जनजातीय समाज पर
कमजोर पड़ती पकड़ पर चिंतन आवश्यक
( 72 वें जन्मदिन पर विशेष-मनोज द्विवेदी ,अनूपपुर)
(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)अनूपपुर (अंंचलधारा) लेखक एवं चिंतक मनोज द्विवेदी ने मध्य प्रदेश के खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री एवं विधानसभा क्षेत्र अनूपपुर के विधायक के 72 वें जन्मदिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 1983 से तब के संयुक्त शहडोल जिला और उसके बाद 2003 से अनूपपुर जिले में सत्ता और विपक्षी दलों की राजनीति को एक स्वतंत्र पत्रकार के नजरिये से देखने, भांपने, समझने का भरपूर अवसर मुझे मिला है।पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय दलवीर सिंह, पूर्व मंत्री एवं पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय कृष्णपाल सिंह, पूर्व सांसद दादा ज्ञान सिंह,पूर्व मंत्री स्वर्गीय रामकिशोर शुक्ला, पूर्व मंत्री स्वर्गीय लवकेश सिंह, पूर्व सांसद स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते, पूर्व सांसद स्वर्गीय राजेश नंदिनी सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के साथ कार्य करने का जिन्हे सौभाग्य मिला हो,जनजातीय समाज के ऐसे स्थापित कद्दावर नेता मध्यप्रदेश शासन के कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह का जीवन,उन्हे करीब से जानने वालों के साथ-साथ राजनीति की प्राथमिक शाला से लेकर पीएचडी के छात्र तक के लिये शोध और अध्ययन का विषय जरुर बना रहेगा।आज 1 अगस्त 2022 को बिसाहूलाल सिंह का 72 वां जन्मदिन है। इस अवसर पर उनकी सफल कार्यशैली और जनजातीय समाज पर कमजोर पड़ती पकड़ को लेकर चिंतन की जरुरत अवश्य है।
ना केवल विंध्य और महाकौशल अपितु मध्यप्रदेश की जनजातीय राजनीति को एक नया मुकाम देने वाले बिसाहूलाल सिंह की कार्य शैली और उनके सफल राजनैतिक जीवन को पढने,समझने के लिये उक्त नेताओं के अतिरिक्त मनोज स्वर्गीय भाई लाल पटेल, शंकर प्रसाद शर्मा, प्रेमकुमार त्रिपाठी, भगवती शुक्ला, संतोष अग्रवाल, स्वर्गीय ठाकुर शिवाधार सिंह स्वर्गीय एम एन सिंह, शिवराज दत्त त्रिवेदी, भूपेन्द्र सिंह, स्वर्गीय ओमप्रकाश द्विवेदी, अनिल गुप्ता , रामदास पुरी और पूर्व विधायक रामलाल रौतेल ( इनमें से कुछ स्वर्गवासी हो चुके हैं ) जैसे नेताओं के अनुभवों को भू जरुर आत्मसात करना होगा।
2018 के विधानसभा चुनाव में सपाक्स की लहर पर सवारी करते , अपने सभी पिछले रिकार्ड ध्वस्त करने वाले कांग्रेसी बिसाहूलाल सिंह ने भाजपा के रामलाल रौतेल को बडे अन्तर से पराजित किया। प्रदेश में कमलनाथ सरकार बन गयी। उपेक्षित, अपमानित बिसाहूलाल ने स्वाभिमान के मुद्दे पर कोई समझौता ना करते हुए दिग्विजय सिंह, कमलनाथ जैसे शीर्ष नेताओं को पटखनी देते हुए उन्हे प्रदेश की सत्ता से पदच्युत कर दिया था।
2020 के उप चुनाव में भाजपाई बिसाहूलाल सिंह ने 35000 हजार मतों से रिकॉर्ड विजय प्राप्त करके प्रदेश की राजनीति को बिसाहूलाल सिंह होने का अर्थ समझा दिया था।
आम जनता के हितों और क्षेत्र के विकास से कोई समझौता ना करने वाले बिसाहूलाल सिंह के कट्टर राजनैतिक विरोधी भी इस बात की प्रशंसा करते हैं कि उन्हे व्यक्ति की पहचान करने और उसके गुणों के अनुरुप महत्व देने की विलक्षण क्षमता है। राजनीति में सफलता , जहाँ लोगों के कंधों पर सवारी , अवसर और मैनेजमेंटल सीढ़ियों के बूते मिलती हो.वहां ऐसी परिस्थितियों में स्वयं के लिये समर्पित कार्यकर्ताओं के सुख - दुख का सच्चा साथी बनने , उसका विश्वास स्वयं में बनाए रखने की बिसाहूलाल सिंह की कला ने उन्हे अजेय बना दिया।
2018 की गर्मियों में राजेन्द्रग्राम में जयस और गोंडवाना गणतंत्र विचारधारा पोषित नेताओं की एक बैठक में बिसाहूलाल सिंह भी उपस्थित थे। बैठक में जनजातीय समाज के मन में सामान्य जाति के लोगों के विरुद्ध विष बीज बोने का काम किया जा रहा था। अनपेक्षित बिसाहूलाल ने बिन बुलाए उठ कर माईक पकड़ लिया और अलावा सहित अन्य जनजातीय नेताओं को इसके लिये कड़ी फटकार लगाई।बिसाहूलाल सिंह सामाजिक सद्भावना बनाए रखने के हामी नेता हैं।यद्यपि चोलना की किसी सभा में उन पर ब्राम्हणों के विरुद्ध भाषण देने का आरोप लगाया गया लेकिन उसकी किसी ने आज तक पुष्टि नहीं की। इसी तरह से फुनगा की एक सभा में ठाकुर समाज की महिलाओं के विरुद्ध जिस विवादास्पद बयान का आरोप लगा , वह भी अर्धसत्य जैसा ही था। उस कार्यक्रम के दौरान मैं स्वयं मंच के बाहर एक गाड़ी में बैठकर उनका भाषण कागज में नोट कर रहा था। तब मंत्री ने जनजातीय समाज की महिलाओं के संघर्ष से ठाकुर समाज ( उनके कुछ ठाकुर मित्र मंच पर उनके साथ विराजमान थे ) की महिलाओं से तुलना करते हुए कहा था कि अन्य समाज की महिलाओं की तरह उच्च जाति की महिलाओं को भी शर्म ,संकोच का बंधन त्याग कर खेती, खलिहान के कार्य में हाथ बंटाना चाहिये। इसके पीछे उनकी इतनी मंशा थी कि यदि आप तक हम नहीं पहुंच पा रहे , तो आप ही हम तक आ जाओ। सामाजिक समरसता के लिये दोनों ओर से हाथ बढाने की सख्त जरुरत है। दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से उनके भाषण का गलत अर्थ निकाला गया और देश भर में उनके विरुद्ध प्रदर्शन किये गये। कहने का आशय यह है कि पिछले चार दशक में जब जिले की नर्मदा, सोन,जोहिला , केवई , तिपान, चंदास नदी से होकर बहुत से लोगों का पानी बह गया हो ,बहुत से छोटे - बड़े नेताओं का पराभाव हो गया , कुछ हमारे बीच नहीं रहे, कुछ ने मैदान छोड़ दिया..... लेकिन इन सब के बीच आज भी बिसाहूलाल सिंह मजबूती से यदि अपनी जगह पर टिके हुए हैं तो उसके पीछे उनकी बेजोड़ मेहनत, बारीक और कुशल राजनैतिक समझ, संबंधों को संभाले रखने की कुशलता, सामाजिक ताने - बाने के प्रति जवाबदेह जिम्मेदारी का भाव और अपनों के लिये जी - जान लगा देने की ताकत बहुत बड़ा कारण है। एक अन्य तथ्य यह भी है कि जनजातीय समाज के प्रति अनन्य लगाव होने के बाद भी सर्व समाज को बेजोड़ शिल्पी की तरह साथ जोडे रखने की कला उनमें आज भी है। अपने शत्रुओं के प्रति निर्ममता का उनका तरीका जग जाहिर है। जिसने भी उनके राजनैतिक , पारिवारिक, व्यक्तिगत हितों पर चोट की , उसे वो हिलते - डुलते रोंएं तक तब तक कूटते हैं ,जब तक वो हिलना बन्द ना कर दे। उनका मानना है कि मजबूती से जमे, टिके रहने के लिये शत्रुओं से शत्रु सम व्यवहार ही करना चाहिए । जाहिर है इसीलिये बिसाहूलाल,बिसाहूलाल सिंह है....दशकों से ...दशकों तक के लिये ...सदा -- सर्वदा अजेय सा।
ना केवल विंध्य और महाकौशल अपितु मध्यप्रदेश की जनजातीय राजनीति को एक नया मुकाम देने वाले बिसाहूलाल सिंह की कार्य शैली और उनके सफल राजनैतिक जीवन को पढने,समझने के लिये उक्त नेताओं के अतिरिक्त मनोज स्वर्गीय भाई लाल पटेल, शंकर प्रसाद शर्मा, प्रेमकुमार त्रिपाठी, भगवती शुक्ला, संतोष अग्रवाल, स्वर्गीय ठाकुर शिवाधार सिंह स्वर्गीय एम एन सिंह, शिवराज दत्त त्रिवेदी, भूपेन्द्र सिंह, स्वर्गीय ओमप्रकाश द्विवेदी, अनिल गुप्ता , रामदास पुरी और पूर्व विधायक रामलाल रौतेल ( इनमें से कुछ स्वर्गवासी हो चुके हैं ) जैसे नेताओं के अनुभवों को भू जरुर आत्मसात करना होगा।
2018 के विधानसभा चुनाव में सपाक्स की लहर पर सवारी करते , अपने सभी पिछले रिकार्ड ध्वस्त करने वाले कांग्रेसी बिसाहूलाल सिंह ने भाजपा के रामलाल रौतेल को बडे अन्तर से पराजित किया। प्रदेश में कमलनाथ सरकार बन गयी। उपेक्षित, अपमानित बिसाहूलाल ने स्वाभिमान के मुद्दे पर कोई समझौता ना करते हुए दिग्विजय सिंह, कमलनाथ जैसे शीर्ष नेताओं को पटखनी देते हुए उन्हे प्रदेश की सत्ता से पदच्युत कर दिया था।
2020 के उप चुनाव में भाजपाई बिसाहूलाल सिंह ने 35000 हजार मतों से रिकॉर्ड विजय प्राप्त करके प्रदेश की राजनीति को बिसाहूलाल सिंह होने का अर्थ समझा दिया था।
आम जनता के हितों और क्षेत्र के विकास से कोई समझौता ना करने वाले बिसाहूलाल सिंह के कट्टर राजनैतिक विरोधी भी इस बात की प्रशंसा करते हैं कि उन्हे व्यक्ति की पहचान करने और उसके गुणों के अनुरुप महत्व देने की विलक्षण क्षमता है। राजनीति में सफलता , जहाँ लोगों के कंधों पर सवारी , अवसर और मैनेजमेंटल सीढ़ियों के बूते मिलती हो.वहां ऐसी परिस्थितियों में स्वयं के लिये समर्पित कार्यकर्ताओं के सुख - दुख का सच्चा साथी बनने , उसका विश्वास स्वयं में बनाए रखने की बिसाहूलाल सिंह की कला ने उन्हे अजेय बना दिया।
2018 की गर्मियों में राजेन्द्रग्राम में जयस और गोंडवाना गणतंत्र विचारधारा पोषित नेताओं की एक बैठक में बिसाहूलाल सिंह भी उपस्थित थे। बैठक में जनजातीय समाज के मन में सामान्य जाति के लोगों के विरुद्ध विष बीज बोने का काम किया जा रहा था। अनपेक्षित बिसाहूलाल ने बिन बुलाए उठ कर माईक पकड़ लिया और अलावा सहित अन्य जनजातीय नेताओं को इसके लिये कड़ी फटकार लगाई।बिसाहूलाल सिंह सामाजिक सद्भावना बनाए रखने के हामी नेता हैं।यद्यपि चोलना की किसी सभा में उन पर ब्राम्हणों के विरुद्ध भाषण देने का आरोप लगाया गया लेकिन उसकी किसी ने आज तक पुष्टि नहीं की। इसी तरह से फुनगा की एक सभा में ठाकुर समाज की महिलाओं के विरुद्ध जिस विवादास्पद बयान का आरोप लगा , वह भी अर्धसत्य जैसा ही था। उस कार्यक्रम के दौरान मैं स्वयं मंच के बाहर एक गाड़ी में बैठकर उनका भाषण कागज में नोट कर रहा था। तब मंत्री ने जनजातीय समाज की महिलाओं के संघर्ष से ठाकुर समाज ( उनके कुछ ठाकुर मित्र मंच पर उनके साथ विराजमान थे ) की महिलाओं से तुलना करते हुए कहा था कि अन्य समाज की महिलाओं की तरह उच्च जाति की महिलाओं को भी शर्म ,संकोच का बंधन त्याग कर खेती, खलिहान के कार्य में हाथ बंटाना चाहिये। इसके पीछे उनकी इतनी मंशा थी कि यदि आप तक हम नहीं पहुंच पा रहे , तो आप ही हम तक आ जाओ। सामाजिक समरसता के लिये दोनों ओर से हाथ बढाने की सख्त जरुरत है। दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से उनके भाषण का गलत अर्थ निकाला गया और देश भर में उनके विरुद्ध प्रदर्शन किये गये। कहने का आशय यह है कि पिछले चार दशक में जब जिले की नर्मदा, सोन,जोहिला , केवई , तिपान, चंदास नदी से होकर बहुत से लोगों का पानी बह गया हो ,बहुत से छोटे - बड़े नेताओं का पराभाव हो गया , कुछ हमारे बीच नहीं रहे, कुछ ने मैदान छोड़ दिया..... लेकिन इन सब के बीच आज भी बिसाहूलाल सिंह मजबूती से यदि अपनी जगह पर टिके हुए हैं तो उसके पीछे उनकी बेजोड़ मेहनत, बारीक और कुशल राजनैतिक समझ, संबंधों को संभाले रखने की कुशलता, सामाजिक ताने - बाने के प्रति जवाबदेह जिम्मेदारी का भाव और अपनों के लिये जी - जान लगा देने की ताकत बहुत बड़ा कारण है। एक अन्य तथ्य यह भी है कि जनजातीय समाज के प्रति अनन्य लगाव होने के बाद भी सर्व समाज को बेजोड़ शिल्पी की तरह साथ जोडे रखने की कला उनमें आज भी है। अपने शत्रुओं के प्रति निर्ममता का उनका तरीका जग जाहिर है। जिसने भी उनके राजनैतिक , पारिवारिक, व्यक्तिगत हितों पर चोट की , उसे वो हिलते - डुलते रोंएं तक तब तक कूटते हैं ,जब तक वो हिलना बन्द ना कर दे। उनका मानना है कि मजबूती से जमे, टिके रहने के लिये शत्रुओं से शत्रु सम व्यवहार ही करना चाहिए । जाहिर है इसीलिये बिसाहूलाल,बिसाहूलाल सिंह है....दशकों से ...दशकों तक के लिये ...सदा -- सर्वदा अजेय सा।
1 अगस्त को बिसाहूलाल सिंह का जन्मदिन है। 1 अगस्त 1950 को परासी, जनपद अनूपपुर में जन्मे बिसाहूलाल सिंह की शिक्षा एम ए तक है। कालरी की नौकरी छोड़ कर 1980 में वे पहली बार कांग्रेस से विधायक बने। 1993 में दूसरी बार विधायक बनने के बाद वो 1994-97 और 1997-98 में दिग्विजय सिंह की कैबिनेट में क्रमश: लोकनिर्माण और खनिज संसाधन विभाग में रहे। 1998 में वे तीसरी बार विधायक बने और 2002-03 मे ऊर्जा मंत्री बनाए गये। इसके बाद 2008, 2018 में विधायक रहे। इन्हे कमलनाथ सरकार में निरंतर उपेक्षित , अपमानित किया गया। जनजातीय समाज के इस कद्दावर नेता ने स्वाभिमान की कीमत पर विधायकी ना करने की ठान ली और बाकायदा खुला विद्रोह करते हुए कमलनाथ- दिग्विजय की सरकार को ठोकर मार कर धूल धूसरित कर दिया। राष्ट्रीय - प्रादेशिक नेताओं की उपस्थिति में उन्होंने भाजपा ज्वाईन कर लिया तो बस भाजपा के हो कर रह गये।
कल क्या होगा , राजनीति किस करवट बैठेगी , यह किसी को नहीं पता। लेकिन आज की राजनीति में उनके कद का एक भी नेता उनके आसपास तो क्या , दूर - दूर तक कोई नहीं है। जनपद और जिला पंचायत चुनाव का हालिया घटनाक्रम लोगों को थोड़ा चिंतित जरुर करता है लेकिन उनके लिये ये भी चिंतन का विषय ही होगा । जनजातीय बाहुल्य जिले की तीनों विधानसभा में भाजपा की पराजय, जिला पंचायत चुनाव में 11 में से मात्र 2 सीटों पर भाजपा का सिमटना,पुष्पराजगढ की सभी चारों जिला पंचायत सीटें खो देना , अपने गृह ग्राम क्षेत्र से मंत्री पुत्र चन्द्रभान सिंह की धर्मपत्नी का जयस प्रत्याशी से हार जाना और सात सदस्यों के साथ होने की खबरों के बीच जिला पंचायत अध्यक्ष पद एक वोट से खो देना जनजातीय समाज पर भाजपा की कमजोर पड़ती पकड़ का संकेत है। एक साल बाद विधानसभा चुनाव 2023 होना है, जिसमें अनूपपुर बचाते हुए कोतमा ,पुष्पराजगढ जीतना बड़ा लक्ष्य होगा। इस पर भाजपा और स्वत: बिसाहूलाल सिंह को चिंतन करना होगा। बहरहाल जन्मदिन पर हम आपके दीर्घायु होने, स्वस्थ, प्रसन्न, मजबूत रहने की कामना करते हुए परिवार की ओर से शुभकामनाएँ प्रेषित करते हैं। आप शतायु हों, दीर्घायु हों, स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें।
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