(मनोज द्विवेदी, अनूपपुर , म प्र)
अनूपपुर (अंचलधारा) लेखक एवं विचारक मनोज द्विवेदी ने कहा कि कोविड - १९ का संक्रमण दुनिया के इतिहास में एक ऐसी घटना है , जिसने सभ्यता की आड में दबी - छुपी तमाम विसंगतियों की परतों को उधेड कर रख दिया है। विकसित , विकासशील देशों की परिभाषाएं मानों एक - दूसरे को मुंह चिढाती नजर आ रही हैं। अमेरिका , चीन, इटली, स्पेन, रुस, फ्रांस, ईरान ,आस्ट्रेलिया, जापान, भारत जैसे 200 से अधिक देशों में समूची व्यवस्था धरी की धरी रह गयी । वैज्ञानिक अनुसंधानों , तकनीकी के बूते दुनिया पर राज करने वाले देश घुटनों पर आ टिके हैं। पृथ्वी पर प्रकृति ने एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित कर दी है।
भारत जैसे देश में चार माह बीतते - बीतते कोरोना संक्रमितों का आंकडा 32000 को पार कर गया है। जबकि मरने वालों की संख्या 1000 पार कर गयी है। अन्य बड़े देशों की तुलना मे सवा अरब की आबादी वाले भारत में यह आंकड़ा बड़ा नहीं है। लेकिन सवाल उठा है कि लाकडाऊन की चरमराती व्यवस्था के बीच जब राज्यों की सीमाएँ सील करने का आदेश दिया गया था, सीमाएँ सख्ती से सील क्यों नहीं की गयीं ? क्या राज्य सरकारे इन मजदूरों के लिये अपने अपने राज्यों में आवास , भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकीं या इस राहत कार्य की आड में कोई बड़ा घोटाला किया जा रहा है ? जिसका परिणाम यह निकला है कि आज भी श्रमिकों , प्रवासी कामगारों के समूह एक राज्य से दूसरे राज्य , एक जिले से दूसरे जिले पलायन करते देखे जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित छोटे से अनूपपुर जैसे जिले पर इसकी सर्वाधिक मार पडती दिख रही है । जहाँ लाकडाऊन के दिनों में बाहर से 21000 से अधिक लोग आ गये। प्रशासन की तमाम कोशिशों , बाडबन्दी के बावजूद ऐसा एक भी दिन नहीं गुजर रहा , जब छत्तीसगढ़ की सीमा पार कर अनूपपुर की सीमा में घुस कर आगे की यात्रा करने वाले कई दर्जन लोगों को रहने, खाने - पीने की व्यवस्था प्रशासन या समाजसेवी लोग ना कर रहे हों।
यह राष्ट्रीय ,अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया तथा तमाम श्रमिक संगठनों के ध्यान से परे बात है कि लाकडाऊन के 40 दिन बाद भी इतने अधिक श्रमिकों का पलायन कैसे हो रहा है ? किसी मीडिया या जनप्रतिनिधि या श्रमिक संगठन ने यह आवाज नहीं उठाई कि जिन संस्थानों, कंपनियों, फैक्ट्रियों ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडते हुए इन्हे अपने - अपने घरों को जाने को कह दिया , उनके विरुद्ध क्या कार्यवाही उन राज्यों की सरकारे कर रही हैं। कैसे राज्यों की सीमाएँ पार करके धडल्ले से लाकडाऊन का उल्लंघन कर ये श्रमिक जिलों में लागू धारा 144 तोडते हुए समूह में आना - जाना कर रहे हैं ?
रीवा - शहडोल जैसे संभाग तीन माह तक ग्रीन जोन बने रहे तथा एक भी पाजिटिव व्यक्ति नहीं मिला । लेकिन फिर बाहर से आने वाले व्यक्तियों की लापरवाही तथा 14 दिन के क्वेरेन्टाईन नियमों की अवहेलना करने से कुछ पाजिटिव केस सामने आने से जनता में थोडी घबराहट देखी गयी है।
प्रवासी श्रमिकों की बडी आवाजाही ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में रोजगार के लिये बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष पलायन होता रहा है। छत्तीसगढ़, म प्र, बिहार, झारखंड, उडीसा, उत्तरप्रदेश , राजस्थान के लाखों लोग रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में जाते रहे हैं। ठेकेदारों के माध्यम से या व्यक्तिगत रुप से जो लोग घरों, कम्पनियों, फैक्टियों, संस्थानों, ईंट भट्ठों , खेतों मे काम करने जाने वाले लोगों को अच्छा पैसा मिलता है। अधिक मजदूरी मिलने के कारण ये श्रमिक दूर - दराज के राज्यों में पलायन करते रहे हैं। यह दशकों से चला आ रहा सिलसिला है, जो आगे भी होगा।
आकस्मिक लाकडाऊन लागू करते वक्त केन्द्र ने राज्य सरकारों से तथा राज्य सरकारों ने संबंधित कंपनियों से इन्हे काम से ना निकालने, इनके रहने ,भोजन की व्यवस्था करने की अपील की थी। अधिकांश स्थानों से भोजन , पानी के संकट ने मजदूरों को पलायन के लिये मजबूर किया। ट्रेन, बसें बन्द होने के कारण ये सैकडों - हजारों किमी की पैदल यात्रा करने को बाध्य हुए।
श्रमिकों के पलायन को लेकर तमाम राजनैतिक दलों , मीडिया, एक्टिविस्ट ने सवाल उठाए हैं। जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा । देश में कार्यरत तमाम श्रमिक संगठनों की भूमिका पर भी गंभीर सवाल हैं । श्रमिकों के जन- धन बल के बूते चांदी काटने वाले श्रमिक संगठनों की कोई सकारात्मक भूमिका इन श्रमिकों के हित में नहीं दिखी। एक भी श्रमिक संगठन ना तो श्रमिकों के लिये भोजन - राशन - दवाओं- संसाधनों की व्यवस्था करता दिखा ना ही कंपनियों / ठेकेदारों पर दबाव बनाने सामने आया। ठेका श्रमिकों को इस दौरान मजदूरी भुगतान , उनके पीएफ पर भी संकट आता देखा गया।
कोरोना संक्रमण काल में पलायन करके अपने अपने घर पहुंचे इन श्रमिकों को काम उपलब्ध कराना या इन्हे राशन देना राज्य सरकारों के लिये अतिरिक्त कार्य होगा। लाकडाऊन से निकलने के बाद इन लाखों श्रमिकों के वापस अपने कार्य क्षेत्र में जाने की व्यवस्था तथा संक्रमण से बचाने की बड़ी कार्ययोजना पर भी सरकार को विचार करना होगा। पलायन की ऐसी किसी परिस्थितियों से बचने, निपटने तथा इसके लिये नियोक्ता कंपनियों , संस्थानों के लिये सख्त नियम कायदों की दरकार होगी। इन सबके बीच जिम्मेदार नागरिक के रुप मे श्रमिकों का बर्ताव भी बहुत मायने रखेगा। इक्का दुक्का स्थानों को छोड दें तो कहीं भी इन श्रमिकों ने धैर्य को छोड़ दें तो कानून व्यवस्था की स्थिति खडी नहीं की है।
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