( श्रद्धांजलि -- मनोज कुमार द्विवेदी , अनूपपुर- मप्र )
अनूपपुर (अंंचलधारा) लेखक एवं विचारक मनोज द्विवेदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ कद्दावर नेता,नगर पालिका अनूपपुर के पूर्व अध्यक्ष, ब्राम्हण समाज के संरक्षक ओमप्रकाश द्विवेदी के निधन के साथ ही अनूपपुर की कस्बाई राजनीति का एक स्थापित मापदण्ड समाप्त हो गया है। ओमप्रकाश द्विवेदी ने 30 जनवरी 2022 की सुबह लगभग तीन बजे 63 वर्ष की आयु में भोपाल के एक अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम सांसें लीं। लगभग यही वो समय था, जब रात भर मेरा मन काफी बेचैन होता रहा ...द्विवेदी जी के बड़े दामाद अभय पाण्डेय के लगभग चार -- सवा चार पर आए फोन से मन आशंकित हो उठा। जब उन्होने यह मनहूस खबर मुझे दी तो कुछ पल के लिये तो भरोसा ही नहीं हुआ। रात भर बेचैनी और घबराहट का कारण भी एकदम स्पष्ट हो गया था। व्यथित मन से उनके बड़े पुत्र वेद से बात कर उन्हे ढांढस देने की कोशिश की। लेकिन स्वत: मेरा मन टूट चुका था।
ओमप्रकाश द्विवेदी राजनीति के ऐसे चलते - फिरते संस्थान थे ,जिनसे बहुतों ने राजनीति का ककहरा सीखा है। 1990 में पहली बार जब मधुकर ने उनके पुरानी बस्ती के पुराने कच्चे से घर में पहला परिचय करवाया था ,तब वे किसी धार्मिक आयोजन के लिये झंडों की व्यवस्था में जुटे थे। तब संसाधन कम थे लेकिन सक्रियता आज से कहीं बहुत ज्यादा।
उसके बाद उनके साथ लगभग दो दशक तक संबंध ऐसे थे ,जिसका कोई नाम नहीं हो सकता। मैं उन्हे बड़ा भाई का दर्जा दे चुका था और वो मुझे अभिन्न मित्र, सहयोगी, विश्वस्त सलाहकार बना चुके थे। उनके परिवार और परिजनों को पता था कि हम दोनों का एकांत दरबार कभी - कभी रात 9 बजे से शुरु होकर सुबह चार बजे तक अनवरत चलता रहता थी। नगर, समाज ,राजनीति, योजना, परिवार का ऐसा कोई मुद्दा नहीं था ,जिस पर वो मुझसे घंटों चर्चा ना करते रहे हों। बहुतों को यह भ्रम हो गया कि हम सगे भाई या रिश्तेदार हैं।
अनूपपुर नगर और राजनीति उनके नस - नस में थी। राजनैतिक शुचिता, संस्कार , सम्मान, मर्यादा के जिन गुणों का उन्होने प्रदर्शन किया , वो आज की पीढी और आज की राजनीति में समाप्त हो चुकी है। उनका सबसे अच्छा गुण , जिसे उन्हे प्रत्येक जानने वाला व्यक्ति स्वीकार करेगा कि वे निंदा और नकारात्मकता से कोसों दूर थे। काम कितना ही जटिल हो , हल हो या ना हो...द्विवेदी जी जूझ जाते थे। लोगों की पंचायतों में इतने उलझते कि ना उन्हे नहाने का ध्यान रहता , ना ही भोजन की चिंता। लोगों की सहायता में , समस्याओं के निदान में उन्होंने अपने स्वास्थ्य से खतरनाक समझौता किया। सामाजिक -- राजनैतिक जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये उनका जीवन किसी विश्वविद्यालय से कम नहीं रहा है।
वे राजनीति बिछाते थे , राजनीति ओढते थे और राजनीति ही उनका भोजन था।इसके माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों का भला किया। इसका लाभ था ...तो दूरगामी नुकसान भी। परिवार के लिये, अपने लिये समय ना निकाल पाना , शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान ना रखना , अन्तत: एक के बाद एक कई शारीरिक जटिलताओं का खड़ा होना कुछ ऐसे ही नुकसान थे।
नगर पंचायत अनूपपुर की खाली कुर्सी -- भरी कुर्सी के माध्यम से किसी निर्वाचित अध्यक्ष को वापस बुलाने का विश्व स्तरीय कारनामा उनके ही नेतृत्व में हुआ। अनूपपुर जिला गठन के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में उस वक्त के कांग्रेस सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह के विरुद्ध अपेक्षाकृत नये ,युवा भाजपा नेता रामलाल रौतेल के हाथों ऐतिहासिक विजय के शूरमाओं में से एक द्विवेदी भी थे। उन्होंने कार्यकर्ता निर्माण किया। व्यक्ति और व्यक्तित्व के वे बेमिसाल पारखी थे। उन्होंने लोगों से पारिवारिक संबंध बनाए और उसे निभाया भी। पुरानी बस्ती में तमाम राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक आयोजन किये। उन्नत खेती के एक सूत्रधार वे भी थे।
ब्राम्हण समाज के संरक्षक के रुप में उन्होंने समाज की मजबूती के लिये कार्य किया।
2019 में कांग्रेसी उपेक्षा से दुखी बिसाहूलाल सिंह भाजपा में आए।उसके बाद हुए उप चुनाव में भाजपा कॊ रिकार्ड 35000 मतों से मिली जीत के पीछे ओमप्रकाश द्विवेदी के जी तोड़ समर्पण और सक्रियता को कोई नहीं नकार सकता। उनके पेट का आपरेशन हो चुका था, शुगर ,ब्लडप्रेशर , हृदय की कुछ वर्ष पहले हुई समस्या के साथ कोविड के बड़े खतरे के बीच उन्होंने सुबह से देर रात तक जमकर पसीना बहाया। वे जीत के एक बड़े नायक थे ,जिन्होंने स्वास्थ्य की गंभीरता तक की परवाह नहीं की।
आज सुबह से उनके ना रह जाने पर बस्ती का शेर, गरीबों का मसीहा, जरुरतमंदों के सहयोगी, अनूपपुर नगर के विकास पुरुष, भाजपाई राजनीति के पुरोधा जैसे अन्य सम्मानजनक उद्बोधनों , श्रद्धांजलि संदेशों से सोशल मीडिया अटा पड़ा है। प्रदेश भर से शोक संवेदनाएं आ रही हैं।
ओमप्रकाश द्विवेदी के नहीं रह जाने से अनूपपुर जिले की अपूरणीय क्षति हुई है। राजनीति में उनकी बनाई एक ऐसी लाईन जिसे कभी काटकर छोटी नहीं की जा सकी और हाल फिलहाल उससे बड़ी लाईन बनती नहीं दिखती।
इस असीम दुख के समय दुखी परिवार को ईश्वर यह कष्ट सहने की शक्ति प्रदान करें और श्री द्विवेदी की पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें...यह परमपिता परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है।
ओमप्रकाश द्विवेदी राजनीति के ऐसे चलते - फिरते संस्थान थे ,जिनसे बहुतों ने राजनीति का ककहरा सीखा है। 1990 में पहली बार जब मधुकर ने उनके पुरानी बस्ती के पुराने कच्चे से घर में पहला परिचय करवाया था ,तब वे किसी धार्मिक आयोजन के लिये झंडों की व्यवस्था में जुटे थे। तब संसाधन कम थे लेकिन सक्रियता आज से कहीं बहुत ज्यादा।
उसके बाद उनके साथ लगभग दो दशक तक संबंध ऐसे थे ,जिसका कोई नाम नहीं हो सकता। मैं उन्हे बड़ा भाई का दर्जा दे चुका था और वो मुझे अभिन्न मित्र, सहयोगी, विश्वस्त सलाहकार बना चुके थे। उनके परिवार और परिजनों को पता था कि हम दोनों का एकांत दरबार कभी - कभी रात 9 बजे से शुरु होकर सुबह चार बजे तक अनवरत चलता रहता थी। नगर, समाज ,राजनीति, योजना, परिवार का ऐसा कोई मुद्दा नहीं था ,जिस पर वो मुझसे घंटों चर्चा ना करते रहे हों। बहुतों को यह भ्रम हो गया कि हम सगे भाई या रिश्तेदार हैं।
अनूपपुर नगर और राजनीति उनके नस - नस में थी। राजनैतिक शुचिता, संस्कार , सम्मान, मर्यादा के जिन गुणों का उन्होने प्रदर्शन किया , वो आज की पीढी और आज की राजनीति में समाप्त हो चुकी है। उनका सबसे अच्छा गुण , जिसे उन्हे प्रत्येक जानने वाला व्यक्ति स्वीकार करेगा कि वे निंदा और नकारात्मकता से कोसों दूर थे। काम कितना ही जटिल हो , हल हो या ना हो...द्विवेदी जी जूझ जाते थे। लोगों की पंचायतों में इतने उलझते कि ना उन्हे नहाने का ध्यान रहता , ना ही भोजन की चिंता। लोगों की सहायता में , समस्याओं के निदान में उन्होंने अपने स्वास्थ्य से खतरनाक समझौता किया। सामाजिक -- राजनैतिक जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये उनका जीवन किसी विश्वविद्यालय से कम नहीं रहा है।
वे राजनीति बिछाते थे , राजनीति ओढते थे और राजनीति ही उनका भोजन था।इसके माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों का भला किया। इसका लाभ था ...तो दूरगामी नुकसान भी। परिवार के लिये, अपने लिये समय ना निकाल पाना , शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान ना रखना , अन्तत: एक के बाद एक कई शारीरिक जटिलताओं का खड़ा होना कुछ ऐसे ही नुकसान थे।
नगर पंचायत अनूपपुर की खाली कुर्सी -- भरी कुर्सी के माध्यम से किसी निर्वाचित अध्यक्ष को वापस बुलाने का विश्व स्तरीय कारनामा उनके ही नेतृत्व में हुआ। अनूपपुर जिला गठन के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में उस वक्त के कांग्रेस सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह के विरुद्ध अपेक्षाकृत नये ,युवा भाजपा नेता रामलाल रौतेल के हाथों ऐतिहासिक विजय के शूरमाओं में से एक द्विवेदी भी थे। उन्होंने कार्यकर्ता निर्माण किया। व्यक्ति और व्यक्तित्व के वे बेमिसाल पारखी थे। उन्होंने लोगों से पारिवारिक संबंध बनाए और उसे निभाया भी। पुरानी बस्ती में तमाम राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक आयोजन किये। उन्नत खेती के एक सूत्रधार वे भी थे।
ब्राम्हण समाज के संरक्षक के रुप में उन्होंने समाज की मजबूती के लिये कार्य किया।
2019 में कांग्रेसी उपेक्षा से दुखी बिसाहूलाल सिंह भाजपा में आए।उसके बाद हुए उप चुनाव में भाजपा कॊ रिकार्ड 35000 मतों से मिली जीत के पीछे ओमप्रकाश द्विवेदी के जी तोड़ समर्पण और सक्रियता को कोई नहीं नकार सकता। उनके पेट का आपरेशन हो चुका था, शुगर ,ब्लडप्रेशर , हृदय की कुछ वर्ष पहले हुई समस्या के साथ कोविड के बड़े खतरे के बीच उन्होंने सुबह से देर रात तक जमकर पसीना बहाया। वे जीत के एक बड़े नायक थे ,जिन्होंने स्वास्थ्य की गंभीरता तक की परवाह नहीं की।
आज सुबह से उनके ना रह जाने पर बस्ती का शेर, गरीबों का मसीहा, जरुरतमंदों के सहयोगी, अनूपपुर नगर के विकास पुरुष, भाजपाई राजनीति के पुरोधा जैसे अन्य सम्मानजनक उद्बोधनों , श्रद्धांजलि संदेशों से सोशल मीडिया अटा पड़ा है। प्रदेश भर से शोक संवेदनाएं आ रही हैं।
ओमप्रकाश द्विवेदी के नहीं रह जाने से अनूपपुर जिले की अपूरणीय क्षति हुई है। राजनीति में उनकी बनाई एक ऐसी लाईन जिसे कभी काटकर छोटी नहीं की जा सकी और हाल फिलहाल उससे बड़ी लाईन बनती नहीं दिखती।
इस असीम दुख के समय दुखी परिवार को ईश्वर यह कष्ट सहने की शक्ति प्रदान करें और श्री द्विवेदी की पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें...यह परमपिता परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है।
उन्हें मेरी भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि, ॐ शान्ति:
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