भारतीय शोध पद्धतियां
लोक परिचायक है- कुलपति
(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)अनूपपुर (अंंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित "समाज विज्ञान की भारतीय शोध पद्धति" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा अपने उद्बोधन में कहा गया कि भारतीय समाज के तीन अंग हैं - सभ्यता, संस्कृति और संस्कार इन तीनों के एक होने से समाज बनता है और समाज ही संसार का निर्माण करता है।भारतीय समाज आरंभ काल से ही शोध पर आधारित है।इसलिए भारतीय शोध पद्धतियां सर्वश्रेष्ठ हैं।हमारे वेद और पुराणों में श्लोकों का निर्माण शोध के पश्चात होता था, इसलिए ये श्लोक आज जीवन के हर क्षेत्र में सूत्र की तरह कार्य करते हैं।भारतीयता निरन्तरता का परिचायक है यही कारण है, कि भारतीय शोध पद्धतियां लोक परिचायक हैं।भारतीय शोध पद्धति में कण से लेकर क्षण तक की व्याख्या की गई है अर्थात पदार्थ और समय दोनों को महत्वपूर्ण माना गया है क्षण का त्याग अधूरी शिक्षा और कण का त्याग अधूरी अर्थव्यवस्था का प्रतीक है। इसी तरह राष्ट्र और राष्ट्र भूमि की व्याख्या भी भारतीय शोध पद्धति में की गई है वर्तमान में क्रियान्वित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय शोध पद्धति के प्रयोग पर बल देती है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथ प्रो. कृष्ण भट्ट ( कुलाधिपति - केंद्रीय विश्वविद्यालय उड़ीसा) ने अपने उद्बोधन में कहां की हमें विदेशी चिंतन के प्रभाव से बाहर आना होगा। पुरानी शिक्षक पद्धतियों को छोड़ना होगा और भारतीय शोध पद्धति एवं शिक्षा पद्धतियों को अपनाना होगा। जिसकी व्याख्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में की गई है। स्वामी विवेकानंद के चिंतन को न सिर्फ पढ़ना होगा बल्कि उसे अपने जीवन में आत्मसात करना होगा तभी हम पाश्चात्य संस्कृति और चिंतन से मुक्त हो सकेंगे। क्योंकि इंद्रियों से आगे मन है और मन से आगे आत्मा है। यदि हमें अपनी आत्मा को पहचानना है तो भारतीय मनीषियों द्वारा बताई गई शिक्षा को ग्रहण करना होगा।
बीज वक्ता के रूप में प्रो. सुषमा यादव (यू जी सी सदस्य एवं पूर्व कुलपति बीपीएस महिला विश्वविद्यालय हरियाणा) ने अपनी बात कुछ उदाहरणों के माध्यम से रखी। उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे मनीषियों को केंद्रित करते हुए भारतीय शोध पद्धतियां को रेखांकित किया। भगवान राम और लक्ष्मण के संवाद को उद्धृत करते हुए पाश्चात्य शिक्षण पद्धति को भारतीय चिंतन और शिक्षण पद्धति के समक्ष तुक्ष्य बताया भारत की शिक्षा प्रणाली और यहां की शोध पद्धतियां जीवंतता का प्रतीक है।
विशिष्ट अतिथि के रुप में पधारे प्रो. प्रशांत बोकरे (कुलपति - गोंडवाना विश्वविद्यालय, गढ़चिरौली महाराष्ट्र) द्वारा अपने उद्बोधन को विनोवा भावे के विचारों के माध्यम से रखते हुए पाश्चात्य शिक्षा से बचने और भारतीय शिक्षा पद्धति को अपनाने पर जोर दिया। शोध की भारतीय पद्धति वास्तविक है। यह पद्धति अनुभवजन शोध पद्धति कहलाती है। जिस प्रकार नदी के किनारे खड़े होकर तैरना नहीं सीखा जा सकता है, ठीक उसी तरह भारतीय शोध पद्धति को अपनाने के लिए उसके साथ कार्य करना होगा।
विशिष्ट अतिथि रूप में उपस्थित प्रो. शीला राय (महासचिव - राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद एवं अध्यक्ष - भारतीय गांधी अध्ययन समिति) ने अपने उद्बोधन में भारतीय शोध पद्धति को अपनाने और रूढ़िवादी नीतियों को त्याग करने तथा भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपनाने पर जोर दिया उन्होंने लॉर्ड मेकाले की शिक्षा पद्धति को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को सर्वश्रेष्ठ बताया उन्होंने कौटिल्य और शुक्र नीतियों का जिक्र करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुशीलन पर जोर दिया। वर्ष 2008 से राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद भारतीय शोध पद्धतियों को देश-दुनिया में प्रचारित कर रहा है। कार्यक्रम कि शुरुआत में समन्वयक प्रो. अनुपम शर्मा द्वारा इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऋषी पालीवाल द्वारा किया गया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. आलोक श्रोत्रीय (शैक्षणिक अधिष्ठाता) द्वारा दिया गया। कार्यक्रम में छात्र छात्राओं सहित बड़ी संख्या में शिक्षकगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथ प्रो. कृष्ण भट्ट ( कुलाधिपति - केंद्रीय विश्वविद्यालय उड़ीसा) ने अपने उद्बोधन में कहां की हमें विदेशी चिंतन के प्रभाव से बाहर आना होगा। पुरानी शिक्षक पद्धतियों को छोड़ना होगा और भारतीय शोध पद्धति एवं शिक्षा पद्धतियों को अपनाना होगा। जिसकी व्याख्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में की गई है। स्वामी विवेकानंद के चिंतन को न सिर्फ पढ़ना होगा बल्कि उसे अपने जीवन में आत्मसात करना होगा तभी हम पाश्चात्य संस्कृति और चिंतन से मुक्त हो सकेंगे। क्योंकि इंद्रियों से आगे मन है और मन से आगे आत्मा है। यदि हमें अपनी आत्मा को पहचानना है तो भारतीय मनीषियों द्वारा बताई गई शिक्षा को ग्रहण करना होगा।
बीज वक्ता के रूप में प्रो. सुषमा यादव (यू जी सी सदस्य एवं पूर्व कुलपति बीपीएस महिला विश्वविद्यालय हरियाणा) ने अपनी बात कुछ उदाहरणों के माध्यम से रखी। उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे मनीषियों को केंद्रित करते हुए भारतीय शोध पद्धतियां को रेखांकित किया। भगवान राम और लक्ष्मण के संवाद को उद्धृत करते हुए पाश्चात्य शिक्षण पद्धति को भारतीय चिंतन और शिक्षण पद्धति के समक्ष तुक्ष्य बताया भारत की शिक्षा प्रणाली और यहां की शोध पद्धतियां जीवंतता का प्रतीक है।
विशिष्ट अतिथि के रुप में पधारे प्रो. प्रशांत बोकरे (कुलपति - गोंडवाना विश्वविद्यालय, गढ़चिरौली महाराष्ट्र) द्वारा अपने उद्बोधन को विनोवा भावे के विचारों के माध्यम से रखते हुए पाश्चात्य शिक्षा से बचने और भारतीय शिक्षा पद्धति को अपनाने पर जोर दिया। शोध की भारतीय पद्धति वास्तविक है। यह पद्धति अनुभवजन शोध पद्धति कहलाती है। जिस प्रकार नदी के किनारे खड़े होकर तैरना नहीं सीखा जा सकता है, ठीक उसी तरह भारतीय शोध पद्धति को अपनाने के लिए उसके साथ कार्य करना होगा।
विशिष्ट अतिथि रूप में उपस्थित प्रो. शीला राय (महासचिव - राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद एवं अध्यक्ष - भारतीय गांधी अध्ययन समिति) ने अपने उद्बोधन में भारतीय शोध पद्धति को अपनाने और रूढ़िवादी नीतियों को त्याग करने तथा भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपनाने पर जोर दिया उन्होंने लॉर्ड मेकाले की शिक्षा पद्धति को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को सर्वश्रेष्ठ बताया उन्होंने कौटिल्य और शुक्र नीतियों का जिक्र करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुशीलन पर जोर दिया। वर्ष 2008 से राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद भारतीय शोध पद्धतियों को देश-दुनिया में प्रचारित कर रहा है। कार्यक्रम कि शुरुआत में समन्वयक प्रो. अनुपम शर्मा द्वारा इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऋषी पालीवाल द्वारा किया गया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. आलोक श्रोत्रीय (शैक्षणिक अधिष्ठाता) द्वारा दिया गया। कार्यक्रम में छात्र छात्राओं सहित बड़ी संख्या में शिक्षकगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
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