(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) भगवान राम और भैया भारत के चरित्र से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी अन्य के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।भरत जी, राम जी को ही अयोध्या का राजा मानते हैं और इसी कारण लाख समझाने पर भी उन्होंने राजगद्दी नहीं स्वीकार की।लेकिन दूसरी तरफ हम देखते हैं दुर्योधन ने युधिष्ठिर के अधिकार को नहीं स्वीकार किया और महाभारत हो गया।
उक्त बातें अनूपपुर (मध्यप्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए सातवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में भगवान के चित्रकूट प्रवास और आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि रामचरितमानस में भरत चरित्र सुनने पर आपको धर्ममय और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
भारत जी हमेशा यह प्रयास करते रहते हैं की हमारा कौन सा ऐसा कर्म हो जिससे प्रभु प्रसन्न रहें।आज का मनुष्य भरत चरित्र तो सुनता है लेकिन उस शिक्षा नहीं लेता है।भाई से भाई का प्रेम अब केवल किताबी बातें रह गई हैं।थोड़ी सी संपत्ति के विवाद में एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन जाते हैं।अगर समाज में व्यक्ति अपने-अपने धर्म का पालन करने लगे तो राष्ट्र का कल्याण हो जाएगा।
पूज्यश्री ने कहा कि आज के मनुष्य के लिए यह स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है।जब हम मनुष्य के लिए निर्धारित 16 संस्कारों की बात करते हैं तो हमें पता चलता है कि लोग इस व्यवहार को मनमुखी होकर उपयोग में ले रहे हैं।हमें अपने परिवार के लोगों के धरती से विदा होने पर उनका विधिवत् संस्कार करना चाहिए। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि 10 दिन के पिंडदान से उसे आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है और पुनः वह अपना स्वरूप प्राप्त कर लेता है।संस्कार संपन्न करने में किसी भी तरह की कोताही नहीं करनी चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य का जीवन मिला है तो हमें जीने की ललक बढ़ाने की आवश्यकता है,भजन का स्वभाव बनाने की आवश्यकता है।जीवन का उद्देश्य भगवान का भजन ही होना चाहिए जैसे महाराजा दशरथ के जीने का उद्देश्य भगवान का दर्शन था और जाने का उद्देश्य भगवान के नाम का सिमरन था।राम राम करते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए थे।उन्हें देवलोक में स्थान मिला।हमारे सदग्रंथ बताते हैं कि पुण्यशाली व्यक्ति को ही देव लोक में स्थान मिलता है। तो हमें भी अपने जीवन में पुण्य बढ़ाने के लिए ही प्रयास करना चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि अगर परमार्थ पथ की यात्रा करनी है तो स्वार्थ को गठरी बांध के फेंकना होगा। क्योंकि स्वार्थ को सामने रखकर किया जाना वाला परमार्थ दोनों ही के लिए घातक होता है।
वर्तमान समय में मनुष्य की गतिविधियां और आचरण गलत दिशा में जा रही हैं।कई मामलों में पशुओं से आधुनिक मनुष्यों की तुलना करना पशुओं की बेइज्जती होगी। पशु को जब तक भूख ना लगे वह कहीं मुंह नहीं मारता है।पशु कभी भी अपनी आवश्यकता से अधिक भोजन भी नहीं करता है। ऐसे कई व्यवहार हैं जो पशुओं को आज के मनुष्य से श्रेष्ठ साबित करते हैं।
भगवान और सनातन ग्रंथों का विरोध करने वाले या निंदा को माध्यम बना कर अपनी छवि निखारने का प्रयास करने वालों लोगों के साथ जो होगा उसे दुनिया के लोग देखेंगे। ऐसे लाखों उदाहरण भरे पड़े हैं। 10 से 12 वर्ष के अंदर प्रकृति उनके साथ खुद न्याय करती है।
पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में भगवान और भागवतों के साथ नहीं उलझना चाहिए। भगवान तो किसी का दोष माफ भी कर देते हैं।लेकिन, अगर उनके भक्तों के साथ किसी तरह का अन्याय होता है तो उसे भगवान कभी भी माफ नहीं करते हैं।यह हमारे विभिन्न सदग्रंथों में ही उदाहरण के साथ वर्णित है।
मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि उससे कभी भी किसी साधु संत और भगत का अपकार नहीं हो। अगर ऐसा होता है तो परिणाम भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि इन दिनों कुछ लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि सनातन धर्म खतरे में है।वास्तव में इस समय सनातन धर्म को अपने ही लोगों से खतरा है किसी बाहरी से नहीं। पुड़िया बेचने वाले, जटा से रुद्राक्ष निकालने वाले और न जाने क्या-क्या करने वाले लोग धर्म के नाम पर तरह-तरह की रोटी सेंक रहे हैं और यह बहुत खतरनाक स्थिति है।
पूज्य महाराज जी ने कहा कि सनातन धर्म में संकल्प की बड़ी मर्यादा है।किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के पहले संकल्पित होना होता है तभी शुभ कार्य का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब हम संकल्प लेते हैं तो उसे पूरा भी स्वयं अपने हाथों से करना चाहिए। किसी और को जिम्मेदारी देकर नहीं। भागवत पूजन विनोद का विषय नहीं है। जहां धर्म सिद्धांत है, वहां कोई अन्य विकल्प नहीं होना चाहिए। हमारी संस्कृति में धर्म ही मूल है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन के हर पल को जीने की कला विभिन्न धर्म ग्रंथों में संकलित कर रखी है। श्रीरामचरितमानस इस कलयुग में कल्पतरु है जिसकी एक एक पंक्ति मानव जीवन को सही मार्ग दिखाने के लिए और भगवत दर्शन कराने के लिए बहुत ही सटीक है।
महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी,भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।
उक्त बातें अनूपपुर (मध्यप्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए सातवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में भगवान के चित्रकूट प्रवास और आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि रामचरितमानस में भरत चरित्र सुनने पर आपको धर्ममय और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
भारत जी हमेशा यह प्रयास करते रहते हैं की हमारा कौन सा ऐसा कर्म हो जिससे प्रभु प्रसन्न रहें।आज का मनुष्य भरत चरित्र तो सुनता है लेकिन उस शिक्षा नहीं लेता है।भाई से भाई का प्रेम अब केवल किताबी बातें रह गई हैं।थोड़ी सी संपत्ति के विवाद में एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन जाते हैं।अगर समाज में व्यक्ति अपने-अपने धर्म का पालन करने लगे तो राष्ट्र का कल्याण हो जाएगा।
पूज्यश्री ने कहा कि आज के मनुष्य के लिए यह स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है।जब हम मनुष्य के लिए निर्धारित 16 संस्कारों की बात करते हैं तो हमें पता चलता है कि लोग इस व्यवहार को मनमुखी होकर उपयोग में ले रहे हैं।हमें अपने परिवार के लोगों के धरती से विदा होने पर उनका विधिवत् संस्कार करना चाहिए। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि 10 दिन के पिंडदान से उसे आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है और पुनः वह अपना स्वरूप प्राप्त कर लेता है।संस्कार संपन्न करने में किसी भी तरह की कोताही नहीं करनी चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य का जीवन मिला है तो हमें जीने की ललक बढ़ाने की आवश्यकता है,भजन का स्वभाव बनाने की आवश्यकता है।जीवन का उद्देश्य भगवान का भजन ही होना चाहिए जैसे महाराजा दशरथ के जीने का उद्देश्य भगवान का दर्शन था और जाने का उद्देश्य भगवान के नाम का सिमरन था।राम राम करते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए थे।उन्हें देवलोक में स्थान मिला।हमारे सदग्रंथ बताते हैं कि पुण्यशाली व्यक्ति को ही देव लोक में स्थान मिलता है। तो हमें भी अपने जीवन में पुण्य बढ़ाने के लिए ही प्रयास करना चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि अगर परमार्थ पथ की यात्रा करनी है तो स्वार्थ को गठरी बांध के फेंकना होगा। क्योंकि स्वार्थ को सामने रखकर किया जाना वाला परमार्थ दोनों ही के लिए घातक होता है।
वर्तमान समय में मनुष्य की गतिविधियां और आचरण गलत दिशा में जा रही हैं।कई मामलों में पशुओं से आधुनिक मनुष्यों की तुलना करना पशुओं की बेइज्जती होगी। पशु को जब तक भूख ना लगे वह कहीं मुंह नहीं मारता है।पशु कभी भी अपनी आवश्यकता से अधिक भोजन भी नहीं करता है। ऐसे कई व्यवहार हैं जो पशुओं को आज के मनुष्य से श्रेष्ठ साबित करते हैं।
भगवान और सनातन ग्रंथों का विरोध करने वाले या निंदा को माध्यम बना कर अपनी छवि निखारने का प्रयास करने वालों लोगों के साथ जो होगा उसे दुनिया के लोग देखेंगे। ऐसे लाखों उदाहरण भरे पड़े हैं। 10 से 12 वर्ष के अंदर प्रकृति उनके साथ खुद न्याय करती है।
पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में भगवान और भागवतों के साथ नहीं उलझना चाहिए। भगवान तो किसी का दोष माफ भी कर देते हैं।लेकिन, अगर उनके भक्तों के साथ किसी तरह का अन्याय होता है तो उसे भगवान कभी भी माफ नहीं करते हैं।यह हमारे विभिन्न सदग्रंथों में ही उदाहरण के साथ वर्णित है।
मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि उससे कभी भी किसी साधु संत और भगत का अपकार नहीं हो। अगर ऐसा होता है तो परिणाम भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि इन दिनों कुछ लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि सनातन धर्म खतरे में है।वास्तव में इस समय सनातन धर्म को अपने ही लोगों से खतरा है किसी बाहरी से नहीं। पुड़िया बेचने वाले, जटा से रुद्राक्ष निकालने वाले और न जाने क्या-क्या करने वाले लोग धर्म के नाम पर तरह-तरह की रोटी सेंक रहे हैं और यह बहुत खतरनाक स्थिति है।
पूज्य महाराज जी ने कहा कि सनातन धर्म में संकल्प की बड़ी मर्यादा है।किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के पहले संकल्पित होना होता है तभी शुभ कार्य का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब हम संकल्प लेते हैं तो उसे पूरा भी स्वयं अपने हाथों से करना चाहिए। किसी और को जिम्मेदारी देकर नहीं। भागवत पूजन विनोद का विषय नहीं है। जहां धर्म सिद्धांत है, वहां कोई अन्य विकल्प नहीं होना चाहिए। हमारी संस्कृति में धर्म ही मूल है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन के हर पल को जीने की कला विभिन्न धर्म ग्रंथों में संकलित कर रखी है। श्रीरामचरितमानस इस कलयुग में कल्पतरु है जिसकी एक एक पंक्ति मानव जीवन को सही मार्ग दिखाने के लिए और भगवत दर्शन कराने के लिए बहुत ही सटीक है।
महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी,भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।
0 Comments