(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) शासकीय तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर, तथा देवनागरी महाविद्यालय, गुलावठी के आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्त्ववाधन में 'हिंदी में सामाजिक विज्ञान अनुसंधान अवसर, चुनौतियां एवं संभावनाएं' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन जूम प्लेटफार्म पर किया गया।
वेबीनार को चार सत्रों में विभाजित किया गया था। प्रथम सत्र में अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के सेंटर फॉर रिसर्च एंड आर्काइव इन इंडिया एंड इंडीजीनस नॉलेज एंड लैंग्वेज सिस्टम एकेडमिक फेलो डॉ रमाशंकर सिंह ने 'हिंदी में समाज विज्ञान क्यों?' विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि भाषा अगर विश्व की समझने का माध्यम है, तो इसमें मातृभाषा की प्राथमिक भूमिका है।उन्होंने कहा कि ज्ञान का संबंध भाषा से अधिक चिंतन परंपराओं से है। चिंतन किसी भी भाषा में हो सकता है। हिंदी के समक्ष अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या ज्ञान की रचना हिंदी में संभव है? उन्होंने कहा वास्तव में किसी समाज की संरचना तथा उसके मर्म को उसकी भाषा में ही समझा जा सकता है, किसी दुभाषिये की मदद से नहीं। उपनिवेशवाद ने एशियाई और अफ्रीकी समुदायों को सांस्कृतिक प्रभुत्व के द्वारा यह समझाया कि उनकी भाषा में समाज विज्ञान की रचना संभव नहीं है।उसने विजित क्षेत्रों की भाषाई पहचान का अवमूल्यन किया और ज्ञान पर एकाधिकार कर लिया। उन्होंने भारत का उदाहरण देते हुए कहा कि राजनीतिक तथा मुक्ति के आंदोलन हिंदी भाषा में हुए हैं, चाहे वह किसान आंदोलन हो, पर्यावरण आंदोलन हो, सामाजिक न्याय के आंदोलन हों अथवा अन्य छोटे-छोटे मुक्ति आंदोलन हों,उनकी भाषा और उनके मुहावरे हिंदी में ही रहे हैं।हिंदी में समाज विज्ञान का सामाजिक मूल्य है तथा इसका सम्मानित भविष्य भी है।
दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए विश्व भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हितेंद्र पटेल ने 'हिंदी में समाज विज्ञान लेखन: समस्याएं एवं समाधान' विषय पर श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा की हिंदी में समाज विज्ञान लेखन के लिए शब्दों तथा मुहावरों का विस्तार करना होगा। इसके लिए हमें दूसरी भाषाओं से उदारता से शब्दों को ग्रहण करना होगा। उन्होंने कहा कि शब्दों का प्रयोग तथा वाक्य की संरचना के लिए लगातार प्रयोग करने होंगे। हिंदी तथा मातृभाषा में सोचना उस समाज के मर्म को जानने का बेहतर साधन होता है। उन्होंने कहा कि भाषा के स्तर पर एक नया युग शुरू हो रहा है। आने वाले तीन चार दशकों के अंतर्गत अंग्रेजी का वर्चस्व टूटेगा तथा भारतीय भाषाओं के प्रभाव में बढ़ोतरी दिखाई देगी।
वेबीनार के दूसरे दिन तीसरे सत्र में सतीश चंद्र कॉलेज बलिया के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शुभनीत कौशिक ने 'उत्तर भारत के पुस्तकालय और अभिलेखागार' विषय पर व्याख्यान को संबोधित करते हुए इतिहास लेखन के लिए अभिलेखागारों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा की ब्रिटिश काल में स्थापित अभिलेखागार उस समय के इतिहास तथा समाज विज्ञान को जानने का प्रमुख साधन है।उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित शोध के लिए विभिन्न संदर्भ ग्रंथों का परिचय दिया। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विभिन्न अभिलेखागारों के बारे में विस्तार से वर्णन किया तथा उत्तर भारत के प्रमुख अभिलेखागारों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से बन रहे नए सन्दर्भ ग्रंथों का श्रोताओं से परिचय कराया।
चतुर्थ सत्र को संबोधित करते हुए अंबेडकर स्कूल आफ सोशल साइंसेज, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार ने 'हिंदी में समाज विज्ञान लेखन: प्रकाशन एवं ज्ञान की निर्मिति' विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी में समाज विज्ञान के क्षेत्र में स्तरीय लेखन से लेकर सतही लेखन एवं प्रकाशन किया जा रहा है। पाठकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती ज्ञान के स्रोत को पहचानने तथा उसे सतही लेखन से अलग करने की है। उन्होंने हिंदी भाषा में प्रकाशन से संबंधित भारतीय तथा विदेशी प्रकाशकों तथा प्रकाशकों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे साहित्य को हिंदी में अनुवाद करके उसके क्षेत्र का विस्तार करना चाहिए।
वेबिनार के प्रथम दिन सह अध्यक्षता कर रहे शासकीय तुलसी महाविद्यालय,अनूपपुर के प्राचार्य प्रोफेसर विक्रम सिंह बघेल तथा देवनागरी महाविद्यालय,गुलावठी बुलंदशहर के प्राचार्य प्रोफेसर योगेश कुमार त्यागी ने वक्ताओं का स्वागत किया।
प्रथम दिन अवधारणात्मक टिप्पणी पीयूष त्रिपाठी ने दी , प्रथम सत्र का संचालन भवनीत सिंह बत्रा तथा दूसरे सत्र का संचालन डॉ. मनमोहन लाल विश्वकर्मा ने किया तीसरे सत्र का संचालन डॉ. पुष्पेंद्र कुमार मिश्र ने तथा चौथे सत्र का संचालन संदीप कुमार सिंह ने किया। प्रथम दिवस का आभार ज्ञापन डॉ. अमित भूषण द्विवेदी ने किया। वेबीनार का आभार ज्ञापन शासकीय महाविद्यालय वेंकटनगर के प्राचार्य प्रोफेसर आर.के. सोनी ने किया।
इस अवसर पर 100 से अधिक विद्यार्थी शोधकर्ता शिक्षाविद तथा समाज वैज्ञानिक उपस्थित रहे।
वेबीनार को चार सत्रों में विभाजित किया गया था। प्रथम सत्र में अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के सेंटर फॉर रिसर्च एंड आर्काइव इन इंडिया एंड इंडीजीनस नॉलेज एंड लैंग्वेज सिस्टम एकेडमिक फेलो डॉ रमाशंकर सिंह ने 'हिंदी में समाज विज्ञान क्यों?' विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि भाषा अगर विश्व की समझने का माध्यम है, तो इसमें मातृभाषा की प्राथमिक भूमिका है।उन्होंने कहा कि ज्ञान का संबंध भाषा से अधिक चिंतन परंपराओं से है। चिंतन किसी भी भाषा में हो सकता है। हिंदी के समक्ष अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या ज्ञान की रचना हिंदी में संभव है? उन्होंने कहा वास्तव में किसी समाज की संरचना तथा उसके मर्म को उसकी भाषा में ही समझा जा सकता है, किसी दुभाषिये की मदद से नहीं। उपनिवेशवाद ने एशियाई और अफ्रीकी समुदायों को सांस्कृतिक प्रभुत्व के द्वारा यह समझाया कि उनकी भाषा में समाज विज्ञान की रचना संभव नहीं है।उसने विजित क्षेत्रों की भाषाई पहचान का अवमूल्यन किया और ज्ञान पर एकाधिकार कर लिया। उन्होंने भारत का उदाहरण देते हुए कहा कि राजनीतिक तथा मुक्ति के आंदोलन हिंदी भाषा में हुए हैं, चाहे वह किसान आंदोलन हो, पर्यावरण आंदोलन हो, सामाजिक न्याय के आंदोलन हों अथवा अन्य छोटे-छोटे मुक्ति आंदोलन हों,उनकी भाषा और उनके मुहावरे हिंदी में ही रहे हैं।हिंदी में समाज विज्ञान का सामाजिक मूल्य है तथा इसका सम्मानित भविष्य भी है।
दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए विश्व भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हितेंद्र पटेल ने 'हिंदी में समाज विज्ञान लेखन: समस्याएं एवं समाधान' विषय पर श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा की हिंदी में समाज विज्ञान लेखन के लिए शब्दों तथा मुहावरों का विस्तार करना होगा। इसके लिए हमें दूसरी भाषाओं से उदारता से शब्दों को ग्रहण करना होगा। उन्होंने कहा कि शब्दों का प्रयोग तथा वाक्य की संरचना के लिए लगातार प्रयोग करने होंगे। हिंदी तथा मातृभाषा में सोचना उस समाज के मर्म को जानने का बेहतर साधन होता है। उन्होंने कहा कि भाषा के स्तर पर एक नया युग शुरू हो रहा है। आने वाले तीन चार दशकों के अंतर्गत अंग्रेजी का वर्चस्व टूटेगा तथा भारतीय भाषाओं के प्रभाव में बढ़ोतरी दिखाई देगी।
वेबीनार के दूसरे दिन तीसरे सत्र में सतीश चंद्र कॉलेज बलिया के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शुभनीत कौशिक ने 'उत्तर भारत के पुस्तकालय और अभिलेखागार' विषय पर व्याख्यान को संबोधित करते हुए इतिहास लेखन के लिए अभिलेखागारों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा की ब्रिटिश काल में स्थापित अभिलेखागार उस समय के इतिहास तथा समाज विज्ञान को जानने का प्रमुख साधन है।उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित शोध के लिए विभिन्न संदर्भ ग्रंथों का परिचय दिया। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विभिन्न अभिलेखागारों के बारे में विस्तार से वर्णन किया तथा उत्तर भारत के प्रमुख अभिलेखागारों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से बन रहे नए सन्दर्भ ग्रंथों का श्रोताओं से परिचय कराया।
चतुर्थ सत्र को संबोधित करते हुए अंबेडकर स्कूल आफ सोशल साइंसेज, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार ने 'हिंदी में समाज विज्ञान लेखन: प्रकाशन एवं ज्ञान की निर्मिति' विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी में समाज विज्ञान के क्षेत्र में स्तरीय लेखन से लेकर सतही लेखन एवं प्रकाशन किया जा रहा है। पाठकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती ज्ञान के स्रोत को पहचानने तथा उसे सतही लेखन से अलग करने की है। उन्होंने हिंदी भाषा में प्रकाशन से संबंधित भारतीय तथा विदेशी प्रकाशकों तथा प्रकाशकों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे साहित्य को हिंदी में अनुवाद करके उसके क्षेत्र का विस्तार करना चाहिए।
वेबिनार के प्रथम दिन सह अध्यक्षता कर रहे शासकीय तुलसी महाविद्यालय,अनूपपुर के प्राचार्य प्रोफेसर विक्रम सिंह बघेल तथा देवनागरी महाविद्यालय,गुलावठी बुलंदशहर के प्राचार्य प्रोफेसर योगेश कुमार त्यागी ने वक्ताओं का स्वागत किया।
प्रथम दिन अवधारणात्मक टिप्पणी पीयूष त्रिपाठी ने दी , प्रथम सत्र का संचालन भवनीत सिंह बत्रा तथा दूसरे सत्र का संचालन डॉ. मनमोहन लाल विश्वकर्मा ने किया तीसरे सत्र का संचालन डॉ. पुष्पेंद्र कुमार मिश्र ने तथा चौथे सत्र का संचालन संदीप कुमार सिंह ने किया। प्रथम दिवस का आभार ज्ञापन डॉ. अमित भूषण द्विवेदी ने किया। वेबीनार का आभार ज्ञापन शासकीय महाविद्यालय वेंकटनगर के प्राचार्य प्रोफेसर आर.के. सोनी ने किया।
इस अवसर पर 100 से अधिक विद्यार्थी शोधकर्ता शिक्षाविद तथा समाज वैज्ञानिक उपस्थित रहे।
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