(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा)"आजादी में जनजातीय नायकों राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का योगदान एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में विश्वविद्यालयों की भूमिका" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के डॉ लक्ष्मण हवानुर सभागार में कोविड-19 की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से संपन्न हुआ। दीप प्रज्वलन एवं मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं कुलगीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव शिक्षाविद अतुल कोठारी, विशिष्ट अतिथि द्वय अशोक कड़ेल, संचालक मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी एवं ओम प्रकाश शर्मा क्षेत्रीय सह-संयोजक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास झाबुआ (मध्यप्रदेश) थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा की गई।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव शिक्षाविद अतुल कोठारी ने आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन पर जनजातीय नायकों राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को याद करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मसात करने पर विश्वविद्यालय को बधाई दी। उनहोंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति विद्यार्थियों के व्यक्तित्त्व के समग्र विकास के साथ एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करेगी जो विचार, बौद्धिकता और कार्य-व्यवहार से भारतीय होगी। इस विद्यार्थी केन्द्रित नीति के अंतर्गत समस्त विषयों में प्रायोगिक शिक्षा पर बल होगा जिससे विद्यार्थी अध्ययन के उपरांत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण दक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा के बाद इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में नई शिक्षा नीति इसी शैक्षणिक सत्र सत्र से लागू हो रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन एवं युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा भी विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। यह शिक्षा नीति वर्तमान में छात्रों के लिए काफी लाभकारी साबित होगी। इस नवीन शिक्षा नीति का उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत का निर्माण।
शिक्षाविद अतुल कोठारी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के साथ छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने पर भी काम किया जाना चाहिए जिससे आने वाले समय में शिक्षा हासिल करने वाले छात्र नौकरी ढूढने के बजाय रोज़गार सृजन करने वाले बनें ।विशिष्ट अतिथि अशोक कडेल ने इस अवसर पर कहा कि भारत में आजादी के बाद शिक्षा पर लगातार कार्य किया गया इस संबंध में 1967 में प्रथम शिक्षा नीति,1982 में द्वितीय शिक्षा नीति भारत में लागू की गई।लाखों लोगों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए गहन विमर्श के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 प्रस्तुत की गयी है।उन्होंने कहा कि अक्षर ज्ञान या बस्ते के बढ़ते बोझ से विद्यार्थी आत्मनिर्भर नहीं बनता है बल्कि शिक्षा को आत्मसात करने से वह सामाजिक उत्थान का वाहक बनाता है। विशिष्ट अतिथि श्री ओम प्रकाश शर्मा क्षेत्रीय सह-संयोजक, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास झाबुआ (मध्यप्रदेश) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा आनंद का विषय होना चाहिए परंतु विद्यार्थी शिक्षा और परीक्षा की पुरानी पद्धति में तनाव का अनुभव करते हैं। अतः शिक्षण संस्थाओं और विशेषकर शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि वह छात्रों के लिए शिक्षा को रुचिपूर्ण बनाएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा गया कि आज़ादी के अमृत महोत्सव में हमें जनजातीय नायकों राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के योगदान का स्मरण करना चाहिए। उनके प्रयासों ने समाज को ब्रिटिश राज के विरुद्ध संगठित किया और उनके बलिदान ने स्वातंत्र्य समर की क्रांति को प्रज्वलित किया था। हम इनके सदा ऋणी हैं, उनको शत-शत नमन। इन्होंने स्वतंत्रता आजादी की लड़ाई को सामाजिक धरा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कुलपति जी ने कहा कि जनजातीय विश्वविद्यालय में इन नायकों का पुण्य स्मरण करते हुए "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में विश्वविद्यालयों की भूमिका" विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से मैं सभी को बताना चाहता हूं कि विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मसात करने के साथ ही इसके अनुसार प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इसके लिए विश्वविद्यालय में 13 समितियों और एक टास्क-फोर्स का गठन किया गया है जो पाठ्यक्रमों के प्रारूप, पाठ्यचर्या के बिंदु, क्रेडिट की संख्या. प्रायोगिक प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास जैसे विषयों का आधार तैयार कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिसाब से समय-सारणी क्या होगी और इनका क्रियान्वयन किस तरह से होगा इसका विशेष ध्यान रखा गया है। यह विश्वविद्यालय देश के उन गिने-चुने विश्वविद्यालय में से एक है जहां प्राथमिक शिक्षा से लेकर शोध कार्य तक किए जाते हैं। आज जरूरत है संकल्प की जिससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति को यथार्थ के धरातल पर उतारा जा सके और इसके लिए विश्वविद्यालय प्रतिबद्ध है। आज विश्वविद्यालय आभासी मंच के साथ-साथ यथार्थ पर शिक्षण व्यवस्था की तैयारी में भी लगा हुआ है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीत कुमार मीणा द्वारा किया गया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. आलोक श्रोत्रिय, अधिष्ठाता (अकादमिक) ने कार्यक्रम के आरम्भ में स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम में कुलनुशासन प्रो. शैलेन्द्र सिंह भदौरिया, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. भूमिनाथ त्रिपाठी, शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एम.टी. व्ही. नागाराजू, कुलसचिव पी. सिलुवैनाथन के साथ बड़ी संख्या में शिक्षाकगण, अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण शामिल हुए।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव शिक्षाविद अतुल कोठारी ने आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन पर जनजातीय नायकों राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को याद करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मसात करने पर विश्वविद्यालय को बधाई दी। उनहोंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति विद्यार्थियों के व्यक्तित्त्व के समग्र विकास के साथ एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करेगी जो विचार, बौद्धिकता और कार्य-व्यवहार से भारतीय होगी। इस विद्यार्थी केन्द्रित नीति के अंतर्गत समस्त विषयों में प्रायोगिक शिक्षा पर बल होगा जिससे विद्यार्थी अध्ययन के उपरांत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण दक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा के बाद इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में नई शिक्षा नीति इसी शैक्षणिक सत्र सत्र से लागू हो रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन एवं युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा भी विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। यह शिक्षा नीति वर्तमान में छात्रों के लिए काफी लाभकारी साबित होगी। इस नवीन शिक्षा नीति का उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत का निर्माण।
शिक्षाविद अतुल कोठारी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के साथ छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने पर भी काम किया जाना चाहिए जिससे आने वाले समय में शिक्षा हासिल करने वाले छात्र नौकरी ढूढने के बजाय रोज़गार सृजन करने वाले बनें ।विशिष्ट अतिथि अशोक कडेल ने इस अवसर पर कहा कि भारत में आजादी के बाद शिक्षा पर लगातार कार्य किया गया इस संबंध में 1967 में प्रथम शिक्षा नीति,1982 में द्वितीय शिक्षा नीति भारत में लागू की गई।लाखों लोगों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए गहन विमर्श के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 प्रस्तुत की गयी है।उन्होंने कहा कि अक्षर ज्ञान या बस्ते के बढ़ते बोझ से विद्यार्थी आत्मनिर्भर नहीं बनता है बल्कि शिक्षा को आत्मसात करने से वह सामाजिक उत्थान का वाहक बनाता है। विशिष्ट अतिथि श्री ओम प्रकाश शर्मा क्षेत्रीय सह-संयोजक, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास झाबुआ (मध्यप्रदेश) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा आनंद का विषय होना चाहिए परंतु विद्यार्थी शिक्षा और परीक्षा की पुरानी पद्धति में तनाव का अनुभव करते हैं। अतः शिक्षण संस्थाओं और विशेषकर शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि वह छात्रों के लिए शिक्षा को रुचिपूर्ण बनाएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा गया कि आज़ादी के अमृत महोत्सव में हमें जनजातीय नायकों राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के योगदान का स्मरण करना चाहिए। उनके प्रयासों ने समाज को ब्रिटिश राज के विरुद्ध संगठित किया और उनके बलिदान ने स्वातंत्र्य समर की क्रांति को प्रज्वलित किया था। हम इनके सदा ऋणी हैं, उनको शत-शत नमन। इन्होंने स्वतंत्रता आजादी की लड़ाई को सामाजिक धरा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कुलपति जी ने कहा कि जनजातीय विश्वविद्यालय में इन नायकों का पुण्य स्मरण करते हुए "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में विश्वविद्यालयों की भूमिका" विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से मैं सभी को बताना चाहता हूं कि विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मसात करने के साथ ही इसके अनुसार प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इसके लिए विश्वविद्यालय में 13 समितियों और एक टास्क-फोर्स का गठन किया गया है जो पाठ्यक्रमों के प्रारूप, पाठ्यचर्या के बिंदु, क्रेडिट की संख्या. प्रायोगिक प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास जैसे विषयों का आधार तैयार कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिसाब से समय-सारणी क्या होगी और इनका क्रियान्वयन किस तरह से होगा इसका विशेष ध्यान रखा गया है। यह विश्वविद्यालय देश के उन गिने-चुने विश्वविद्यालय में से एक है जहां प्राथमिक शिक्षा से लेकर शोध कार्य तक किए जाते हैं। आज जरूरत है संकल्प की जिससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति को यथार्थ के धरातल पर उतारा जा सके और इसके लिए विश्वविद्यालय प्रतिबद्ध है। आज विश्वविद्यालय आभासी मंच के साथ-साथ यथार्थ पर शिक्षण व्यवस्था की तैयारी में भी लगा हुआ है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीत कुमार मीणा द्वारा किया गया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. आलोक श्रोत्रिय, अधिष्ठाता (अकादमिक) ने कार्यक्रम के आरम्भ में स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम में कुलनुशासन प्रो. शैलेन्द्र सिंह भदौरिया, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. भूमिनाथ त्रिपाठी, शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एम.टी. व्ही. नागाराजू, कुलसचिव पी. सिलुवैनाथन के साथ बड़ी संख्या में शिक्षाकगण, अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण शामिल हुए।
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