(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) प्रगतिशील लेखक संघ का इतिहास गौरवशाली रहा है। देश की जनता को शिक्षित करने के लिए ही प्रलेसं और भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा ) का गठन हुआ था। वर्तमान में एक निश्चित एजेंडे के तहत मनुष्य मनुष्य में भेद को बढ़ावा दिया जा रहा है।इस विभाजनकारी गतिविधि को मौजूदा सरकार का पूरा समर्थन भी हासिल है। इसके विरुद्ध साझा समझ विकसित करने की जरूरत है। ।
उक्त आशय के विचार सामने इंदौर में संम्पन्न प्रगतिशील लेखक संघ राज्य कार्यकारिणी की बैठक में आए।साहित्य-विचारधारा और प्रतिबद्धता विषय पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए लेखकों ने अपने विचार साझा किए। बैठक में वरिष्ठ कवि एवं प्रदेश राज्य अध्यक्ष मंडल के सदस्य कुमार अंबुज के आलेख अन्य मंचों का उपयोग या उपभोग पर भी चर्चा की गई।
अपने संबोधन में कुमार अंबुज ने कहा कि दक्षिणपंथी संगठनों के पास मान्य लेखक नहीं है,इसलिए वे अपने कार्यकर्ताओं को शासकीय,अर्ध शासकीय परिषदों, अकादमी,पत्र-पत्रिकाओं में पद देकर उन्हें लेखक सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।वे अपने आयोजनों की गरिमा और वैधता को बढ़ाने के लिए उन लेखकों को आमंत्रित करते हैं जो दक्षिण पंथ की विचारधारा से सहमत नहीं होते हैं। ऐसे आयोजनों में सम्मिलित होने के प्रलोभनो से लेखकों को बचना चाहिए।
प्रलेसं के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा ने कहा कि हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है।प्रलेसं व इप्टा के गठन के दौर में दुश्मन स्पष्ट था। देश के आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। पूंजीवाद साम्राज्यवाद में बदल रहा था।ऐसे समय में हमारे संगठनों ने जनता को शिक्षित करने के लिए सांस्कृतिक आंदोलन चलाया। बंगाल के अकाल के दौरान हमारे संगठनों के कार्य इतिहास में दर्ज हैं। आजादी के बाद भी जब जन आकांक्षाएं पूरी नहीं हुई,भ्रम टूटने लगे तब भी कई लेखकों ने झूठी आजादी पर सवाल उठाए। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए। वर्तमान शासकों का बेखौफ विश्लेषण करने की जरूरत है।हम और वे की विभाजन कारी नीतियों का विरोध किया जाना चाहिए।जो विरोध नहीं कर सकते वे कम से कम दक्षिणपंथीयों के साथ तो न दिखें। लेखक अपने जमीर को बचाए रख कर देश को तोड़ने वाली ताकतों को पहचाने।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रलेसं राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य विनीत तिवारी ने कहा कि वर्तमान निजाम के दौरान सच खतरे में है। विवेक और स्वतंत्र सोच पर हमला हो रहा है। जिन लेखकों ने सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक पाखंड और झूठ को बेनकाब किया उन्हें मार दिया गया। नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश सच का उत्खनन कर रहे थे। कामरेड पानसरे की शिवाजी पर लिखी एक पुस्तक शिवसेना के लिए चुनौती बन गई। यह लेखक और लेखन की ताकत है। इसलिए वर्तमान सरकार लेखकों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद रखकर उन्हें प्रताड़ित कर रही है और मार रही है। ऐसे समय में हमारा दायित्व है कि स्वतंत्र सोच के लेखकों, रंग कर्मियों को बचाने का प्रयास करें। प्रलेसं विचार की रक्षा करने वाला संगठन है। इसलिए ही प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे चलने वाली मशाल बताया था। विनीत तिवारी ने कहा कि आज ही के दिन कंधमाल में 500 ईसाइयों का कत्ल किया गया था। उन्हें न्याय दिलवाने की लड़ाई जारी है। नर्मदा घाटी के विस्थापितों के साथ ही हम हर उस पीड़ित के संघर्षों के साथ हैं जो अन्याय के खिलाफ लड़ रहे हैं।
प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव शैलेंद्र शैली के अनुसार प्रलेसं कोई वेलफेयर सोसाइटी नहीं है, यह जन आंदोलन है, इसमें हमारी भागीदारी क्या हो यह हमें तय करना होगा। व्यक्तिगत संबंधों और सार्वजनिक जीवन के द्वंद में दूरी बनाए रखी जानी चाहिए। इस हेतु साझा समझ विकसित करने की जरूरत है। चर्चा में उज्जैन से शशिभूषण, भोपाल से आरती, सागर से पी आर मलैया, जबलपुर से तरुण गुहा नियोगी, मंदसौर से असअद अंसारी, इंदौर से जावेद आलम, सारिका श्रीवास्तव, हरनाम सिंह ने भी शिरकत की। स्वागत उद्बोधन इंदौर इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष चुन्नीलाल वाधवानी ने दिया। एक शोक प्रस्ताव में पिछली बैठक के बाद दिवंगत लेखकों इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह, भोपाल के कहानीकार, लेखक ओम भारती, शहनाज इमरानी, गीतकार शिवकुमार अर्चन, मंदसौर के कहानी लेखक आलोक पंजाबी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। आभार इकाई के कार्यवाहक सचिव केसरी सिंह ने माना।
उक्त आशय के विचार सामने इंदौर में संम्पन्न प्रगतिशील लेखक संघ राज्य कार्यकारिणी की बैठक में आए।साहित्य-विचारधारा और प्रतिबद्धता विषय पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए लेखकों ने अपने विचार साझा किए। बैठक में वरिष्ठ कवि एवं प्रदेश राज्य अध्यक्ष मंडल के सदस्य कुमार अंबुज के आलेख अन्य मंचों का उपयोग या उपभोग पर भी चर्चा की गई।
अपने संबोधन में कुमार अंबुज ने कहा कि दक्षिणपंथी संगठनों के पास मान्य लेखक नहीं है,इसलिए वे अपने कार्यकर्ताओं को शासकीय,अर्ध शासकीय परिषदों, अकादमी,पत्र-पत्रिकाओं में पद देकर उन्हें लेखक सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।वे अपने आयोजनों की गरिमा और वैधता को बढ़ाने के लिए उन लेखकों को आमंत्रित करते हैं जो दक्षिण पंथ की विचारधारा से सहमत नहीं होते हैं। ऐसे आयोजनों में सम्मिलित होने के प्रलोभनो से लेखकों को बचना चाहिए।
प्रलेसं के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा ने कहा कि हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है।प्रलेसं व इप्टा के गठन के दौर में दुश्मन स्पष्ट था। देश के आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। पूंजीवाद साम्राज्यवाद में बदल रहा था।ऐसे समय में हमारे संगठनों ने जनता को शिक्षित करने के लिए सांस्कृतिक आंदोलन चलाया। बंगाल के अकाल के दौरान हमारे संगठनों के कार्य इतिहास में दर्ज हैं। आजादी के बाद भी जब जन आकांक्षाएं पूरी नहीं हुई,भ्रम टूटने लगे तब भी कई लेखकों ने झूठी आजादी पर सवाल उठाए। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए। वर्तमान शासकों का बेखौफ विश्लेषण करने की जरूरत है।हम और वे की विभाजन कारी नीतियों का विरोध किया जाना चाहिए।जो विरोध नहीं कर सकते वे कम से कम दक्षिणपंथीयों के साथ तो न दिखें। लेखक अपने जमीर को बचाए रख कर देश को तोड़ने वाली ताकतों को पहचाने।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रलेसं राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य विनीत तिवारी ने कहा कि वर्तमान निजाम के दौरान सच खतरे में है। विवेक और स्वतंत्र सोच पर हमला हो रहा है। जिन लेखकों ने सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक पाखंड और झूठ को बेनकाब किया उन्हें मार दिया गया। नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश सच का उत्खनन कर रहे थे। कामरेड पानसरे की शिवाजी पर लिखी एक पुस्तक शिवसेना के लिए चुनौती बन गई। यह लेखक और लेखन की ताकत है। इसलिए वर्तमान सरकार लेखकों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद रखकर उन्हें प्रताड़ित कर रही है और मार रही है। ऐसे समय में हमारा दायित्व है कि स्वतंत्र सोच के लेखकों, रंग कर्मियों को बचाने का प्रयास करें। प्रलेसं विचार की रक्षा करने वाला संगठन है। इसलिए ही प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे चलने वाली मशाल बताया था। विनीत तिवारी ने कहा कि आज ही के दिन कंधमाल में 500 ईसाइयों का कत्ल किया गया था। उन्हें न्याय दिलवाने की लड़ाई जारी है। नर्मदा घाटी के विस्थापितों के साथ ही हम हर उस पीड़ित के संघर्षों के साथ हैं जो अन्याय के खिलाफ लड़ रहे हैं।
प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव शैलेंद्र शैली के अनुसार प्रलेसं कोई वेलफेयर सोसाइटी नहीं है, यह जन आंदोलन है, इसमें हमारी भागीदारी क्या हो यह हमें तय करना होगा। व्यक्तिगत संबंधों और सार्वजनिक जीवन के द्वंद में दूरी बनाए रखी जानी चाहिए। इस हेतु साझा समझ विकसित करने की जरूरत है। चर्चा में उज्जैन से शशिभूषण, भोपाल से आरती, सागर से पी आर मलैया, जबलपुर से तरुण गुहा नियोगी, मंदसौर से असअद अंसारी, इंदौर से जावेद आलम, सारिका श्रीवास्तव, हरनाम सिंह ने भी शिरकत की। स्वागत उद्बोधन इंदौर इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष चुन्नीलाल वाधवानी ने दिया। एक शोक प्रस्ताव में पिछली बैठक के बाद दिवंगत लेखकों इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह, भोपाल के कहानीकार, लेखक ओम भारती, शहनाज इमरानी, गीतकार शिवकुमार अर्चन, मंदसौर के कहानी लेखक आलोक पंजाबी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। आभार इकाई के कार्यवाहक सचिव केसरी सिंह ने माना।
जाने-माने कवियों
ने किया रचना पाठ
ने किया रचना पाठ
कविता सत्र में प्रदेश के जाने-माने कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। देवास की कुसुम वाकोड़े, मंदसौर के असअद अंसारी, धार के शरद जोशी शलभ, सागर के पी आर मलैया, अनूपपुर के विजेंद्र सोनी, शहडोल के परमानंद तिवारी, भोपाल के कुमार अंबुज, राजेंद्र शर्मा, आरती, शैलेंद्र शैली, अनिल करमेले, उज्जैन के शशिभूषण, जबलपुर के तरुण गुहा नियोगी, इंदौर की सारिका श्रीवास्तव, केसरी सिंह, राम आसरे पांडे, चुन्नीलाल वाधवानी, किरण परियानी "अनमोल", उत्पल बनर्जी, विनीत तिवारी ने कविता पाठ किया। मंचासीन धार के वरिष्ठ लेखक निसार अहमद और हरनाम सिंह ने भी संबोधित किया। कविता सत्र का संचालन शशि भूषण ने किया।
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