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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्व.अमरकंटक परिवार भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में हुआ शामिल

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के समस्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा जिसका 1 जुलाई 2022 को शुभारंभ हुआ में भक्तिभाव से शामिल हुए। ऐसी मान्यता है, कि भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए दूर दूर से भक्त आते हैं। पोंडकी,अमरकंटक में स्थित जगन्नाथ मंदिर में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी एवं उनकी पत्नी श्रीमती शीला त्रिपाठी जी द्वारा प्रथम पूजन अर्चन के पश्चात भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा प्रारंभ हुई।भगवान को रथ पर बैठाने से पूर्व मंदिर समिति के अध्यक्ष डॉ.ए.जेना ने सर्वप्रथम भगवान की अर्चना की और कुलपति तथा उनकी पत्नी द्वारा सड़क को झाड़ू लगाने एवं सिंचित करने का कार्य किया गया।रथ पर विराजमान के पश्चात सर्वप्रथम विश्वविद्यालय के कुलपति और उनकी पत्नी द्वारा रथ को रस्सीयो के सहारे खींचा गया।जिसमें भक्तों के साथ-साथ आस-पास के गांव के गणमान्य नागरिक शामिल हुए। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास बताया गया कि 'जगन्नाथ रथ यात्रा का जिक्र पद्म पुराण, नारद पुराण और ब्रह्म पुराण तीनों में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ यानी श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा उनकी और बलराम जी, दोनों की लाडली थीं। एक बार सुभद्रा ने दोनों भाइयों से नगर भ्रमण की इच्छा जताई। बहन की इच्छा को वो भला कैसे टाल सकते थे, इसलिए दोनों भाई अपनी बहन को लेकर नगर भ्रमण के लिए निकले। इस बीच वो अपनी मौसी ​गुंडिचा के घर पर भी गए और यहां पर उन्होंने 7 दिनों तक विश्राम किया। तब से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की परंपरा शुरू हो गई। इस यात्रा के दौरान भी प्रभु देवी सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हुए मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं।सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है, बीच में बहन सुभद्रा का और सबसे पीछे जगन्नाथ जी का रथ होता है, मौसी के घर पहुंचकर तीनों अपनी मौसी के हाथों से बना पूडपीठा ग्रहण करते हैं और सात दिनों तक वहां विश्राम करते हैं।सात​ दिनों बाद उनकी वापसी होती है और रथ यात्रा का ये पूरा पर्व 10 दिनों तक चलता है'।जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व क्या है, इस पर कुलपति ने कहा कि 'जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होना बहुत पुण्यदायी माना जाता है, मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने मात्र से 100 यज्ञों के समान पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। जो लोग इस बीच भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा, बड़े भाई बलराम का रथ खींचते हैं, उन्हें सौभाग्यवान माना जाता है।मान्यता है कि भगवान के रथों को खींचने से जाने या अनजाने में किए गए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति जीवन के सारे सुखों को भोगता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है'। 
                              जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन मंदिर समिति द्वारा किया गया जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकगण, अधिकारीगण एवं आसपास के स्थानीय नागरिकों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और भगवान जगन्नाथ जी का रथ खिंचा।

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