(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) मध्यप्रदेश की पावन धरती मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में सनातन धर्म व संस्कृति को लेकर बड़े पैमाने पर साधु संतों सहित यहां की आम जनता भी हिन्दुत्व और सनातन को लेकर धीर गम्भीर है,मध्यप्रदेश कॉंग्रेस कमेटी के सचिव वा परम धर्म सांसद श्रीधर शर्मा ने संसद भवन के उद्घाटन समारोह पर शंकराचार्यों को दरकिनार कर सनातन के नाम पर राजनीति करने पर तंज कसते हुए कहा कि इस पावन माटी से हम सनातन धर्म और संस्कृति की नींव को मजबूती प्रदान करने के लिए सदैव तत्पर हैं और आगे भी हमारी पीढियां इस दिशा में अग्रसर रहेंगी लेकिन इसके लिए हमें अपनी वर्तमान पीढ़ी को संस्कारवान और सनातन से अवगत कराने की आवश्यकता है।
नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह को लेकर भाजपा सरकार की नीतियां समझ से परे है।भाजपा सरकार एक ओर तो हिंदू राष्ट्र के राग आलाप रही है और सनातन धर्म और संस्कृति के नाम पर अपना वोट बैंक बनाने का कार्य कर रही है लेकिन भाजपा सरकार किस दिशा में जा रही है,शायद इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है।
हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की नींव हमारे चार पीठ के शंकराचार्यों और तेरह अखाड़ों के सनातनी साधुओं से निर्धारित होती है लेकिन जब सनातन संस्कृति की रक्षा की बात आती है तो भाजपा सरकार इन नींव की ईंटों को दरकिनार कर देती है और स्वयंभू होने का दिखावा करती है।विगत दिनों सनातन धर्म गुरुओं के अपमान की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है,जब ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी को भगवान केदारनाथ के कपाट खोले जाने पर प्रथम दर्शन से वंचित रखा गया और अगले दिन स्वामी जी से माफी मांग कर खानापूर्ति करने का प्रयास किया गया।संतों और सनातन के अपमान की यह कहानी कुछ नई नहीं है बल्कि यह सब एक साजिश के तहत समूचे विश्व पटल पर योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है, जिससे कि सनातन संस्कृति और सभ्यता को नीचा दिखाया जा सके लेकिन सनातन संस्कृति और सभ्यता इस संसार के प्रादुर्भव के समय की प्राचीनतम सभ्यता और धर्म है, जिसे नुकसान पहुंचा पाना किसी के बस की बात नहीं है।भाजपा सरकार अपने वोट बैंक और दक्षिण के प्रदेशों में अपना अस्तित्व समाप्त होता देख कूटनीति पर उतारू हो चुकी है और वास्तविक संतों का अपमान कर अपने चहेते लोगों की पूंछ परख कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर रही है लेकिन आम जनता टकटकी लगाकर सारे क्रियाकलाप देख रही है।वर्तमान सरकार को किसी भी राजनीतिक मुद्दों में धर्म का सहारा लेना बंद कर देना चाहिए और धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ का खेल बंद कर आम जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए राजनीति करना चाहिए।
नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह को लेकर भाजपा सरकार की नीतियां समझ से परे है।भाजपा सरकार एक ओर तो हिंदू राष्ट्र के राग आलाप रही है और सनातन धर्म और संस्कृति के नाम पर अपना वोट बैंक बनाने का कार्य कर रही है लेकिन भाजपा सरकार किस दिशा में जा रही है,शायद इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है।
हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की नींव हमारे चार पीठ के शंकराचार्यों और तेरह अखाड़ों के सनातनी साधुओं से निर्धारित होती है लेकिन जब सनातन संस्कृति की रक्षा की बात आती है तो भाजपा सरकार इन नींव की ईंटों को दरकिनार कर देती है और स्वयंभू होने का दिखावा करती है।विगत दिनों सनातन धर्म गुरुओं के अपमान की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है,जब ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी को भगवान केदारनाथ के कपाट खोले जाने पर प्रथम दर्शन से वंचित रखा गया और अगले दिन स्वामी जी से माफी मांग कर खानापूर्ति करने का प्रयास किया गया।संतों और सनातन के अपमान की यह कहानी कुछ नई नहीं है बल्कि यह सब एक साजिश के तहत समूचे विश्व पटल पर योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है, जिससे कि सनातन संस्कृति और सभ्यता को नीचा दिखाया जा सके लेकिन सनातन संस्कृति और सभ्यता इस संसार के प्रादुर्भव के समय की प्राचीनतम सभ्यता और धर्म है, जिसे नुकसान पहुंचा पाना किसी के बस की बात नहीं है।भाजपा सरकार अपने वोट बैंक और दक्षिण के प्रदेशों में अपना अस्तित्व समाप्त होता देख कूटनीति पर उतारू हो चुकी है और वास्तविक संतों का अपमान कर अपने चहेते लोगों की पूंछ परख कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर रही है लेकिन आम जनता टकटकी लगाकर सारे क्रियाकलाप देख रही है।वर्तमान सरकार को किसी भी राजनीतिक मुद्दों में धर्म का सहारा लेना बंद कर देना चाहिए और धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ का खेल बंद कर आम जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए राजनीति करना चाहिए।
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