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सौंदर्य लहरी मनोकामनापूर्ति तथा परमानन्द की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है- श्री श्री शंकरभारती महास्वामी जी

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंंचलधारा)  श्री दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर श्रीमदजगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा अनुग्रहीत श्री योगानंदेश्वर पीठाधिपति परम पूज्य श्री श्री शंकरभारती महास्वामी जी का सम्पूर्ण भारतवर्ष की यात्रा के अन्तर्गत विश्वविद्यालय परिसर में व्याख्यान संपन्न हुआ जिसमें बोलते हुए उन्होंने कहा कि सौंदर्य लहरी की रचना पूज्यपाद आदि शंकराचार्य ने जगद्‌कल्याण हेतु की जिसके पाठन अथवा श्रवण से कष्ठों से मुक्ति मिलती है तथा आनन्द की अनुभूति होती है।उन्होने आगे कहा कि अद्वैत भेद-विभेद का नहीं आनंद का दर्शन है। सौंदर्य लहरी मनोकामनापूर्ति तथा परमानन्द की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। सौंदर्य लहरी के पद्म लोक कल्याण तथा व्यक्ति के उत्थान का भी मार्ग प्रशस्त करते हैं। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि देव एक ही हैं। नाम विभेद भक्ति का सरलीकरण मात्र है।सौंदर्यलहरी के माध्यम से जगद्‌गुरु आदि शंकराचार्य सर्वकल्याण की कामना करते हैं। यह भावना भारत की सनातन संस्कृति का मूल आधार है। लोकमंगल तथा लोग कल्याण की कामना का अमर स्रोत सौंदर्य लहरी है। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि अमरकटंक क्षेत्र में स्थापित इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में आकर वह अत्यन्त संतुष्ट हैं।स्वामी जी ने अपने संभाषण में कहा कि पूज्यपाद आचार्य शंकर की सौंदर्य लहरी समाज में व्याप्त दुखों के निवारण का मार्ग भी सुझाती है अतः दुख, पीड़ा तथा व्याधि से मुक्ति हेतु इसका पाठ एवं श्रवण अवश्य किया जा सकता है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी ने अपने स्वागत उद्‌बोधन में कहा कि यह विश्वविद्यालय परिवार का सौभाग्य है कि परम आदरणीय स्वामी जी आदि गुरु शंकराचार्य विरचित सौंदर्य लहरी के लोक वाचन हेतु पधारे हैं।आदि शंकराचार्य ने भारत को सामाजिक, सांस्कृति एवं आध्यात्मिक एकता के सूत्र में बांधने कार्य किया।आदि शंकराचार्य द्वारा चारों दिशाओं में स्थापित चार पीठों के माध्यम से भारत की सतत् सनातन परम्परा का प्रवाह होता है। उन्होंने आगे कहा कि स्वामी जी के दर्शन से हमें साधक, सिद्ध, सुजान एवं शुद्धि का दर्शन हो गया है। उन्होंने आगे कि अद्वैत आत्म दर्शन एवं परमात्म दर्शन की एकता परिचायक है तथा हमारी मुक्ति मार्ग का प्रदर्शक है। स्वामी जी जैसे महापुरुषों के आशीर्वाद से ही हम आत्मा से परमात्मा की यात्रा कर सकते हैं। स्वामी जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कुलपति जी ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने माँ के विविध रूपों में सौन्दर्य का वर्णन कर सौन्दर्य लहरी के माध्यम से सामान्य जनों हेतु भी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। सौन्दर्य लहरी संपूर्णता, समग्रता, सद्‌मार्ग की लहरी है। अद्वैत हमारी जीवन पद्धति है, हमारा पथ-प्रदर्शक है। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव पी.सिलुवैनाथन ने कहा कि पूज्य सामी जी के विद्वतापूर्ण उद्‌बोधन से हम सभी लाभान्वित हुए हैं। विश्वविद्यालय परिवार इसके लिए पूज्य स्वामी जी का आभारी है।कार्यक्रम का संचालन तथा संयोजन प्रो.राघवेन्द्र मिश्रा ने किया।पूज्यनीय स्वामी जी का स्वागत माननीय कुलपति जी प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी,कुलसचिव पी.सिलुवैनाथन ,वित्त अधिकारी ए.जेना ने किया। स्वस्ति वाचन डा. हरेरम पाण्डेय, डा. त्र्यंबकेश पाण्डेय, डा.द्विवेदी ने किया।कार्यक्रम में वेदांत भारती के राष्ट्रीय संयोजक श्रीधर हेगड़े, भारतीय शिक्षा मंडल के महाकौशल प्रांत संगठन मंत्री दयानिधि जी, परीक्षा नियंत्रक प्रो. एनएसएच मूर्ति, प्रो.पी.के. शामल, प्रो.अभिलाषा कुमारी, प्रो. नागाराजू, सहित भरी संख्या में अध्यापक, कर्मचारी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे। 

मृत्युंजय आश्रम
अमरकंटक पहुंचे 


परमपूज्य स्वामी जी ने माघ पूर्णिमा 16 फरवरी को अमरकंटक के मृत्युंजय आश्रम में महामंडलेश्वर स्वामी हरिहरानंद जी, स्वामी रामभूषण दास जी, पुलिस अधीक्षक अखिल पटेल एवं अन्य लोगों की विशेष उपस्थिति मे श्रद्धालुओं के मध्य व्याख्यान दिया एवं आचार्य शंकर प्रणीत सौंदर्य लहरी का वाचन मृत्युंजय आश्रम में किया ।
उपनिषदों में प्रतिपादित एकात्मतत्व को भगवत्पाद जगद्गुरु श्री आद्यशंकराचार्य महाभाग के भाष्यों प्रकरण ग्रंथों और स्तोत्रादि साहित्य के आधार पर सर्वत्र प्रचारार्थ वर्तमान में पूज्य स्वामीश्रीजी भारतभ्रमण कर रहे हैं। अयोध्या क्षेत्र में श्री आदिशंकराचार्यजी का भव्य मंदिर और अनेक दिव्य स्मृति में अद्वैत-वेदान्त और अन्य शास्त्रों का अध्ययन और संशोधन संस्था का स्थापन करने का भी संकल्प किया गया है ।

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