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इगाँराजवि.में अंतरराष्ट्रीय मूल निवासी दिवस पर एकदिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन संपन्न

 (हिमांशू बियानी / जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन संकाय, लुप्तप्राय भाषा केंद्र तथा राजभाषा अनुभाग के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मूल निवासी दिवस 2020 पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया जिसकी विषय-वस्तु “कोविड-19 तथा मूल निवासियों की वैमनस्यता” रखी गई। वेबिनार के प्रस्तावित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. एस.एन.मुंडा, माननीय कुलपति, डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची तथा मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल, माननीय कुलपति, एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर आमंत्रित थे। वेबिनार का उद्घाटन एवं अध्यक्षीय संबोधन इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा दिया गया। इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति जी ने कहा कि आदिवासी संस्कृति के संरक्षक, संचालक और सृजक है। ये लोग संतोषी, सहज, सौम्य, लोभरहित, अहंकार रहित होते है। सद्जीवन और सहज जीवन इनकी विशेषता है। विश्व भर में लगभग 5000 आदिवासी संस्कृतियों है जो 90 से अधिक देशों में विद्यमान है। भारत में लगभग 645 प्रकार की जनजातियां है। इनकी कला एवं संस्कृति अद्भुत है जनजातीय समुदायों के रहन-सहन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने उनकी प्रतिरोधक क्षमता एवं दीर्घजीवी होने का कारण उनके प्रकृति के समीप होने तथा कंदमूल का सेवन करने को बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान परिस्थिति में हमारा समाज जनजातीय जीवनशैली से प्रेरित हो सकता है। ये सदैव प्रकृति और परिवेश को समद्ध रखने वाले लोग है अतः वंदनीय है। इनकी वंदना तो स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने की थी। श्री राम चरितमानस में उल्लेख है कि अपने तीन पग से सम्पूर्ण धरा को मापने वाले राम केवट के पास जाकर उससे गंगा पार लगा देने का अनुरोध करते है। राम के लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं है। अपनी सम्पूर्ण वनगमन की अवधि में राम वनवासी समुदाय के लोगों के साथ रहे। ये राम वनवासी राम है, गिरवासी जिसे हम आदिवासी भी कहते है, राम है। राम ने निरन्तर अपनी सम्पूर्ण यात्रा में प्रकृति और प्रकृति पुत्रों को महत्व दिया। उन्होंने निषादराज, केवट और शबरी के माध्यम से समरसता को समझाया। राम के आदर्शों का अनुकरण कर हम समाज के सभी वर्गो को एक साथ लेकर चले और एक आदर्श, सामाजिक रूप से समरस और सशक्त भारत का निर्माण करें। सर्वप्रथम कार्यक्रम का स्वागत भाषण एवं विषय प्रवर्तन विश्वविद्यालय के लुप्तप्राय भाषा केंद्र के निदेशक प्रो. दिलीप सिंह द्वारा दिया गया जिन्होंने उपस्थित समस्त सदस्यों का स्वागत करते हुए इंगाँराजवि तथा उसके परिवेश में निवास करने वाले जनजातीय समूहों के बारे में संक्षिप्त विवरण देते हुए उनकी जीवनशैली पर कोविड-19 के प्रभाव का परिचय दिया। विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन संकाय के संकायाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक प्रो. प्रसन्ना कुमार सामल द्वारा समस्त आमंत्रित सदस्यों का परिचय दिया गया जिसमें उन्होंने इंगाँराजवि के माननीय कुलपति तथा आमंत्रित कुलपतियों प्रो. मुंडा एवं प्रो. नौटियाल का संक्षिप्त परिचय देते हुए सभी उपस्थित सदस्यों का स्वागत किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में इंगाँराजवि की प्रथम महिला एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती शीला त्रिपाठी ने इस दिवस पर उपस्थित समस्त सदस्यों का स्वागत करते हुए सभी के प्रति अपना आभार प्रकट किया। मुख्य वक्ता माननीय कुलपति प्रो. एस.एन. मुंडा ने अपने संबोधन में जनजातीय समुदायों की मूलभूत परिस्थितियों से अवगत कराते हुए उनके पशु-पक्षियों प्रकृति से संबंध एवं उसके आधार पर होनेवाले पूर्वाभासों का वर्णन किया तथा उनके खान-पान एवं औषधियों पर चर्चा की। उन्होंने जनजातीय संस्कृति में निहित गीतों एवं नृत्यों को सामाजिक मनोदशा से संबद्ध करते हुए उन पर निरंतर अध्ययन करने की आवश्यकता व्यक्त की। मुख्य अतिथि माननीय कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने उत्तराखंड की विभिन्न जनजातियों के बारे में चर्चा करते हुए प्राकृतिक संसाधनों से खुद को जोड़े रखने की उनकी मनोवृत्ति की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदाय संधारणीय प्रथाओं के कार्यान्वयन में पांरगत हैं तथा जल, वन, बीज जैसे प्राकृतिक स्त्रोतों को पूजते हैं जिनसे सभी संसाधनों की उत्पत्ति होती है। इस दिवस पर इंगाँराजवि के जनजातीय अध्ययन विभाग के छात्रों सुश्री नूतन केवट एवं अमित के. सिंह द्वारा भी विचार प्रस्तुत किए गए जिसमें उन्होंने अपनी व्यावहारिक परिस्थिति तथा एक समुदाय के रूप में किए जा रहे अपने प्रयासों के बारे में समस्त सदस्यों को अवगत कराया। इस कार्यक्रम का संचालन जनजातीय अध्ययन संकाय के सहायक प्राध्यापक डॉ. राकेश कुमार सोनी द्वारा किया गया तथा सह-संयोजन सहायक प्राध्यापकों डॉ. जी.एस. महापात्रा एवं डॉ. प्रमोद कुमार द्वारा किया गया। कार्यक्रम के आयोजन सदस्य जनजातीय अध्ययन संकाय के सहायक प्राध्यापक डॉ. राकेश सोनी, डॉ. काशी ईस्वरप्पा, डॉ. कुमकुम कस्तूरी एवं डॉ. अनुश्री श्रीनिवासन रहे। वेबिनार के समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन इंगाँराजवि के राजभाषा अनुभाग की हिंदी अधिकारी एवं आयोजन सचिव डॉ. अर्चना श्रीवास्तव द्वारा दिया गया।

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