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प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर जल संरक्षण के लिए नदियों का सर्वेक्षण कर उसे पुनर्जीवित करने करेगा प्रयास

 

चंदास के उद्गम से सोन के 
आँचल 22.45 किमी. की यात्रा 
(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर की बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि जल संरक्षण के लिए नदियों का सर्वेक्षण कर उसे पुनर्जीवित करने के लिए ठोस प्रयास करने के तारतम्य में सर्व प्रथम चंदास नदी को चुना जाए।पद यात्रा के ज़रिए चंदास के उद्गम से उसके समापन बिंदु तक यानि वहाँ जहां वह पूर्ण समर्पण कर सोणभद्र की बाँहों में समा जाती है, वहाँ तक का गहन अध्ययन और सर्वेक्षण किया जाए। इस विषय पर कवि एवं लेखक गिरीश पटेल ने यात्रा के वृतांत के बारे में जानकारी देते हुए अपनी 22.45 किलोमीटर की यात्रा का प्रतिदिन का विवरण दिया है।
                           नवरात्रि के प्रथम दिवस यानि 2 अप्रैल को सुबह 10.30 बजे यात्री दल जिसमें , शशिधर अग्रवाल पत्रकार व सर्प विशेषज्ञ, भूपेश भूषण पूर्व प्रांतीय संयोजक राष्ट्रीय युवा संगठन, ललित दुबे लेखक व कार्यकर्ता राष्ट्रीय युवा संगठन, गिरीश पटेल कवि, संजय विश्वास कलाकार एवं कार्यकर्ता राष्ट्रीय युवा संगठन ,रामनारायण पाण्डेय पत्रकार व सचिव प्रलेस,उमेश सिंह फ़ोटोग्राफ़र व सामाजिक कार्यकर्ता, आनंद पाण्डेय प्रखर पत्रकार व सदस्य प्रलेस,सीताराम मिश्र सामाजिक कार्यकर्ता बालगंगाधर सेंगर वरिष्ठ सदस्य प्रलेस ,जीवेन्द्र सिंह ,पूर्व उपाध्यक्ष नगरपालिका व सदस्य प्रलेस, बी.एल. द्विवेदी सब इंजीनियर जल संसाधन विभाग,शामिल थे , ये सभी मेरे निवास पर पहुँचे जहां विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार उदय प्रकाश व उनकी पत्नी कुमकुम सिंह ने उपस्थित होकर न केवल हमारा उत्साह वर्धन किया बल्कि हमें ओजपूर्ण विदाई भी दी।दो कारों में सवार होकर हमारा क़ाफ़िला चंदास के उद्गम की ओर रवाना हुआ। हमारा मार्ग दर्शन करने के लिए शशिधर अग्रवाल व सीताराम मिश्र मोटर साइकिल पर आगे आगे चले।11 बजे के क़रीब हम खोलइया - लखनपुर मार्ग पर स्टॉप डेम वाली पुलिया पर पहुँच गए, इसके पश्चिम की ओर आधा किलोमीटर चलने के बाद हम चंदास के उद्गम पर पहुँच गए, शशिधर ने बताया कि यही उद्गम है पर हमें विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वहाँ एक बूँद भी पानी नहीं था।महुआ बीन रहे दो आदिवासी युवकों का हमने इंटरव्यू लिया तो शशिधर की बात प्रमाणित हो गई।कई वर्षों पूर्व यहाँ से पानी रिसता रहा होगा।हमने यहाँ से चंदास के साथ चलना शुरू किया,कोई 40 मिनट चलने के बाद हमें पानी का दर्शन हुआ थोड़ा आगे जाने पर एक स्टॉप डेम के बाद पानी का बहाव ज़्यादा दिखाई दिया।इस नदी में आवश्यकता के अनुरूप पर्याप्त स्टॉप डेम हैं पर इनका रख रखाव सही नहीं है।इस 22.45 किलोमीटर लम्बी नदी में दो बांध हैं ,पहला लखनपुर में और दूसरा ताराडांड में जिसे ज़िला बांध भी कहा जाता है।हमारे विशेषज्ञ बी.एल. द्विवेदी ने हमें बताया कि उद्गम से लेकर वहाँ तक जहां तक नदी अजला है,बरसात के बाद जब पानी का प्रवाह कम हो जाता है तब मिट्टी के कच्चे बंधान , जिसका खर्च बमुश्किल हज़ार रुपए तक आएगा , ऐसे लगभग 5-6 बंधान बनाने होंगे ऐसा करने पर जल वहाँ न केवल अवशोषित होगा बल्कि स्थाई रूप से बहने भी लगेगा। विशेषज्ञ का यह सुझाव अत्यंत अनमोल और आवश्यक है जिस पर अमल किया जाना चाहिए ।ऐसा करने से नदी का पूरा मार्ग जलमय हो जाएगा ।पहले दिन हम 4.6 किलोमीटर चले। बिलकुल नदी के किनारे-किनारे और पहुँच गए लखनपुर डेम के पास जहां अच्छा ख़ासा पानी एकत्रित है , लगभग दुपहर के 1 बज गए थे, पसीने और गर्मी से हम बेहाल थे मुँह सूख रहा था लिहाज़ा पहले दिन की यात्रा हमें यहीं रोकनी पड़ी।हमने कार बुला ली और वापस आ गए।
                                दूसरे दिन हम सुबह 6 बजे घर से निकल गए और कल की यात्रा जहॉं समाप्त की थी यानि लखनपुर बॉंध से पुनः 6.40 पर यात्रा प्रारंभ की जो अनवरत 11 बजे तक चली। इस दिन हमने रिकॉर्ड दूरी तय की यानि 8.4 किलोमीटर। इस यात्रा के दौरान हम रोड पर कभी नहीं आए , नदी के किनारे-किनारे ही चले,कई जगह तो हमें ग्रामीणों ने हतोत्साहित भी किया कि हम नदी के किनारे- किनारे नहीं चल पाएँगे क्योंकि कई स्थानों पर तो पगडंडी भी नहीं है लेकिन हमने तो निश्चय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए पर हमें नदी को नहीं छोड़ना है और हमने ऐसा ही किया।सचमुच कहीं-कहीं तो पगडंडी भी नहीं थी और हमें खड़ी फसल के खेतों के बीच से भी चलना पड़ा और हमारे जूते कीचड़ में सन गए।कहीं पर झाड़ झंखाड , काँटे और फिसलन भरे रास्ते से भी चलना पड़ा इस तरह नदी के साथ-साथ चलना आसान नहीं था।जितनी देर में हम नदी के किनारे 8.4 किलोमीटर चले उतनी देर में सपाट रास्ते पर हम लगभग 12 किलोमीटर चल लेते , पर नदी के साथ चलने से हम उसका गहन अध्ययन कर सके।हमारी दूसरे दिन की यात्रा ताराडांड़ के बांध से आगे चलकर ताराडांड़ -दुलहरा मार्ग पर एक स्टॉप डेम पर बनी पुलिया पर आकर समाप्त हो गई।तीसरे दिन की यात्रा यहाँ से प्रारंभ कर दुलहरा होते हुए अनूपपुर के चंदास पुल यानि शेपर्स एकेडमी के सामने आकर समाप्त की।इस दिन हमने 4.8 किलोमीटर की दूरी तय की यह यात्रा हमने लगभग 2 घंटे में समाप्त कर दी। नदी की यात्रा के प्रारंभ से ही दुलहरा तक न तो पानी गंदा दिखा और न कोई अतिक्रमण दिखाई दिया ।पर अनूपपुर पुरानी बस्ती में प्रवेश करते ही पानी में गंदगी, अतिक्रमण और पॉलीथिन का कचरा साफ़ दिखाई देने 
लगा। चौथे दिन हम 2.6 किलोमीटर चलकर वर्तमान सब्ज़ी मंडी के पीछे पहुँच गए।पाँचवें दिन की यात्रा हमने यहीं से प्रारंभ की।चौथे और पाँचवें दिन की यात्रा ने मन को झकझोर दिया ।ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़ते गए त्यों-त्यों पानी की गंदगी, कचरों के ढेर, अतिक्रमण और सीवर पाइपलाइन द्वारा नदी में मल-मूत्र का विसर्जन दिखाई दिया।निजी घर और कॉलोनियों ने ही गंदगी और अतिक्रमण नहीं किया बल्कि सरकारी विभागों ने भी यही सब किया है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ऐसे प्रदूषित पानी को लोग बर्तन माँजने, कपड़े धोने और नहाने के लिए उपयोग कर रहे हैं।एक जगह पर तो एक छोटे बच्चे को हमने यही पानी पीते हुए देखा और पूरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। गाँवों में हमने नदी में पंप लगा कर खेतों को सींचते हुए देखा और पानी भी साफ़ दिखाई दिया पर शहर में सभ्य और शिक्षित समाज ने नदी के साथ अच्छी ख़ासी असभ्यता बर्ती है। तो क्या सभ्यता, शालीनता और शिक्षा मात्र दिखावा है ? बहरहाल हमारे पाँचवें दिन की यात्रा 2.05 किलोमीटर चलकर उस जगह समाप्त हुई जहां चंदास ,सोन नद को अपना सब कुछ समर्पित कर हमेशा के लिये उसी में समाहित हो जाती है।इस बीच हमारे साथ शिवकान्त त्रिपाठी, इस्ताक शहडोली,, चंद्रशेखर सिंह, दीपक अग्रवाल, सुषमा सिंह नेटी , राजेश मानव , विजेंद्र सोनी और डॉक्टर करुणा सोनी भी जुड़ गईं । फ़ोटोग्राफ़ी उमेश सिंह और वीडियोग्राफ़ी ललित निरंजन दुबे ने की ।इस तरह हमने पाँच दिन में 22.45 किलोमीटर की यात्रा पूर्ण कर विराम लिया।
                      भले ही हमारी भौतिक यात्रा समाप्त हो गई हो पर हमारी मानसिक यात्रा तो तब शुरू होगी जब हम इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर और उसका समाधान प्रस्तुत कर सम्बंधित विभागों को सौंपेंगे और उन पर इस नदी को बचाने के लिए दबाव बनाएँगे और ऐसा करने में हमें आप सबके सहयोग की बहुत ज़रूरत होगी । तो साथियों आओ और कंधे से कंधा मिलाकर इस नदी को बचाने की शपथ ले।

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