(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का 13वां राज्य सम्मेलन 19-20 नवंबर 2022 को अनूपपुर में आयोजित होने जा रहा है।जिसमें मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध चित्रकार पंकज दीक्षित के कविता पोस्टर प्रदर्शित की जाएंगी।पंकज दीक्षित चित्रांकन कि वह मशहूर हस्ताक्षर हैं जिनके स्वयं के विचारों की अभिव्यक्ति कुछ इस तरह,जब वह कहते है यदि हम कला इतिहास की बात करें तो हर काल में शैलीगत परिवर्तन होते रहे हैं।परन्तु कलाकार के मन की यह अभिव्यक्ति नहीं बदली।
पंकज दीक्षित अपनी कला सृजन के बारे में स्पष्ट राय देते हुए कहते हैं कि “मैं स्वयं के आनंद के लिए चित्र बनाता हूँ और यह मेरे अन्तर्मन की सुखद कला यात्रा भी है।”
उनके शहर म.प्र. के जिला अशोकनगर में लगभग 35 वर्षों से सक्रिय चित्रकार पंकज के हॉलनुमा कमरे में रेखाचित्रों और पेंटिंग्स से सजी दीवार,तो दूसरी तरफ कविता पोस्टर। आधी दीवार कवर करती हुई बड़ी सी रैक में करीने से सजे देश और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक उपन्यास,नाटक, कहानी और कविता संग्रह बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।कुल मिलाकर गम्भीर पढ़ाकू चित्रकार का स्टूडियों हर कला प्रेमियों को आकर्षित करता है।
पंकज आज तक सृजनरत हैं,यही वजह है कि उनकी कृतियां हजारों की संख्या पार कर चुकी हैं।उनके दिन की शुरुआत कविता-पोस्टर बनाने से होती है।स्पष्टवादी और सामाजिक दृष्टिकोण होने के कारण वे एक एक्टिविस्ट कलाकार के रुप में देखे जा सकते हैं।
पंकज दीक्षित के चित्र और रेखांकन सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदनाओं के स्तर पर नये रुपों में बार-बार हमारे सामने आते हैं।यही कारण है कि वे परसाई, रेणु, प्रेमचन्द, निराला, नागार्जुन, दुष्यंत, पाश, गोर्की और नेरुदा की देहों की यात्रा करते हुए आगे चले जाते हैं।
उनके रंग भाषा में मिलकर एक अलग संसार से परिचित कराते हैं।पंकज के चित्रों में दोहराव,एक जैसे फिगर और चेहरे उनकी पहचान बन गई है।नाटकों से गहरे जुड़ाव होने के कारण वे विदूषक की तरह बार-बार अपनी बात चित्रों के माध्यम से कहने की कोशिश करते हैं।
रेखाचित्रों में सामाजिक जीवन समूह के रुप में आकृतियां तथा चेहरों की पुनरावृत्ति के साथ समाज में हाशिए के लोग,कच्चे घरों की बस्तियों के चित्र आमजन का प्रतिनिधित्व करती हुई जनपक्षधरता की बात करते हैं । उनके रेखाकंनों में संघर्ष, प्रतिरोध, संवेदना और प्रेम की झलक देखने को मिलती है।
वे ब्लैक कलर से इस तरह चित्र रचना करते हैं कि व्हाईट स्पेस स्वयं चित्र का हिस्सा बन जाता है,तो कभी सीधे गाढ़ा कलर लगाते हुए ड्राय स्ट्रोक्स से स्पेस मेन्टेन करते हुए चित्र की गहराई में चले जाते हैं।
पेन वर्क करते समय छोटे-छोटे बिन्दू आपस में उलझते हुए गहरे और हल्के प्रभाव से टेक्चर बनाते हैं।खाली स्पेस रेखाकंन को प्रभावी बनाता है यही उनकी विशेषता भी है, जो उनके मौलिक रेखाचित्रों की अलग पहचान बनाती है। उनकी रेखाओं में लय, रिदम, धैर्य और साधना स्पष्ट नजर आती है।पंकज के रेखांकनों को देखने से लगता है कि वे एक मूड के चित्रकार हैं।
रंगो से संवाद पकंज चटख रंगों को लेकर कैनवस और पेपर पर इस तरह चलाते हैं कि सभी रंग आपस में मिलकर एक दूसरे को आत्मसात कर कई रुपों में परिवर्तित होकर अलग ही रूपक गढ़ते हैं।जहां उच्च सौन्दर्य के उलट डिस्टोर्शन में भी सौन्दर्यबोध झलकता है।स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के पक्षधर पंकज की मौलिक चित्र शैली में समाज के आमजन समूह और चेहरों के रुप में अपनी उपस्थिति की ओर ध्यान खींचते हैं।कभी-कभी उनके कैरेक्टर (चेहरे और व्यक्ति समूह) रेखाचित्रों की सीमाओं को लांघकर पेन्टिंग में अनायास आ जाते हैं। यह उनके सतत् सृजन की स्थिति के कारण होता है।उनके मूर्त और अमूर्त चित्र स्थिरता का आभास कराते हैं।जैसे वे अपनी पूरी कहानी कहना चाहते हों।रंगों में छिपी हुई आकृतियां, झोपड़ी चेहरे और पेड़ों की उपस्थिति एक रिदम और लय में चलते हैं ।उनके चित्रों में हम देख सकते है कि किस तरह हरे, पीले, नीले रंगो के मिश्रित धूसर आयातों में छिपा चेहरा स्पेस और डेफ्थ के कारण प्रभावी बन गया है।एक और चित्र में जहां आसमान से सूरज बस्ती में आकर व्यक्तियों से संवाद करता दिख रहा है।तो दाईं ओर एक चेहरा है, दूर वीरान झोपड़ियां है बांयी तरफ तीन आयतनुमा ज़मीन के ऊपर फसल है, जो चित्र में तीन तनों से विभक्त आम और खास वर्ग की स्थिति दर्शाता है।यहां उनकी कल्पनाशीलता और मौलिकता चित्रों में साफ झलकती है।
पारदर्शी चित्रों का सम्मोहन ट्रांसपेरेन्ट वाटर कलर ब्लैक और ब्राउन टोन में डेफ्थ और स्पेस के साथ दूर पहाड़ पर कच्चे मकानों की कतार और पगडंडियों वाला रास्ता ग्रामीण परिवेश को और अधिक प्रभावी बनाता है।इसी तरह स्पेस और डेफ्थ लिए ग्रामीण परिवेश में झोपड़ियों की घनी बस्ती, बेतरतीब रास्ता, खाली छोड़ा गया पेपर का स्थान नदी और आकाश का आभास कराता है।एक ओैर चित्र में वीरान झोपड़ियॉ खण्डहर अवस्था में हैं, जहां एक व्यक्ति उजाड़ घरों का गवाह बना असहाय देख रहा है। दरअसल उनके चित्र गहरी आत्मीयता स्थापित करते हैं।वे हमारे आसपास के प्राकृतिक दृश्य को सीधे नहीं लेते बल्कि मन में वसी मौलिक छवि को कैनवस पर उकेरते हैं।यह उनकी रचनाशीलता और सतत् सृजन का कमाल है।
कॉलाज़ की रहस्यमयी दुनिया पंकज ऐसे चित्रकार हैं जिन्होने साधारण और अनुपयोगी चीजों के प्रयोग से उत्कृष्ठ कलाकृति का निर्माण कर अपने कला कौशल का परिचय दिया है।कॉलाज़ बनाते समय पंकज दीक्षित चटख रंगों के चमकीले कागजों के छोटे-छोटे टुकड़ों को वे साधारण तरीकों से पूरी गहराई और समझ के साथ इस तरह रफ टुकड़ों का प्रयोग करते हैं कि वे धारावी की विशाल रंगीन झोपड़पट्टियों की तरह उभरते हैं। जिस तरह पूनम के चाँद की रोशनी में नहाई हुई ये झोपड़ियाँ अमीरों के शहर में अपने अस्तित्व की कहानी कह रही हों।वे पेड़ पौधों के माध्यम से विशेषकर उनकी छाल के पके पुराने पीले हल्के और गहरे कत्थई टुकड़ों से पुरानी वीरान बस्तियों की रहस्यमयी संरचना को गढ़ते हैं, जहाँ स्त्री-पुरुषों की अनुपस्थिति या पलायन की कोई कहानी कहना चाहते हों।विकृत और अतियथार्थवादी कॉलाज़ शैली के चेहरों को कई रुपों में देख सकते हैं।एक और कॉलाज़ जहाँ फूलों पर मण्डलाती तितलियों का समूह खूबसूरत संयोजन के साथ सघन वन को बड़ी सुन्दरता से चित्र में विस्तार देते हैं।पंकज कॉलाज़ में ज्यादा मुखर और गम्भीर नजर आते हैं। यहां वे एकदम स्वतन्त्र होकर स्वयं कला के चरम आनंद पर पहुँचकर मानवीय संवेदनाओं और प्रकृति के करीब चले जाते हैं।इनके कॉलाज़ कभी—कभी पेन्टिंग का आभास कराते हैं । जैसे एक चित्र में गहरे और हल्के कत्थई रंग के साथ काला बिंदू पेन्टिंग का भ्रम पैदा करते हैं।एक और चित्र है जहां पूरे स्पेस में दो स्त्रियाँ काले कत्थई रंग और पीले लिबास में अनथक सदियों से अपनों का इंतजार कर रही हों पैरों के ठीक नीचे नीले रंग का तुकड़ा जैसे उनके आंसुओं की गवाही दे रहा हो।यहां स्पेश को पूरी समझ के साथ प्रयोग किया गया है।एक और कॉलाज़ में हम देख सकते हैं कि किसी पहाड़ी पर भीषण गर्मी से तपती हुई बेतरतीब वीरान बस्तियाँ अपने उज़ड़ने की करुण व्यथा कह रही हों।रंगीन चमकीले कागज के तुकड़ों से बने जटिल कॉलाज़ में सूरज भिन्न रुपों में अलग अर्थ लिए प्रकृति और इंसान के रहस्य को छिपाए है।एक काली बिल्ली चौकन्नी सी जैसे कोई संकेत दे रही हो।महानगर में कांक्रीट के जंगल का कॉलाज़ जहाँ इंसान अपनी अनंत इच्छाओं को पूरा करने में कही गुम हो गया है।
कविता पोस्टर एक आन्दोलन पंकज दीक्षित ने जिम्मेदार चित्रकार की तरह सबसे ज्यादा कविता पोस्टर बनाये हैं बल्कि आज तक नियमित कविता- पोस्टर बनाना जारी है,वे इप्टा और प्रलेस इकाई अशोकनगर के संस्थापक सदस्य होने के नाते नाटकों में भी बहुत सक्रिय रहे हैं।नाटक लिखने से निर्देशन तक और अभिनय में 30-35 वर्षों का अनुभव उनके अभिनय को यादगार बनाता है । चाहे शंकर शेष के पोस्टर नाटक में कल्लू का पात्र हो या स्वदेश दीपक के कोर्टमार्शल में कैप्टन विकास राय का यादगार अभिनय।इसी तरह उनका समर्पण भाव कविता-पोस्टर में पूरी मुखरता के साथ आता है।यही कारण है कि पंकज देश के पहले ऐसे स्वतन्त्र चित्रकार हैं जिन्होनें देश और दुनिया की चुनिंदा रचनाओं को कविता- पोस्टर के माध्यम से विस्तार देने का प्रयास किया है।
दारिया फो के अनुसार :- “अभिव्यक्ति का कोई भी रुप थियेटर साहित्य या कला जो अपने वक्त के बारे में कुछ नहीं कहता अप्रासंगिक है।”पंकज दीक्षित का मानना है कि कला सभी के लिए होनी चाहिए।वे यह भी कहते हैं कि आमजन गैलिरयों में जाने से कतराते हैं, तो एक तरह से कविता- पोस्टर के बहाने कविता-चौराहे पर लगाकर हम उन तक पहुँचने में सफल भी हुए हैं। जो आम लोगों को आसानी से समझ में आ जाते हैं। यह प्रयोग ओपन आर्ट गैलरी की तरह करते हुये देश के अनेक शहरों में लगभग 200 प्रदर्शनियां लगाई गई हैं। उनका कविता-पोस्टर आन्दोलन अपने आपमें एक मिसाल बन गया है ।
पंकज दीक्षित अपनी कला सृजन के बारे में स्पष्ट राय देते हुए कहते हैं कि “मैं स्वयं के आनंद के लिए चित्र बनाता हूँ और यह मेरे अन्तर्मन की सुखद कला यात्रा भी है।”
उनके शहर म.प्र. के जिला अशोकनगर में लगभग 35 वर्षों से सक्रिय चित्रकार पंकज के हॉलनुमा कमरे में रेखाचित्रों और पेंटिंग्स से सजी दीवार,तो दूसरी तरफ कविता पोस्टर। आधी दीवार कवर करती हुई बड़ी सी रैक में करीने से सजे देश और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक उपन्यास,नाटक, कहानी और कविता संग्रह बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।कुल मिलाकर गम्भीर पढ़ाकू चित्रकार का स्टूडियों हर कला प्रेमियों को आकर्षित करता है।
पंकज आज तक सृजनरत हैं,यही वजह है कि उनकी कृतियां हजारों की संख्या पार कर चुकी हैं।उनके दिन की शुरुआत कविता-पोस्टर बनाने से होती है।स्पष्टवादी और सामाजिक दृष्टिकोण होने के कारण वे एक एक्टिविस्ट कलाकार के रुप में देखे जा सकते हैं।
पंकज दीक्षित के चित्र और रेखांकन सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदनाओं के स्तर पर नये रुपों में बार-बार हमारे सामने आते हैं।यही कारण है कि वे परसाई, रेणु, प्रेमचन्द, निराला, नागार्जुन, दुष्यंत, पाश, गोर्की और नेरुदा की देहों की यात्रा करते हुए आगे चले जाते हैं।
उनके रंग भाषा में मिलकर एक अलग संसार से परिचित कराते हैं।पंकज के चित्रों में दोहराव,एक जैसे फिगर और चेहरे उनकी पहचान बन गई है।नाटकों से गहरे जुड़ाव होने के कारण वे विदूषक की तरह बार-बार अपनी बात चित्रों के माध्यम से कहने की कोशिश करते हैं।
रेखाचित्रों में सामाजिक जीवन समूह के रुप में आकृतियां तथा चेहरों की पुनरावृत्ति के साथ समाज में हाशिए के लोग,कच्चे घरों की बस्तियों के चित्र आमजन का प्रतिनिधित्व करती हुई जनपक्षधरता की बात करते हैं । उनके रेखाकंनों में संघर्ष, प्रतिरोध, संवेदना और प्रेम की झलक देखने को मिलती है।
वे ब्लैक कलर से इस तरह चित्र रचना करते हैं कि व्हाईट स्पेस स्वयं चित्र का हिस्सा बन जाता है,तो कभी सीधे गाढ़ा कलर लगाते हुए ड्राय स्ट्रोक्स से स्पेस मेन्टेन करते हुए चित्र की गहराई में चले जाते हैं।
पेन वर्क करते समय छोटे-छोटे बिन्दू आपस में उलझते हुए गहरे और हल्के प्रभाव से टेक्चर बनाते हैं।खाली स्पेस रेखाकंन को प्रभावी बनाता है यही उनकी विशेषता भी है, जो उनके मौलिक रेखाचित्रों की अलग पहचान बनाती है। उनकी रेखाओं में लय, रिदम, धैर्य और साधना स्पष्ट नजर आती है।पंकज के रेखांकनों को देखने से लगता है कि वे एक मूड के चित्रकार हैं।
रंगो से संवाद पकंज चटख रंगों को लेकर कैनवस और पेपर पर इस तरह चलाते हैं कि सभी रंग आपस में मिलकर एक दूसरे को आत्मसात कर कई रुपों में परिवर्तित होकर अलग ही रूपक गढ़ते हैं।जहां उच्च सौन्दर्य के उलट डिस्टोर्शन में भी सौन्दर्यबोध झलकता है।स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के पक्षधर पंकज की मौलिक चित्र शैली में समाज के आमजन समूह और चेहरों के रुप में अपनी उपस्थिति की ओर ध्यान खींचते हैं।कभी-कभी उनके कैरेक्टर (चेहरे और व्यक्ति समूह) रेखाचित्रों की सीमाओं को लांघकर पेन्टिंग में अनायास आ जाते हैं। यह उनके सतत् सृजन की स्थिति के कारण होता है।उनके मूर्त और अमूर्त चित्र स्थिरता का आभास कराते हैं।जैसे वे अपनी पूरी कहानी कहना चाहते हों।रंगों में छिपी हुई आकृतियां, झोपड़ी चेहरे और पेड़ों की उपस्थिति एक रिदम और लय में चलते हैं ।उनके चित्रों में हम देख सकते है कि किस तरह हरे, पीले, नीले रंगो के मिश्रित धूसर आयातों में छिपा चेहरा स्पेस और डेफ्थ के कारण प्रभावी बन गया है।एक और चित्र में जहां आसमान से सूरज बस्ती में आकर व्यक्तियों से संवाद करता दिख रहा है।तो दाईं ओर एक चेहरा है, दूर वीरान झोपड़ियां है बांयी तरफ तीन आयतनुमा ज़मीन के ऊपर फसल है, जो चित्र में तीन तनों से विभक्त आम और खास वर्ग की स्थिति दर्शाता है।यहां उनकी कल्पनाशीलता और मौलिकता चित्रों में साफ झलकती है।
पारदर्शी चित्रों का सम्मोहन ट्रांसपेरेन्ट वाटर कलर ब्लैक और ब्राउन टोन में डेफ्थ और स्पेस के साथ दूर पहाड़ पर कच्चे मकानों की कतार और पगडंडियों वाला रास्ता ग्रामीण परिवेश को और अधिक प्रभावी बनाता है।इसी तरह स्पेस और डेफ्थ लिए ग्रामीण परिवेश में झोपड़ियों की घनी बस्ती, बेतरतीब रास्ता, खाली छोड़ा गया पेपर का स्थान नदी और आकाश का आभास कराता है।एक ओैर चित्र में वीरान झोपड़ियॉ खण्डहर अवस्था में हैं, जहां एक व्यक्ति उजाड़ घरों का गवाह बना असहाय देख रहा है। दरअसल उनके चित्र गहरी आत्मीयता स्थापित करते हैं।वे हमारे आसपास के प्राकृतिक दृश्य को सीधे नहीं लेते बल्कि मन में वसी मौलिक छवि को कैनवस पर उकेरते हैं।यह उनकी रचनाशीलता और सतत् सृजन का कमाल है।
कॉलाज़ की रहस्यमयी दुनिया पंकज ऐसे चित्रकार हैं जिन्होने साधारण और अनुपयोगी चीजों के प्रयोग से उत्कृष्ठ कलाकृति का निर्माण कर अपने कला कौशल का परिचय दिया है।कॉलाज़ बनाते समय पंकज दीक्षित चटख रंगों के चमकीले कागजों के छोटे-छोटे टुकड़ों को वे साधारण तरीकों से पूरी गहराई और समझ के साथ इस तरह रफ टुकड़ों का प्रयोग करते हैं कि वे धारावी की विशाल रंगीन झोपड़पट्टियों की तरह उभरते हैं। जिस तरह पूनम के चाँद की रोशनी में नहाई हुई ये झोपड़ियाँ अमीरों के शहर में अपने अस्तित्व की कहानी कह रही हों।वे पेड़ पौधों के माध्यम से विशेषकर उनकी छाल के पके पुराने पीले हल्के और गहरे कत्थई टुकड़ों से पुरानी वीरान बस्तियों की रहस्यमयी संरचना को गढ़ते हैं, जहाँ स्त्री-पुरुषों की अनुपस्थिति या पलायन की कोई कहानी कहना चाहते हों।विकृत और अतियथार्थवादी कॉलाज़ शैली के चेहरों को कई रुपों में देख सकते हैं।एक और कॉलाज़ जहाँ फूलों पर मण्डलाती तितलियों का समूह खूबसूरत संयोजन के साथ सघन वन को बड़ी सुन्दरता से चित्र में विस्तार देते हैं।पंकज कॉलाज़ में ज्यादा मुखर और गम्भीर नजर आते हैं। यहां वे एकदम स्वतन्त्र होकर स्वयं कला के चरम आनंद पर पहुँचकर मानवीय संवेदनाओं और प्रकृति के करीब चले जाते हैं।इनके कॉलाज़ कभी—कभी पेन्टिंग का आभास कराते हैं । जैसे एक चित्र में गहरे और हल्के कत्थई रंग के साथ काला बिंदू पेन्टिंग का भ्रम पैदा करते हैं।एक और चित्र है जहां पूरे स्पेस में दो स्त्रियाँ काले कत्थई रंग और पीले लिबास में अनथक सदियों से अपनों का इंतजार कर रही हों पैरों के ठीक नीचे नीले रंग का तुकड़ा जैसे उनके आंसुओं की गवाही दे रहा हो।यहां स्पेश को पूरी समझ के साथ प्रयोग किया गया है।एक और कॉलाज़ में हम देख सकते हैं कि किसी पहाड़ी पर भीषण गर्मी से तपती हुई बेतरतीब वीरान बस्तियाँ अपने उज़ड़ने की करुण व्यथा कह रही हों।रंगीन चमकीले कागज के तुकड़ों से बने जटिल कॉलाज़ में सूरज भिन्न रुपों में अलग अर्थ लिए प्रकृति और इंसान के रहस्य को छिपाए है।एक काली बिल्ली चौकन्नी सी जैसे कोई संकेत दे रही हो।महानगर में कांक्रीट के जंगल का कॉलाज़ जहाँ इंसान अपनी अनंत इच्छाओं को पूरा करने में कही गुम हो गया है।
कविता पोस्टर एक आन्दोलन पंकज दीक्षित ने जिम्मेदार चित्रकार की तरह सबसे ज्यादा कविता पोस्टर बनाये हैं बल्कि आज तक नियमित कविता- पोस्टर बनाना जारी है,वे इप्टा और प्रलेस इकाई अशोकनगर के संस्थापक सदस्य होने के नाते नाटकों में भी बहुत सक्रिय रहे हैं।नाटक लिखने से निर्देशन तक और अभिनय में 30-35 वर्षों का अनुभव उनके अभिनय को यादगार बनाता है । चाहे शंकर शेष के पोस्टर नाटक में कल्लू का पात्र हो या स्वदेश दीपक के कोर्टमार्शल में कैप्टन विकास राय का यादगार अभिनय।इसी तरह उनका समर्पण भाव कविता-पोस्टर में पूरी मुखरता के साथ आता है।यही कारण है कि पंकज देश के पहले ऐसे स्वतन्त्र चित्रकार हैं जिन्होनें देश और दुनिया की चुनिंदा रचनाओं को कविता- पोस्टर के माध्यम से विस्तार देने का प्रयास किया है।
दारिया फो के अनुसार :- “अभिव्यक्ति का कोई भी रुप थियेटर साहित्य या कला जो अपने वक्त के बारे में कुछ नहीं कहता अप्रासंगिक है।”पंकज दीक्षित का मानना है कि कला सभी के लिए होनी चाहिए।वे यह भी कहते हैं कि आमजन गैलिरयों में जाने से कतराते हैं, तो एक तरह से कविता- पोस्टर के बहाने कविता-चौराहे पर लगाकर हम उन तक पहुँचने में सफल भी हुए हैं। जो आम लोगों को आसानी से समझ में आ जाते हैं। यह प्रयोग ओपन आर्ट गैलरी की तरह करते हुये देश के अनेक शहरों में लगभग 200 प्रदर्शनियां लगाई गई हैं। उनका कविता-पोस्टर आन्दोलन अपने आपमें एक मिसाल बन गया है ।
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