपना लक्ष्य मिल जायेगा।
विशिष्ट अतिथि डॉ. श्रीराम परिहार, निदेशक, निराला सृजनपीठ , साहित्य अकादमी, म.प्र. ने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम राष्ट्र बोध को समझे। उन्होंने कहा कि आप यहाँ रिते -रिते आए तो भरे भरे जाने चाहिए। उन्होंने प्रतिभागियों को भाषा बोध के प्रति, पर्यावरण के प्रति, अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक होने सचेत होने को कहा।
प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. रीटा सिंह जी, वरिष्ठ कवियत्री ने ‘काव्य शिल्प : रचना एवं प्रयोग’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कविता संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति है। कविता में सरलता और सुगमता होनी चाहिए ताकि आप जो कहना चाहते हैं वह पाठकों तक पहुंचे। इस अवसर पर उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र “साहित्य पत्रकारिता संभावनाएं एवं चुनौतियों” विषय पर अपने व्याख्यान में डॉ. राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका,इंदौर ने कहा कि पत्रकारिता में तत्कालीनता की होड़ छोड़ कर तथ्यात्मकता की ओर विशेष ध्यान दें। आज पत्रकारिता में मूल्यनिष्ठा की आवश्यकता है।
तृतीय तकनीकी सत्र में डॉ.राम परिहार, निदेशक , निराला सृजनपीठ ने “ललित निबंध: कोमल मन का पल्लव” विषय पर अपने विचार रखे। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि शब्द नाभि से उठता है। परा, पश्यंती, मध्यमा व वैखरी वाणी के चार प्रकार हैं। निबंध लेखन के विचार रीढ़ की हड्डी के सामान होता है। उन्होंने ललित निबंध के स्वरुप पर प्रकाश डालते हुए भाषा बोध पर भी अपने विचार रखे।
चतुर्थ तकनीकी सत्र में बाल साहित्य एवं बाल पत्रकारिता पर डॉ. विकास दवे , निदेशक, साहित्य अकादमी, म. प्र. ने अपने वक्तव्य में बाल साहित्य की सृजन प्रक्रिया और स्वरुप को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य लिखना इतना आसान नहीं है। यह लिखने के लिए आपको बच्चों के मनोविज्ञान को समझना होता है। उन्हीं की तरह सोचना होता है। बाल साहित्य लिखना परकाया प्रवेश करने जैसा होता है। बच्चों के लिए लिखना बच्चों जैसा होना।
समापन सत्र में प्रो. खेमसिंह डहेरिया, कुलपति अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल ने कहा कि युवाओं में वायु जैसी शक्ति व उर्जा होती है। वायु संहारक का कार्य भी करती है और शीतलता प्रदान कर जीवन देने का काम भी करती है। हमें युवाओं की शक्ति को सही दिशा में ले जाने की आवश्यकता है। अखंड भारत की कल्पना को फिर से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में स्वागत भाषण कार्यक्रम की संयोजक एवं अधीष्ठाता पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग प्रो. मनीषा शर्मा ने दिया, आभार ज्ञापन प्रो. राघवेन्द्र मिश्र एवं डॉ. कृष्णमूर्ति बी. बाय. ने दिया, कार्यक्रम का संचालन सुश्री अभिलाषा एलिस तिर्की एवं डॉ. वसु चौधरी ने किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न नगरों से आये 25 प्रतिभागियों सहित पत्रकारिता एवं जनसंचार, हिंदी विभाग और राजनीति शास्त्र के 50 प्रतिभागियों ने प्रतिभागिता की।
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