(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह जी चौहान के नाम कलेक्टर के माध्यम से मजदूर दिवस पर पत्रकारों की समस्याओं को लेकर मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ जिला इकाई अनूपपुर ने एडीएम सरोधन सिंह को ज्ञापन सौंपा।इस अवसर पर प्रमुख रूप से मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष मुकेश मिश्रा,संभागीय अध्यक्ष अजीत मिश्रा अध्यक्ष मंडल के सह संयोजक मनोज द्विवेदी प्रदेश संयुक्त सचिव सुमिता शर्मा , पूर्व जिला महासचिव चैतन्य मिश्रा, जिला सचिव अमित शुक्ला, जिला संयुक्त सचिव विजय जायसवाल, जिला उपाध्यक्ष हिमांशु बियानी, प्रेम अग्रवाल,मनीष त्रिपाठी, मुकेश अग्रवाल, पुष्पेंद्र त्रिपाठी,मोनू गुप्ता,आदि शामिल रहे।
ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ प्रदेश का सबसे बड़ा पत्रकारों का प्रतिनिधि संगठन है और प्रदेश की एक मात्र पत्रकारों की ट्रेड यूनियन भी जो पत्रकारों की समस्याओं के साथ ही पत्रकारों के माध्यम से समाज और शासन के बीच सेतु के रूप में कार्य करते हुए जनकल्याण और जनहितेषी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी सक्रिय भूमिका अदा कर रहा है। समय-समय पर अनुरोध पत्रों के माध्यम से पत्रकारों समस्याओं की ओर शासन का ध्यान आकर्षित किया है। शासन ने अनेक मांगें हमारी स्वीकार की है। कई मांगें अभी भी स्वीकृति की प्रत्याशा में लंबित है। कई मांगें स्वीकृत होने के बाद भी क्रियान्वित नहीं हो पाई है। इस अनुरोध पत्र के माध्यम से आपका ध्यान आकर्षित कर रहे है ताकि आप केंद्र और राज्य से संबंधित मांगों की ओर सरकारों का ध्यान आकर्षित कर सके।
हम प्रतिवर्ष 1 मई मजदूर दिवस पर पत्रकारों की समस्याओं को लेकर अनुरोध पत्र,प्रदर्शन और रैली के माध्यम से प्रेषित करते है, ताकि श्रमजीवी पत्रकार आंदोलन को गति दी जा सके और लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को मजबूत करने वाले कलमकारों की समस्याओं का निराकरण हो सके। हम मानते है कि पत्रकार भी एक सामाजिक प्राणी है, उसकी भी अपनी एक समस्याएं है। इसलिए आवश्यक है कि समाज और सरकार सहानुभूतिपूर्वक पत्रकारों की समस्याओं की ओर ध्यान दे और उनका निराकरण करे, ताकि वह अधिक सशक्त रुप में अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाने में अपनी अहम भूमिका अदा कर सके। मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संगठन की प्रमुख मांगे इस प्रकार हैं-
पत्रकार भवन की लीज
डीड बहाल की जाए
गणेश शंकर विद्यार्थी मालवीय नगर भोपाल के पत्रकार भवन की लीज डीड भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संघ के नाम पर शीघ्र ही बहाल की जाए।
पत्रकार सुरक्षा कानून
अस्तित्व में लाया जाए
प्रदेश में पिछले कई वर्षों से श्रमजीवी पत्रकारों के प्रताडना के प्रकरण निरंतर बढ़ रहे हैं, विशेषकर आंचलिक क्षेत्रों में पत्रकार शासन-प्रशासन की तथा भ्रष्ट अधिकारियों नेताओं के आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। इससे जहां जन सामान्य द्वारा मान्यता प्राप्त लोकतंत्र का यह चौथा खम्बा कमजोर हो रहा है। वहीं पत्रकारों में असुरक्षा की भावना तेजी से पनपती जा रही है। आप से आग्रह है कि इसके लिए पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए, इसके लिए हमने प्रधानमंत्रीजी के नाम पोस्टकार्ड अभियान चलाकर दस हजार तक पोस्टकार्ड भी प्रेषित किए है। ताकि कोई भी श्रमजीवी पत्रकारों को प्रताड़ित करने की हिम्मत न कर ।
पत्रकार आवास खाली
करवाने की समय सीमा हो
भोपाल के शासकीय आवासों में निवास कर रहे पत्रकारों पर एक साल के बाद आवास का रिनुअल कराने हेतु आवास रिक्त करने का नोटिस आता है फिर पत्रकार अपने काम छोड़ कर रिनुअल के लिए इधर उधर भटकता है। हमारी मांग है कि यह आवास स्थाई रूप से आवंटित हो, पत्रकार की मृत्यु हो जाने पर या किराया जमा नहीं होने की स्थिति में नोटिस दिए जाए। इसके बावजूद एक निश्चित समय सीमा के बाद मकान खाली करवाने की कार्रवाई आरंभ की जाए, अन्यथा नहीं।
त्रिपक्षीय कमेटी
शीघ्र गठित हो
मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों को सही तरीके से क्रियान्वयन के लिए एक त्रिपक्षीय वार्ता कमेटी बनती है जिसमे श्रमजीवी पत्रकारों अखबार मालिकों के साथ सरकार के 2-2 प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है। प्रदेश में नई सरकार गठन के बाद इस समिति का पुनर्गठन नहीं हुआ, जिसके कारण मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशे भी लागू नहीं हो पा रहीं है, अतः इस समिति का शीघ्र गठन किया जाए, साथ ही पंजीयक व्यवसायिक संघ श्रम विभाग से श्रमजीवी पत्रकारों के नाम मांगे जाए। इस समिति में श्रमजीवी पत्रकार संघ की ओर सदस्य मनोनीत होते हैं। पूर्व में अध्यक्ष शलभ भदौरिया इस समिति के सदस्य थे, उन्हें पुनः शामिल किया जाए।
श्रमविभाग के सहयोग
से बने शासकीय कमेटियां
पत्रकारों की किसी भी प्रकार की शासकीय कमेटियां बने तो श्रमविभाग के बिना सहयोग से ना बनाई जाए। अन्यथा दसियों वर्षों से श्रम विभाग में पंजीकृत श्रमजीवी पत्रकारों के संगठनों के पंजीकृत होने का कोई ओचित्य ही नहीं रह जायेगा। सरकार इस मामले में गंभीरता से निर्णय ले।
संभाग व जिला स्तर
पर प्रकोष्ठ बनाए जाए
पत्रकारों के उत्पीड़न के मामलों को सीआईडी जांच के लिए सौंप दिया जाए। ऐसे मामलों की न्यायिक समीक्षा के लिए संभाग व जिलास्तर पर प्रकोष्ठ कायम किए जाए, जिसमें संघ के सदस्यों के साथ ही सेवानिवृत्त न्यायाधीश, ईमानदार सक्षम पुलिस अधिकारियों को शामिल किया जाए, ताकि पत्रकारों को अपने कर्तव्य निर्वहन में परेशानी ना हो, साथ ही धारा 353 का दुरूपयोग करने वाले अधिकारियों के विरूद्ध भी कार्रवाई की जाए। अधिकारी इस धारा का उपयोग पत्रकारों के साथ ही जनप्रतिनिधियों को भी प्रताड़ित करने की दृष्टि से कर रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में बनी इस धारा का अब कोई औचित्य नहीं है।
बेगारी प्रथा
पर रोक लगे
श्रमजीवी पत्रकारों को नियोक्ता द्वारा संवाददाता कार्ड एवं नियुक्ति पत्र नहीं दिए जाते ऐसे समाचार पत्र मालिकों के विज्ञापन बंद कर दिए जाए जो श्रमजीवी पत्रकारों को आवश्यक परिश्रामिक देना तो दूर संवाददाता कार्ड एवं नियुक्त पत्र भी उपलब्ध नहीं कराते और कराते भी है तो अवैतनिक लिखे होते हैं, जो बेगारी प्रथा के सूचक है। यह कानूनी अपराध है, इसे रोकने हेतु राज्य के श्रम विभाग को सक्रिय करें।
डेस्क पर कार्यरत श्रमजीवी
पत्रकारों को अधिमान्यता मिले
वर्तमान में समाचार पत्र कार्यालयों में संपादकीय विभाग में कार्य करने वाले श्रमजीवी पत्रकारों को अधिमान्यता नहीं दी जा रही है, जबकि वह श्रमजीवी पत्रकार कानून की परिधि में आते हैं। अतएव इन श्रमजीवी पत्रकारों को भी अधिमान्यता दी जाए। साथ ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों को भी अधिमान्यता दी जाए।
श्रद्धानिधि का लाभ
इन्हें भी दिया जाए
अखबारों के दफ्तरों में काम करने वाले पत्रकारों को जिन्हें अधिमान्यता के अभाव में श्रद्धानिधि का लाभ नहीं मिल पा रहा है ऐसे श्रमजीवी पत्रकारों को बिना अधिमान्यता के भी श्रद्धानिधि का लाभ दिया जाए, जो वर्षों से अखबार के दफ्तरों में तथा संपादकीय विभाग में कार्य कर रहे है।
पात्र लोगों के ही
अधिमान्यता कार्ड बने
जनसंपर्क संचालनालय में अधिमान्यता दिए जाने का लगता है कोई मापदंड नहीं है। संचालनालय के कतिपय अधिकारी भ्रष्ट आचरण कर अधिमान्यता कार्ड जारी कर देते हैं, जबकि प्रदेश सरकार ने संभाग स्तर पर अधिमान्यता समितियां गठित की हैं। इन समितियों की अनुशंसा के बिना ही अधिमान्यता का कार्ड संचालनालय में बन रहे हैं और वह भी ऐसे लोगों के जो न पत्रकार हैं और ना ही अधिमान्यता के मान्य नियमों के तहत उन्हें पात्रता ही है। समितियों के माध्यम से ही अधिमान्यता दी जानी चाहिए, ताकि अधिमान्यता नियमों का पूर्ण पालन हो और नियमों के तहत पात्र लोगों को ही अधिमान्यता मिल सके।
श्रमजीवी पत्रकार
आयोग का गठन हो
राज्य के समस्त श्रमजीवी पत्रकारों एवं पत्रकारिता की दशा एवं दिशा को लेकर अध्ययन किया जाना चाहिए। कई राज्यों ने इस प्रकार का प्रयास किया है। सरकार शीघ्र ही श्रमजीवी पत्रकार आयोग का गठन करें, जिसमें जनप्रतिनिधि श्रमजीवी पत्रकारों एवं जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों को रखा जाए। वह अपनी व्यापक रिपोर्ट सरकार को सौंपे ताकि उस पर सरकार गंभीरता से विचार कर निर्णय ले सके। वहीं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले विज्ञापन लघु एवं मध्यम समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं को दिए जाए। बड़े अखबारों और कारपोरेट मीडिया घरानों के दबाव में लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के साथ भैदभाव बंद किया जाए तथा विज्ञापन की समान नीति बनाई जाए।
तहसील स्तर पर सूचना
सहायक नियुक्त किये जाएँ
कई सरकारी कार्यालयों के अनुविभाग स्तर पर कार्यालय हैं, लेकिन जनसंपर्क जैसे महत्वपूर्ण विभाग के तहसील स्तर पर कोई कार्यालय नहीं है, जिससे कस्बाई पत्रकारों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वर्षों से कार्य कर रहे पत्रकारों के नाम भी जनसंपर्क की सूची में दर्ज नहीं हैं। अतएव तहसील स्तर पर सूचना सहायकों की नियुक्तियां की जायें तथा जिला जनसंपर्क कार्यालय के समान ही तहसील स्तर पर भी पत्रकारों के नाम सूची में दर्ज हों तथा शासकीय योजनाओं की जानकारी भी उन्हें नियमित मिले, उसकी भी सूचना सहायकों (तहसील स्तरीय जनसंपर्क कार्यालय) के माध्यम से व्यवस्था हो।
तहसील स्तर पर अधि-
मान्यता नियम शिथिल हो
संघ के प्रयासों से ही पत्रकारों की तहसील स्तरीय अधिमान्यता मिलने लगी है, लेकिन इसमें पत्रकार कठिनाई महसूस कर रहे हैं, अतएव तहसील स्तर पर अधिमान्यता जिला जनसंपर्क अधिकारी की अनुशंसा के आधार पर की जाए, न की अखबार के संपादकों की अनुशंसा पर इससे तहसील स्तर के पत्रकारों की अधिमान्यता सरलता से हो सकेगी।
अधिमान्य पत्रकारों को श्रेणी
के अनुसार मिले सुविधा
तहसील व जिला स्तर के अधिमान्य पत्रकारों की श्रेणी के अनुसार सुविधा उपलब्ध कराई जाए। वर्तमान में प्रदेश स्तरीय अधिमान्य पत्रकारों को आवास सुविधा छोड़कर और कोई भी सुविधा प्राप्त नहीं है, जबकि अन्य प्रांतों में अधिमान्य पत्रकारों को शासन ने अनेक सुविधाएं दे रखीं हैं। इस संबंध में एक समिति गठित कर अन्य राज्यों में दी जा रही सुविधाओं का अध्ययन करवाया जाए ताकि प्रदेश के अधिमान्य पत्रकारों को भी अधिमान्य पत्रकार होने का सम्मान और औचित्य महसूस हो सके।
राज्य सरकार के विश्राम
भवनों में सुविधा प्रदान करें
राज्य के तमान श्रमजीवी पत्रकारों को सांसदों एवं विधायकों की भांति राज्य के विश्राम भवनों, सर्किट हाउस एवं राज्य के बाहर स्थित प्रदेश के भवनों में विधिवत रुकने आदि की सुविधा साधिकार उपलब्ध कराई जाए।
टोल नाकों पर मध्यप्रदेश
श्रमजीवी पत्रकार संघ के
कार्ड को मान्यता दी जाए
संघ के आग्रह पर राज्य शासन ने अधिमान्य पत्रकारों को टोल नाकों पर छूट प्रदान की है लेकिन यह सुविधा नेशनल हाईवे के टोल नाकों पर उपलब्ध नहीं है केन्द्र के संबंधित विभाग को इस संबंध में अनुशंसा पत्र दिये जाये कि वह प्रदेश के अधिमान्य पत्रकारों को राज्य सरकार द्वारा दी गई सुविधा के अनुसार टोल नाकों पर छूट प्रदान करे। इसके साथ ही मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्यों के कार्ड पर भी टोल नाकों पर रियायत मिले इस संबंध में भी संबंधित विभाग को निर्देश दिये जाएं ताकि उन्हें कर्तव्य निर्वहन के दौरान वाहनों पर टोल टेक्स न देना पड़े।
आवास समितियां बनाई
जायें तथा पत्रकार भवन के
लिए जमीन दी जाए
जिला एवं तहसील स्तर पर गृह निमार्ण सहकारी समितियों को सरकारी भूखंड उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। श्रमजीवी पत्रकारों को समितियों के पंजीयन तथा उन्हें भूखंड आवंटन की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसके कारण उन्हें सस्ते दरों पर रियायती भूखंड और ऋण सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है। शासन स्तर पर आवास समितियों का गठन किया जाए ताकि श्रमजीवी पत्रकारों एवं प्रेस कर्मचारियों को निजी आवास उपलब्ध हो सकें।
सदस्य संख्या के आधार
पर समितियों में लिया जाए
पत्रकारों की सरकारी समितियों में पत्रकार संगठनों से उनकी सदस्य संख्या के आधार पर नाम मांगे जाए, जैसा की पहले होता था। मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकारों की ट्रेड यूनियन है और इसकी सदस्य संख्या भी प्रदेश में सर्वाधिक है, इसलिए सभी सरकारी समितियों में संघ के सदस्यों को प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया जाना चाहिए, जो पत्रकारों के नाम पर फर्जी संगठन बने है, और जो पत्रकार पत्रकारिता का चोला पहनकर समाज में भयादोहन का काम कर रहे है उन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार सख्त कदम उठाया। कई पत्रकार संगठन अपने कार्ड पर अधिमान्य शब्दों का उपयोग करते हैं, इससे यह भ्रम पैदा होता है कि वह अधिमान्य पत्रकार है, जबकि अधिमान्यता एक नियम के तहत मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। इस भ्रम को दूर करने के लिए कतिपय पत्रकार संगठनों को निर्देश दिए जाए कि वह अपने कार्ड पर अधिमान्य शब्द का उपयोग न करे।
समाचार पत्रों तथा पत्रकारों
को जीएसटी से मुक्त रखा जाए
हाल ही में केंद्र सरकार ने समाचार पत्रों और पत्रकारों पर जीएसटी कर अनिवार्य कर दिया है, जिसके कारण समाचार पत्रों पर अन्य बोझ बड़ा है और कई कठिनाईयां भी बड़ी है। जीएसटी कर से समाचार पत्रों तथा पत्रकारों को राहत प्रदान की जाए।
लघु एवं मध्यम समाचा पत्रों की
विज्ञापन निति पर पुनः विचार हो
सरकार लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों की विज्ञापन निति पर पुन- विचार कर इन समाचार पत्रों को प्राथमिकता दे। वर्तमान में कार्पोरेट घरानों के बड़े अखबारों को प्राथमिकता दिए जाने से लघु एवं समाचार पत्रों के हितो पर कुठाराघात हो रहा है, जिसका असर वर्षों से पत्रकारिता कर रहे साथियों पर पड़ा है, जिसके कारण उनके समक्ष जीवन यापन का संकट उत्पन्न हो गया है।
अधिमान्य शब्द का
दुरुपयोग बंद कराएं
प्रदेश में पत्रकारों के नाम पर कई संगठन बने है, जो पत्रकार और पत्रकारिता का चोला पहनकर समाज में भयादोहन का काम कर रहे है, उन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार सख्त कदम उठाए कई पत्रकार संगठन तो अपने कार्ड पर अधिमान्य शब्द का उपयोग करते है, इससे यह भ्रम पैदा होता है कि वह अधिमान्य पत्रकार है, जबकि अधिमान्यता एक नियम के तहत मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। इस भ्रम को दूर करने के लिए कतिपय पत्रकार संगठनों को निर्देश दिए जाए कि वह अपने कार्ड पर अधिमान्य शब्द का उपयोग न करें।
मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह जी चौहान से उम्मीद की है कि इन मांगों की ओर गंभीरता से विचार कर पत्रकार जगत के हित में शीघ्र ही निर्णय सरकार लेगी।
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