नगर पालिका में नौकरी और उसी का अध्यक्ष बन
जाना आसान नही है ओमप्रकाश हो जाना-पं.अजय मिश्र
अनूपपुर (अंंचलधारा) लेखक एवं विचारक पंडित अजय मिश्रा ने पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष स्वर्गीय ओम प्रकाश जी द्विवेदी पर तथ्यात्मक विश्लेषण करते हुए कहा है कि ओमप्रकाश द्विवेदी अनूपपुर से लेकर भोपाल दिल्ली तक यथार्थ से ज्यादा किवंदंती के जरिए जाने गए। दंतकथाएं और किवंदंतियां ही साधारण आदमी को लोकनायक बनाती हैं। अनूपपुर के छोटे से दायरे में ही सही द्विवेदी जी लोकनायक बनकर उभरे और रहे। मैंने अबतक दूसरे ऐसे किसी नेता को नहीं जाना जिनको लेकर इतनी बातें कही गढ़ी गईं हों। सच्चे-झूठे किस्से चौपालों और चौगड्डों पर चले हों। आज उनके देवलोकगमन पर समूचा जिला भावुकता के साथ उनको याद कर रहा है।
राजनीति उनके रगों में थी या यूँ कहें कि उनका राजनीति जुडाव जल व मीन की भांति रहा। वे अच्छे से जानते थे कि इसे कैसे प्रवहमान बनाए रखा जाए। वे जितने चुनाव जीते लगभग उतने ही हारे लेकिन उन्होंने खुद को हारजीत के ऊपर बनाए रखा।
कविवर सुमन की ये कविता- क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं, संघर्ष पथपर जो मिले यह भी सही वह भी सही..भारतीय जनता पार्टी की पीढ़ी के जिन वरिष्ठ नेताओं ने अपने सहज, सरल और सफल व्यक्तित्व व कृतित्व से गहरी छाप छोड़ी है उनमें से ओमप्रकाश द्विवेदी का नाम सबसे आगे है। सहजता के आवरण में ढंका हुआ उनका कुशाग्र राजनय उनके व्यक्तित्व का चुम्बकीय आकर्षण है।
श्री द्विवेदी के नेतृत्व व प्रशासनिक क्षमता का लोहा तो विपक्ष की राजनीति करने वाले भी मानते है। मेरी अपनी दृष्टि से श्री द्विवेदी नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं के लिए इसलिए भी अनुगम्य और प्रेरणादायी हैं कि इकाई स्तर से शिखर की राजनीति तक का सफर किस धैर्य व संयम के साथ किया जाता है यह उन्होंने बताया वे एक कार्यकर्ता से भाजपा के जिले के पितृपुरुष बने यह भारतीय जनता पार्टी में ही संभव है जहां कार्यकर्ता की क्षमता और निष्ठा का ईमानदारी से मूल्यांकन होता है। श्री द्विवेदी इसकी जीती जागती मिसाल थे।
उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे सब कुछ करने, परिणाम देने व समर्थ होने के बावजूद भी स्वयं श्रेय लेने पर विश्वास नहीं करते थे वे अपनी उपलब्धियों को साझा करते थे। 'शौमैनशिप' उनमें दूर-दूर तक नहीं रही।
कुछ व्यक्तित्व सृष्टि में सिर्फ आने के लिए होते हैं जाने के लिए नहीं उनमें से हैं हमारे अनूपपुर के जननायक ओमप्रकाश द्विवेदी जो सदैव हमारी स्मृतियों में विद्यमान रहेंगे।उन्होंने व्यक्ति के रूप में जन्म लिया, व्यक्तित्व के रूप में जीवित रहे और विचार बनकर हम सब के बीच में विद्यमान रहेँगे।
ओमप्रकाश द्विवेदी... अनूपपुर के राजनीतिक परिदृश्य पर एक चमकदार नक्षत्र के रूप में उपस्थित यह नाम किसी व्यक्ति भर का नहीं है, बल्कि एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व का हैं। व्यक्ति से लेकर व्यक्तित्व तक का उनका सफर ठीक वैसा है जो सोने का कुंदन में तब्दील होने का होता है। इस सच्चाई से भला कौन इंकार कर सकता है कि समय और समाज किसी व्यक्ति को नहीं एक व्यक्तित्व को ही याद रखता है। एक अमिट व्यक्तित्व के गुण-धर्म की चर्चा की जाये तो शिखर पर पहुँचकर भी विनम्र बने रहना सबसे बड़ा गुण है। एक शब्द में इसे कहा जाये तो विनम्रता। जहाँ तक श्री द्विवेदी जी की बात हैं तो शायद उन्हें विनम्रता की प्रतिपूर्ति कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं हैं। सरलता के गुण ने उन्हें विशिष्ट बनाया।
नि:स्वार्थ सेवा, अथक परिश्रम, गहन समर्पण, अटूट निष्ठा, जरूरतमंदों की मदद के लिए सदैव तत्परता और लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए अविराम यात्रा की ऊर्जा ने उन्हें भीड़ में अपनी पहचान दी है
उनके आंतरिक मन के अंतरिक्ष में विचार-पुंज सदा गतिशील रहते थे। उनकी निरंतर कुछ नया और कुछ विशेष करने की ऊष्मा हर पल नये विचारों का प्रस्फुटन करती रहती थी। लक्ष्य और चुनौतियों से जूझने की विकट जुझारू शक्ति थी उनमें। सौंपे गये दायित्वों का कुशल संपादन और निर्वहन करने की क्षमता का आकलन कर विरोधी भी प्रशंसा किये बिना नहीं रहते थे। वे अपना जीवन हर घड़ी संघर्षों के ताप में तपने देते थे।
वे काम के प्रति अपने आपको झोंक देते थे। उन्हें पता था कि इन्हीं काँटों भरे रास्तों से गुजरकर ही मंजिल मिलेगी। असफलताएँ उन्हें नई ऊर्जा देती रही। मुस्किलो को अवसर में बदलने की अद्भुत कला थी उनमे । निराशा और हताशा उनके जीवन-कोष में थे ही नहीं। वे जानते थे कि जब जीवन की परीक्षाओं के घन एक बेडौल लोहे के टुकड़े पर निरंतर पड़ते हैं तो जल्दी ही वह टुकड़ा एक आकार ग्रहण कर लेता है जो जन उपयोगी होता है... समाज उपयोगी होता है... देश उपयोगी होता है। निश्चित रूप से व्यक्तित्व के निर्माण में भी ऐसा ही होता है या यूँ कहें कि यही व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया भी है।
श्री द्विवेदी जी के व्यक्तित्व की उदारता, सहृदयता, संवेदनशीलता और सज्जनता के अद्भुत संयोजन में ऐसा व्यक्तित्व निर्मित हुआ , जिसने सरल, सहज, उदार, स्नेही व्यक्तित्व की नई इबारत लिखी । विशाल व्यक्तित्व के धनी का सशक्त पहलू व्यापक विचारधारा थी। उनकी चिंतन क्षमता ने उनके व्यक्तित्व में व्यवहारिकता और अध्यात्मिकता का अनूठा संयोजन किया।उनकी सफलताओं का आधार उनके करिश्माई व्यक्तित्व और करिश्माई सोच के चलते एक अलग पहचान बना रहा । विचारों की व्यापकता का रूचि-नीति में भी परिलक्षित होती रही। उनका यहीं सेवा-भाव जरूरतमंद की मदद करने में दिखता रहा। उनमे सेवा-संकल्प का समर्पित भाव, चुनौतियों की जिद और जूनून के साथ सामना करने का जज्बा उनके व्यक्तित्व के ऐसे पहलू रहे, जिन्होंने राजनीति को सेवा नीति में बदल दिया। एक योगी की तरह हर आम-खास की बात, समस्या सुनना, मनन करना और जरूरतमंदों की सेवाभाव से मदद करना उनकी प्राथमिकता में रहता था। उनका यह ऐसा गुण था, जिसमें आम “जन” के “मन” से उनका एक गहरा और आत्मीयता पूर्ण रिश्ता बन जाता था।
उन को कभी अपनी छवि निर्माण के लिए प्रयास नहीं करने पड़े। उनकी सद्इच्छाओं ने उनकी छवि को इतना पुख्ता कर दिया कि लाख कोशिशें उसे धुंधला कर पाने में अक्षम हैं।व्यक्तित्व का प्रभावी पहलू उनकी विशिष्ट संवाद क्षमता थी। वे सीधे और सहज भाव से श्रोताओं के साथ सीधा सम्पूर्क स्थापित कर उनकी समस्याओं का निदान करते रहे। सीधे संवाद की विशिष्ट क्षमता, विचारों की व्यापकता व्यवहार की सहजता, व्यक्तित्व की विशालता का अद्भुत संयोजन का ही नाम ओमप्रकाश दुवेदी हैं। एक आम आदमी का जननायक बन जाना
नपा में नोकरी और उसी पालिका का अध्यक्ष बन जाना
आसान नही है ओमप्रकाश हो जाना
पं अजय मिश्र
ओमप्रकाश दुवेदी अनुपपुर से लेकर भोपाल दिल्ली तक यथार्थ से ज्यादा किवंदंती के जरिए जाने गए। दंतकथाएं और किवंदंतियां ही साधारण आदमी को लोकनायक बनाती हैं। अनुपपुर के छोटे से दायरे में ही सही दुवेदी जी लोकनायक बनकर उभरे और रहे। मैंने अबतक दूसरे ऐसे किसी नेता को नहीं जाना जिनको लेकर इतनी बातें कही गढ़ी गईं हों। सच्चे-झूठे किस्से चौपालों और चौगड्डों पर चले हों। आज उनके देवलोकगमन पर समूचा जिला भावुकता के साथ उनको याद कर रहा है।
राजनीति उनके रगों में थी या यूँ कहें कि उनका राजनीति जुडाव जल व मीन की भांति रहा। वे अच्छे से जानते थे कि इसे कैसे प्रवहमान बनाए रखा जाए। वे जितने चुनाव जीते लगभग उतने ही हारे लेकिन उन्होंने खुद को हारजीत के ऊपर बनाए रखा।
कविवर सुमन की ये कविता- क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं, संघर्ष पथपर जो मिले यह भी सही वह भी सही..
भारतीय जनता पार्टी की पीढ़ी के जिन वरिष्ठ नेताओं ने अपने सहज, सरल और सफल व्यक्तित्व व कृतित्व से गहरी छाप छोड़ी है उनमें से ओमप्रकाश दुवेदी का नाम सबसे आगे है। सहजता के आवरण में ढंका हुआ उनका कुशाग्र राजनय उनके व्यक्तित्व का चुम्बकीय आकर्षण है।
श्री दुवेदी के नेतृत्व व प्रशासनिक क्षमता का लोहा तो विपक्ष की राजनीति करने वाले भी मानते है। मेरी अपनी दृष्टि से श्री दुवेदी नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं के लिए इसलिए भी अनुगम्य और प्रेरणादायी हैं कि इकाई स्तर से शिखर की राजनीति तक का सफर किस धैर्य व संयम के साथ किया जाता है यह उन्होंने बताया वे एक कार्यकर्ता से भाजपा के जिले के पितृपुरुष बने यह भारतीय जनता पार्टी में ही संभव है जहां कार्यकर्ता की क्षमता और निष्ठा का ईमानदारी से मूल्यांकन होता है। श्री दुवेदी इसकी जीती जागती मिसाल थे।
उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे सब कुछ करने, परिणाम देने व समर्थ होने के बावजूद भी स्वयं श्रेय लेने पर विश्वास नहीं करते थे वे अपनी उपलब्धियों को साझा करते थे। 'शौमैनशिप' उनमें दूर-दूर तक नहीं रही।
कुछ व्यक्तित्व सृष्टि में सिर्फ आने के लिए होते हैं जाने के लिए नहीं उनमें से हैं हमारे अनुपपुर के जननायक ओमप्रकाश दुवेदी जो सदैव हमारी स्मृतियों में विद्यमान रहेंगे।उन्होंने व्यक्ति के रूप में जन्म लिया, व्यक्तित्व के रूप में जीवित रहे और विचार बनकर हम सब के बीच में विद्यमान रहेँगे।
ओमप्रकाश दुवेदी... अनूपपुर के राजनीतिक परिदृश्य पर एक चमकदार नक्षत्र के रूप में उपस्थित यह नाम किसी व्यक्ति भर का नहीं है, बल्कि एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व का हैं। व्यक्ति से लेकर व्यक्तित्व तक का उनका सफर ठीक वैसा है जो सोने का कुंदन में तब्दील होने का होता है। इस सच्चाई से भला कौन इंकार कर सकता है कि समय और समाज किसी व्यक्ति को नहीं एक व्यक्तित्व को ही याद रखता है। एक अमिट व्यक्तित्व के गुण-धर्म की चर्चा की जाये तो शिखर पर पहुँचकर भी विनम्र बने रहना सबसे बड़ा गुण है। एक शब्द में इसे कहा जाये तो विनम्रता। जहाँ तक दुवेदी जी की बात हैं तो शायद उन्हें विनम्रता की प्रतिपूर्ति कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं हैं। सरलता के गुण ने उन्हें विशिष्ट बनाया।
नि:स्वार्थ सेवा, अथक परिश्रम, गहन समर्पण, अटूट निष्ठा, जरूरतमंदों की मदद के लिए सदैव तत्परता और लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए अविराम यात्रा की ऊर्जा ने उन्हें भीड़ में अपनी पहचान दी है
उनके आंतरिक मन के अंतरिक्ष में विचार-पुंज सदा गतिशील रहते थे। उनकी निरंतर कुछ नया और कुछ विशेष करने की ऊष्मा हर पल नये विचारों का प्रस्फुटन करती रहती थी। लक्ष्य और चुनौतियों से जूझने की विकट जुझारू शक्ति थी उनमें। सौंपे गये दायित्वों का कुशल संपादन और निर्वहन करने की क्षमता का आकलन कर विरोधी भी प्रशंसा किये बिना नहीं रहते थे। वे अपना जीवन हर घड़ी संघर्षों के ताप में तपने देते थे।
वे काम के प्रति अपने आपको झोंक देते थे। उन्हें पता था कि इन्हीं काँटों भरे रास्तों से गुजरकर ही मंजिल मिलेगी। असफलताएँ उन्हें नई ऊर्जा देती रही। मुस्किलो को अवसर में बदलने की अद्भुत कला थी उनमे । निराशा और हताशा उनके जीवन-कोष में थे ही नहीं। वे जानते थे कि जब जीवन की परीक्षाओं के घन एक बेडौल लोहे के टुकड़े पर निरंतर पड़ते हैं तो जल्दी ही वह टुकड़ा एक आकार ग्रहण कर लेता है जो जन उपयोगी होता है... समाज उपयोगी होता है... देश उपयोगी होता है। निश्चित रूप से व्यक्तित्व के निर्माण में भी ऐसा ही होता है या यूँ कहें कि यही व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया भी है।
दुवेदी जी के व्यक्तित्व की उदारता, सहृदयता, संवेदनशीलता और सज्जनता के अद्भुत संयोजन में ऐसा व्यक्तित्व निर्मित हुआ , जिसने सरल, सहज, उदार, स्नेही व्यक्तित्व की नई इबारत लिखी । विशाल व्यक्तित्व के धनी का सशक्त पहलू व्यापक विचारधारा थी। उनकी चिंतन क्षमता ने उनके व्यक्तित्व में व्यवहारिकता और अध्यात्मिकता का अनूठा संयोजन किया । उनकी सफलताओं का आधार उनके करिश्माई व्यक्तित्व और करिश्माई सोच के चलते एक अलग पहचान बना रहा । विचारों की व्यापकता का रूचि-नीति में भी परिलक्षित होती रही। उनका यहीं सेवा-भाव जरूरतमंद की मदद करने में दिखता रहा। उनमे सेवा-संकल्प का समर्पित भाव, चुनौतियों की जिद और जूनून के साथ सामना करने का जज्बा उनके व्यक्तित्व के ऐसे पहलू रहे, जिन्होंने राजनीति को सेवा नीति में बदल दिया। एक योगी की तरह हर आम-खास की बात, समस्या सुनना, मनन करना और जरूरतमंदों की सेवाभाव से मदद करना उनकी प्राथमिकता में रहता था। उनका यह ऐसा गुण था, जिसमें आम “जन” के “मन” से उनका एक गहरा और आत्मीयता पूर्ण रिश्ता बन जाता था।
उन को कभी अपनी छवि निर्माण के लिए प्रयास नहीं करने पड़े। उनकी सद्इच्छाओं ने उनकी छवि को इतना पुख्ता कर दिया कि लाख कोशिशें उसे धुंधला कर पाने में अक्षम हैं।व्यक्तित्व का प्रभावी पहलू उनकी विशिष्ट संवाद क्षमता थी। वे सीधे और सहज भाव से श्रोताओं के साथ सीधा सम्पूर्क स्थापित कर उनकी समस्याओं का निदान करते रहे। सीधे संवाद की विशिष्ट क्षमता, विचारों की व्यापकता व्यवहार की सहजता, व्यक्तित्व की विशालता का अद्भुत संयोजन का ही नाम ओमप्रकाश दुवेदी हैं।
वे असाधारण व्यक्ति वाले आम आदमी थे। वे दिखते साधारण रहे लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण रूप से विशाल और प्रतिभा संपन्न बना रहा। मानवीय संवेदनाओं, अनुभूतियों से उदार गुणों से भरा दिल जो हर पल पीड़ित मानवता की सेवा के लिए धड़कता था। वे कार्यों पर जितनी चौकस निगाह रखते थे उतनी उनको चिंता कि दरवाजे पर आए गंभीर रोग से पीड़ित और हर दुखियारे की मदद कर उसका दु:ख-दर्द दूर किया जाए।सहजता, सरलता, सौम्यता, शुचिता के साथ ही तत्परता और त्वरित गति से जन-समस्याओं का निराकरण; ये वे गुण होते हैं जो राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति को एक मुकाम तक पहुँचाते हैं।
हमारी ओर से आपको सच्ची श्रध्दांजलि यही हो सकती है कि सदैव आपके द्वारा नेक विचारों पर चल कर आपके आशीर्वाद से कुछ सार्थक कर सके। दिखते साधारण रहे लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण रूप से विशाल और प्रतिभा संपन्न बना रहा। मानवीय संवेदनाओं, अनुभूतियों से उदार गुणों से भरा दिल जो हर पल पीड़ित मानवता की सेवा के लिए धड़कता था। वे कार्यों पर जितनी चौकस निगाह रखते थे उतनी उनको चिंता कि दरवाजे पर आए गंभीर रोग से पीड़ित और हर दुखियारे की मदद कर उसका दु:ख-दर्द दूर किया जाए।सहजता, सरलता, सौम्यता, शुचिता के साथ ही तत्परता और त्वरित गति से जन-समस्याओं का निराकरण; ये वे गुण होते हैं जो राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति को एक मुकाम तक पहुँचाते हैं।
हमारी ओर से आपको सच्ची श्रध्दांजलि यही हो सकती है कि सदैव आपके द्वारा नेक विचारों पर चल कर आपके आशीर्वाद से कुछ सार्थक कर सके।
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