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सन्मति, सहमति और सन्मार्ग का सहारा लेकर सर्व-कल्याण के लिए कार्य करना हमारी संस्कृति का मूल आधार है-प्रो.त्रिपाठी

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में आजादी के अमृत महोत्सव के अनतर्गत पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोहपूर्वक मनाई गयी। इस अवसर पर  "पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि एवं आमंत्रित वक्ता अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय, बिलासपुर  (छत्तीसगढ़) के माननीय कुलपति प्रोफ़ेसर ए.डी.एन. बाजपेई थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा की गई तथा कार्यक्रम के संयोजक प्रो. आलोक श्रोत्रिय, अधिष्ठाता (अकादमिक) थे।
मुख्य अतिथि एवं भारतीय दार्शनिक परम्परा के गहन अध्येता प्रोफ़ेसर ए.डी.एन. बाजपेयी द्वारा सर्वप्रथम पंडित दीनदयाल जी को नमन करते हुए उनकी राष्ट्रवादी सांस्कृतिक विचारधारा को रेखांकित करने के लिए उपनिषद से लेकर शास्त्रों के उद्धरणों सास्कृतिक राष्ट्रवाद का अर्थ स्पष्ट किया ।प्रो. बाजपेयी के बताया कि संस्कृति का उच्चतम स्वरूप मूल्यों में निहित होता है । हिन्दुओं के 16 संस्कारों से लेकर तीज - त्यौहार सभी भारतीय संस्कृति के पोषक तत्व हैं। भारत देश में लगभग 6 लाख 50 हजार गांव हैं, इन सभी में संस्कृति के अलग-अलग तत्त्व है। अतः भारत देश विभिन्न संस्कृतियों से मिलकर बना है और इन संस्कृतियों का अंतरंग रस बहता है - भारतीय आध्यात्मिकता में। संस्कृति सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य करती है तथा आध्यात्मिकता की अंतर्धारा ही संस्कृति के समस्त घटकों को एकजुट रख सकती है ।  आध्यात्मिकता से सम्पूर्ण राष्ट्र को एक इकाई के रूप में निर्मित करना ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि राष्ट्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रदत्त विचारों और अवदानों के लिए उनका सदैव ऋणी है | उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार और पत्रकार माना जाता है, परंतु मेरा मानना है कि दीनदयाल जी इन सब से ऊपर एक भारतीय है। दीनदयाल जी के एकात्मवाद, मानवतावाद और राष्ट्रवाद सभी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के समकालीन हैं। हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता हैं | भारत कोई ज़मीन का टुकड़ा नहीं है, हमारी मां है । हम सब इसके बच्चे हैं। जिस प्रकार भारतीय आध्यात्मिकता में मानवता के आगे बढ़ने के सभी सूत्र शामिल हैं, ठीक उसी प्रकार  राष्ट्रवाद में सांस्कृतिक तत्व सम्बल देता है। सन्मति, सहमति और सन्मार्ग का सहारा लेकर  सर्व-कल्याण के लिए कार्य करना हमारी संस्कृति का मूल आधार है।हमारे देश के राष्ट्रवाद की संकल्पना में अनुरोध और आग्रह का स्थान है, विरोध अथवा विग्रह का नहीं, इसीलिए हमारा राष्ट्रवाद सह-जीविता के सिद्धांत पर चलता है।
कार्यक्रम के संयोजक प्रो. आलोक श्रोत्रिय, अधिष्ठाता (अकादमिक) ने उद्घाटन भाषण से कार्यक्रम की शुरुआत की, कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीत कुमार मीणा द्वारा किया गया और अधिष्ठाता, छात्र-कल्याण प्रो. भुमिनाथ त्रिपाठी ने आभार प्रदर्शन किया । कार्यक्रम में प्रो. ए.के. पांडेय,  माननीय कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, विश्वविद्यालय के कुलनुशासक प्रो. शैलेन्द्र सिंह भदौरिया, कुलसचिव पी. सिलुवैनाथन, समस्त अधिष्ठातागण एवं अध्यक्षगण के साथ बड़ी संख्या में शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक अधिकारी- कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं शामिल हुए।

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