(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के हिन्दी विभाग में ’’कबीर और आज का युग’’ विषय पर ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी ने कहा कि आज का दौर भक्ति और अनुरक्ति का है। अनुरक्ति के सबसे बड़े साधक कबीर कहे जाते हैं। कबीर को ध्यान और अनुमान का कवि बताते हुए कुलपति जी ने उन्हें समाज सुधार का अग्रदूत बताया। इनकी रचनाओं साखी, सबद, रमैनी का जिक्र करते हुए उन्होने बताया कि कबीर की शब्दावली में इतना तेज था कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी उन्हें ’वाणी का डिक्टेटर कहते थे। अपनी रचनाओं में हमेशा अच्छाई और भद्रता की बात करने वाले उलटबांसी के माध्यम से परिष्कार का प्रयास करते हैं। कबीर कहते हैं-बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलाया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
आज हम सभी को इसी पर आत्ममंथन और आत्मचिंतन की जरूरत है। कुलपति जी ने कहा कि कबीर इकलौते कवि हैं जे उलटबासी के माध्यम से समाज की संरचना करते हैं। आज किसी कवि में वह साहस नहीं जो भक्तिकाल में कबीर के पास थी। मगहर को तेजस्विता की भूमि बताते हुए कुलपति जी ने कहा कि अमरकंटक सारे कंटक को दूर करने वाली भूमि है। आज के युग को कबीर की तलाश है। कबीर को संबल और प्रेरक बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रेम का भाव रखने वाले कबीर स्वत्व को ईश्वरत्व और अमरतत्व तक पहुँचाने का काम भी करते है।
निर्भीकता के कवि कबीर हमें विभेद रहित समरस समाज का आग्रह करना सिखाते हैं। ई - संगोष्ठी के मुख्य वक्ता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के हिन्दी विभाग के प्रो कृष्ण कुमार सिंह जी ने कहा कि शब्द की ताकत को जानना है तो सबसे पहले कबीर आते हैं। भाषा से जो कबीर कहलवाना चाहते हैं वह भाषा कह देती है। कबीर के चार शब्द सत्य, प्रेम, सहजता व एकता को परिभाषित करते हुए प्रो. कृष्ण कुमार सिंह जी ने कहा कि कबीर की कविता से आधुनिक युग की कविता का तार लगा हुआ है आधुनिक युग के कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवियों में शामिल रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कबीर की 100 कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी में किया, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय कविता मंच पर कबीर को जगह मिली। उन्होने कबीर को न केवल ठीक से पढ़ा बल्कि ठीक से पकड़ा भी। कबीर दास पर यदि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक न आई होती तो आज हिन्दी आलोचना में बड़े अभाव की पूर्ती न होती। कबीर को संवादधर्मी और वह हमेशा संवाद करने की स्थिति में रहते थे। उन्होने कबीर को सीधी बात का सबसे बड़ा कवि बताया । उन्होने कहा कि आज हम सीधी बात करने की बात तो करते हैं लेकिन कर नहीं पाते। कबीर दास ऐसा करते थे क्योंकि वह सहज हृदय के कवि थे। आपके भीतर यदि सहजता उपज गई तो लंबे समय तक न केवल चलेगी बल्कि सदैव रहेगी।
अंहकार के विरोध की बात समझाने के लिए ही कबीर ने लिखा कि - ’ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय’।
कबीर की सीधी बात का जिक्र करते हुए प्रो. सिंह जी ने कहा कि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने भी अपनी बंगला भाषा में रचित कविता में कहा कि अन्य की बात मुझे समझ में नहीं आती मुझे सीधी बात समझ में आती है। कबीर कहते है कि ’मेरा मुझमें कछ नहीं जो कुछ है से तेरा , तेरा तुझको सांपता क्या ल्यागे मेरा’ कबीर से पहले खुसरो न भी लिखा है कि बहुत कठिन है डगर पनघट की। अत : कबीर की प्रांसगिकता आज के दौर में निश्चित रूप से स्मरणीय है।
कार्यक्रम की शुरूआत हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. तीर्थेश्वर सिंह जी के स्वागत उद्बोधन से हुई। उन्होंने ई-संगोष्ठी में उपस्थित प्रो. खेमसिंह डहेरिया, प्रो. रेनू सिंह, डॉ. पूनम पाण्डेय एवं समस्त विद्वतजन एवं सभी आंगतुको का आभार जताया। विषय प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि मध्यकाल में जितनी जड़ता थी उसको सबसे पहले अगर तोड़ने काम किसी ने किया तो वह कबीर थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. वीरेन्द्र प्रताप ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रवीण कुमार ने किया।
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