(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) लेखक एवं चिंतक चैतन्य मिश्रा ने कहां की मध्यप्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव की तरफ सियासी दलों के कदम बढ़ रहे हैं,वैसे ही हर वर्ग को साधने की कवायद भी तेज होती नजर आ रही है।विधानसभा चुनाव को देखते हुए सियासी दल अपनी कमर कसती हुई दिखाई दे रही है।साल 2023 के अंत में एम.पी. में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में पार्टियों के नेता एवं कार्यकर्ता अपनी अपनी मांगो को लेकर मुखर हो रहे हैं।
अनूपपुर जिले के काई वरिष्ठ कांग्रेसीयो ने अपनी ही पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगते हुए कहा की प्रदेश के साथ-साथ जिले में भी मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुरूप कहीं पर भी प्रतिनिधित्व नहीं मिला।कांग्रेस का यह वादा है कि हर समाज को उसकी आबादी के अनुसार सत्ता में भागीदारी दी जाएगी। 2011 की जनगणना के अनुसार
मध्यप्रदेश की कुल आबादी में 6.57 प्रतिशत मुसलमान हैं। यानी राज्य में करीब 50 लाख मुस्लिम मतदाता हैं।वहीँ मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले की बात की जाए तो जिले में मुस्लिम समुदाय के मतदाता लगभग 47 हजार है।
जिसमें अनूपपुर विधानसभा में मुस्लिम मतदाता लगभग 20 हजार,कोतमा विधानसभा में मुस्लिम मतदाता लगभग 17 हजार और पुष्पराजगढ़ विधानसभा में मुस्लिम मतदाता लगभग 10 हजार मतदाता है।
लेकिन कांग्रेस पार्टी का सबसे मजबूत वोटर होने के बावजूद कार्यक्रमों में मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा की जा रही है।समुदाय को हाशिये पर धकेला जा रहा है।अधिकांश मुस्लिम मतदाताओं ने आरोप लगते हुए कहा की विगत दिनों जिले में प्रदेश के दो बड़े नेताओ कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह का आगमन कार्यक्रम हुआ।जिसमे जिले के किसी भी अल्पसंख्यक नेता को मंच पर स्थान नहीं दिया गया।न ही अनूपपुर जिले के नगरपालिका चुनाव में एक भी अल्पसंख्यक, मुस्लिम नेता या कार्यकर्ता को पार्षद का टिकट नहीं दिया गया।लगातार विगत तीन वर्षों से जिला कांग्रेस की कमेटी का गठन नहीं किया गया।जिले में कांग्रेस पार्टी के नाम पर जो कुछ है वो केवल ज़िलाध्यक्ष ही है और चंद मुठ्ठी भर फेसबुकिया नेताओं के भरोसे लिया निर्णय लिया जा रहा है।वही निष्ठावान कार्यकर्ताओं और नेताओं को दर किनार किया जा रहा है।व्यक्तिवादी सोच,तुष्टीकरण की नीति,संगठन विस्तार पर ध्यान नहीं।
पार्टी में अलग-अलग खेमे बने हुए हैं,आमजन से सीधे जुड़ाव नहीं है,जिला कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा है कथनी और करनी में अंतर जैसे कारणों से जिले में कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है।वहीं संगठन के दम पर गत विधानसभा चुनाव 2018 में जिले की तीनो सीटों में क्लीन स्वीप किया था।लेकिन अब यहां की परिस्थितियां और समीकरण दोनों बदल गए है।ऐसे में क्या मौजूदा कांग्रेस आगामी समय में सिर्फ भाजपा के विरोधी लहर के भरोसे चुनाव जीतने का सपना देख रही है।अपनी खुद की कोई रणनीति नहीं है।वहीं एक तरफ भाजपा, मुस्लिम वोटर्स को साधने के लिए जगह-जगह 'सूफी संवाद' करके अपने खिलाफ बनी हुई मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने का प्रयास कर रही है।वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के नेता अपने सबसे मजबूत वोटर को उपेक्षित कर कांग्रेस पार्टी को कमज़ोर करने में लगे हुए है।कहीं यही कारण आने वाले विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस पार्टी को भारी न पड़ जाए...?
अनूपपुर जिले के काई वरिष्ठ कांग्रेसीयो ने अपनी ही पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगते हुए कहा की प्रदेश के साथ-साथ जिले में भी मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुरूप कहीं पर भी प्रतिनिधित्व नहीं मिला।कांग्रेस का यह वादा है कि हर समाज को उसकी आबादी के अनुसार सत्ता में भागीदारी दी जाएगी। 2011 की जनगणना के अनुसार
मध्यप्रदेश की कुल आबादी में 6.57 प्रतिशत मुसलमान हैं। यानी राज्य में करीब 50 लाख मुस्लिम मतदाता हैं।वहीँ मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले की बात की जाए तो जिले में मुस्लिम समुदाय के मतदाता लगभग 47 हजार है।
जिसमें अनूपपुर विधानसभा में मुस्लिम मतदाता लगभग 20 हजार,कोतमा विधानसभा में मुस्लिम मतदाता लगभग 17 हजार और पुष्पराजगढ़ विधानसभा में मुस्लिम मतदाता लगभग 10 हजार मतदाता है।
लेकिन कांग्रेस पार्टी का सबसे मजबूत वोटर होने के बावजूद कार्यक्रमों में मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा की जा रही है।समुदाय को हाशिये पर धकेला जा रहा है।अधिकांश मुस्लिम मतदाताओं ने आरोप लगते हुए कहा की विगत दिनों जिले में प्रदेश के दो बड़े नेताओ कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह का आगमन कार्यक्रम हुआ।जिसमे जिले के किसी भी अल्पसंख्यक नेता को मंच पर स्थान नहीं दिया गया।न ही अनूपपुर जिले के नगरपालिका चुनाव में एक भी अल्पसंख्यक, मुस्लिम नेता या कार्यकर्ता को पार्षद का टिकट नहीं दिया गया।लगातार विगत तीन वर्षों से जिला कांग्रेस की कमेटी का गठन नहीं किया गया।जिले में कांग्रेस पार्टी के नाम पर जो कुछ है वो केवल ज़िलाध्यक्ष ही है और चंद मुठ्ठी भर फेसबुकिया नेताओं के भरोसे लिया निर्णय लिया जा रहा है।वही निष्ठावान कार्यकर्ताओं और नेताओं को दर किनार किया जा रहा है।व्यक्तिवादी सोच,तुष्टीकरण की नीति,संगठन विस्तार पर ध्यान नहीं।
पार्टी में अलग-अलग खेमे बने हुए हैं,आमजन से सीधे जुड़ाव नहीं है,जिला कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा है कथनी और करनी में अंतर जैसे कारणों से जिले में कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है।वहीं संगठन के दम पर गत विधानसभा चुनाव 2018 में जिले की तीनो सीटों में क्लीन स्वीप किया था।लेकिन अब यहां की परिस्थितियां और समीकरण दोनों बदल गए है।ऐसे में क्या मौजूदा कांग्रेस आगामी समय में सिर्फ भाजपा के विरोधी लहर के भरोसे चुनाव जीतने का सपना देख रही है।अपनी खुद की कोई रणनीति नहीं है।वहीं एक तरफ भाजपा, मुस्लिम वोटर्स को साधने के लिए जगह-जगह 'सूफी संवाद' करके अपने खिलाफ बनी हुई मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने का प्रयास कर रही है।वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के नेता अपने सबसे मजबूत वोटर को उपेक्षित कर कांग्रेस पार्टी को कमज़ोर करने में लगे हुए है।कहीं यही कारण आने वाले विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस पार्टी को भारी न पड़ जाए...?
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