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संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर प्रतिरोध दिवस मनाते हुए राष्ट्रपति के नाम कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंंचलधारा) अखिल भारतीय किसान सभा द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रव्यापी आह्वान के अवसर पर प्रतिरोध दिवस मनाते हुए राष्ट्रपति महोदय के नाम अपर कलेक्टर अनूपपुर के माध्यम से ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। 
         अखिल भारतीय किसान सभा के प्रांतीय अध्यक्ष जनक राठौर अनूपपुर जिले के अध्यक्ष मोहन राठौर, संहित अन्य किसान व महिला किसानां द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन के माध्यम से मांग की गई की "संयुक्त किसान मोर्चा" के बैनर तले देश के किसानों ने केंद्र सरकार की किसान विरोधी कानून को रद्द करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी हासिल करने और अन्य किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ एक अभूतपूर्व आंदोलन चलाया। इस आंदोलन के चलते आपके हस्ताक्षर से तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द किया गया। 
               उसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने 21 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बकाया छह मुद्दों की तरफ उनका ध्यान आकृष्ट किया। उसके जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव श्री संजय अग्रवाल ने 9 दिसंबर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा के नाम एक पत्र (सचिव/ऐएफडब्लू/2021/मिस/1) लिखा जिसमें उन्होंने कुछ मुद्दों पर सरकार की ओर से आश्वासन दिए और आंदोलन को वापस लेने का आग्रह किया। इस चिट्ठी पर भरोसा कर संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली के बॉर्डर पर लगे मोर्चा और तमाम धरना प्रदर्शनों को 11 दिसंबर से उठा लेने का निर्णय किया।
                 महामहिम, आपको यह बताते हुए हमें बेहद दुख और रोष हो रहा है कि एक बार फिर देश के किसानों के साथ धोखा हुआ है। भारत सरकार के 9 दिसंबर के जिस पत्र के आधार पर हमने मोर्चे उठाने का फैसला किया था, सरकार ने उनमें से कोई वादा पूरा नहीं किया है। इसलिए पूरे देश के किसानों ने आज 31 जनवरी 2022 को विश्वासघात दिवस मनाने का फैसला लिया है।
सरकार की कथनी और करनी का अंतर आप स्वयं देख सकते हैं-चिट्ठी में वादा था "किसान आन्दोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमें तत्काल प्रभाव से वापिस लिये जायेंगे। केस वापिस लेने की सहमति उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार द्वारा प्रदान की गयी है।... भारत सरकार से सम्बन्धित विभाग और एजेंसियों तथा दिल्ली सहित सभी संघशासित क्षेत्रों में आन्दोलनकारियों एवं समर्थकों पर दर्ज किये गये आन्दोलन सम्बन्धित सभी केस भी तत्काल प्रभाव से वापिस लेने की सहमति है।" 
        हकीकत यह है कि केंद्र सरकार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल सरकार की तरफ से आंदोलन के दौरान बनाए गए केस वापिस लेने के आश्वासन पर नाममात्र की भी कोई कार्यवाई नहीं हुई है। किसानों को लगातार इन केसों में समन आ रहे हैं। सिर्फ हरियाणा सरकार ने कुछ कागजी कार्यवाई की है और केस वापिस लेने के कुछ आदेश जारी किए हैं। लेकिन अब भी यह काम अधूरा है, किसानों को समन आ रहे हैं।
             सरकार का वादा था: "भारत सरकार अन्य राज्यों से भी अपील करेगी कि इस किसान आन्दोलन से सम्बन्धित दर्ज मुकदमों को वापिस लेने की कार्यवाही करेगी।" 
        हकीकत है कि केंद्र सरकार की तरफ से चिट्ठी भी नहीं गई है।
           सरकार का वादा था: "आन्दोलन के दौरान शहीद परिवारों को हरियाणा, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी सैद्धांतिक सहमति दी है।"
हकीकत है कि शहीद किसान परिवारों को मुआवजा देने पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई कार्यवाही शुरू नहीं की है। हरियाणा सरकार की तरफ से मुआवजे की राशि और स्वरूप के बारे में भी कोई निर्णय घोषित नहीं हुआ है।
            सरकार का वादा था एमएसपी पर माननीय प्रधानमंत्री जी ने स्वयं और बाद में माननीय कृषि मंत्री जी ने एक कमिटी बनाने की घोषणा की है।... कमिटी का एक मैंडेट यह होगा कि देश के किसानों को एमएसपी मिलना कैसे सुनिश्चित किया जाय।" 
          हकीकत यह है कि इस मुद्दे पर सरकार ने न तो कमेटी के गठन की घोषणा की है, और न ही कमेटी के स्वरूप और उसकी मैंडेट के बारे में कोई जानकारी दी है।
            लखीमपुर खीरी हत्याकांड में एसआईटी की रिपोर्ट में षड्यंत्र की बात स्वीकार करने के बावजूद भी इस कांड के प्रमुख षड्यंत्रकारी अजय मिश्र टेनी का केंद्रीय मंत्रिमंडल में बना रहना हर संवैधानिक और राजनैतिक मर्यादा के खिलाफ है। यह तो किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का काम है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश पुलिस इस घटना में नामजद किसानों को केसों में फंसाने और गिरफ्तार करने का काम लगातार कर रही है।
          यही नहीं, मोर्चा उठाने के बाद से केंद्र सरकार अपने किसान विरोधी एजेंडा पर और आगे बढ़ती जा रही है। ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते से डेयरी किसान के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। जैव विविधता कानून 2002 में संशोधन से किसान की जैविक संपदा को खतरा है। एफएसएसएआई  के नए नियम बनाकर खाद्य पदार्थों को पिछले दरवाजे से घुसाने की कोशिश हो रही है।एफएसएसएआई के नए गुणवत्ता मानक से फसल की खरीद में कटौती की कोशिश की जा रही है।
           महामहिम, आप इस देश के मुखिया हैं। आपका संवैधानिक दायित्व है कि आप देश के सबसे बड़े वर्ग अन्नदाता के हितों की रक्षा करें और सरकार को इस धोखाधड़ी के विरुद्ध आगाह करें। आप जानते हैं कि किसानों के खून पसीने की वजह से आज देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हुआ है। किसानों के अथक प्रयास से ही आर्थिक मंदी और लॉकडाउन के बावजूद भी देश का कृषि उत्पाद लगातार बढ़ा है। किसानों से खिलवाड़ करना पूरे देश के लिए आत्मघाती हो सकता है।
            इस पत्र के माध्यम से देश के अन्नदाता देश के मुखिया से अनुरोध करते हैं कि सरकार उनके विश्वास को न तोड़े। सत्ता किसान के धैर्य की परीक्षा लेना बंद करे। आप केंद्र सरकार को उसके लिखित वादों की याद दिलाएं और इन्हे जल्द से जल्द पूरा करवाएं। यदि सरकार अपने लिखित आश्वासन से मुकर जाती है तो किसानों के पास आंदोलन को दोबारा शुरू करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचेगा।

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