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साहित्यिक कृति जब्त हो सकती है, साहित्यकार की स्वतंत्र चेतना नहीं -कुलपति प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंचलधारा) आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के हिंदी विभाग द्वारा “स्वाधीनता  आन्दोलन की साहित्यिक अभिव्यक्ति’ विषय पर 10 अगस्त को  राष्ट्रीय  वेब संगोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आज़ादी के मूल्यों को प्रकाश पुंज बताया, यह ऐसा पुंज है जो सदैव पाथेय रहा है। स्वतन्त्रा आन्दोलन की साहित्यिक अभिव्यक्ति की शुरुआत 1857 से लेकर आज तक निरंतर दिखाई देती है। भारतेंदु युग में यह स्वर प्रमुखता से दिखाई देता है। यहाँ रुढियों से मुक्त होकर आत्मबल की चेतना को जागृत किया, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोक चेतना को भी साहित्यकारों  ने अभिव्यक्त किया और अपने अतीत और अपने इतिहासबोध को पुनः रेखांकित किया ब्रिटिश शासन की निरंकुशता को अंधेर नगरी में भारतेंदुजी ने बड़ी व्यंगात्मकत  से उजागर किया है। साहित्य की विविध विधाओं को याद करते हुए उसमें निहित आज़ादी के जीवन मूल्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला, साहित्यकारों को आज़ादी की चेतना के लिए जेल में भी डाला गया, लेकिन साहित्य की चेतना किसी बंधन को स्वीकार नहीं करती हैं।साहित्य देश और काल की सीमा से परे होता है।भारत को दुनिया का सर्व श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में भारतीय साहित्य और साहित्यकारों की विशेष  भूमिका है, इस भूमिका को कभी भुलाया  नहीं किया जा सकता है।
प्रो. सूर्य प्रकाश दीक्षित (लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और प्रोफेसर) जी ने 1857 के ग़दर से लेकर 1947 के भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में सैकड़ों वीर, क्रांतिकारी कवियों का स्मरण किया, अंग्रेजी राज में आधुनिक विकास की नीतियों ने कैसे आम जनता के बीच लोकप्रियता हासिल की थी और जिससे उस दौर के साहित्यकार भी अछूते नहीं रहे, इसीलिए उस दौर की रचनाओं में राष्ट्रीयता और अंग्रेजी राज के बीच एक द्वन्द दिखाई देता है, लेकिन ज़ल्द ही साहित्यकारों ने अंग्रेजों की शोषणकारी प्रवृत्तियों को पहचान भी लिया था। जब भारतेंदु हरिश्चंद कहते हैं कि अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी, पै धन विदेश चली जात यहै अति ख्वारी। अतः स्पष्ट है कि यहाँ अंगेजी राज या रानी विक्टोरिया के प्रति मोह भंग होने लगता है। इस रूप में देखा जाए तो 1857 की क्रांति से लेकर देश की स्वतन्त्रता तक विस्तृत फलक पर राजनैतिक घटनाओं का प्रभाव  साहित्य पर दिखाई  देता है। जलिया बाला बाग़, चौरी चौरा  काण्ड जैसी घटनाओं का प्रभाव साहित्य में दिखाई देता है, गांधी जी के आगमन के बाद बड़ी संख्या में चरखा गीत, प्रभात फेरी गीत रचे गए, बंग भंग को लेकर निराला ने काले क़ानून उपन्यास लिखा हालाँकि यह अधूरा ही रह गया,राजेन्द बाला घोष ने बंग भंग पर दुलाई वाली कहानी लिखी, बाद में स्वदेशी आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, साइमन कमीशन के विरोध में रचनायें  लिखी गयीं, क्रांतिकारी आन्दोलनों पर बहुत रचनाएं लिखी गयीं। किसान आन्दोलन से जुड़कर हमारा आज़ादी का आन्दोलन और तीब्र हुआ, 1857 के ग़दर से काकोरी काण्ड तक रोशन अली, बिश्मिल खान, भगत सिंह जैसी क्रांतिकारीयों ने फांसी के फंदे पर चढ़ते हुए अपनी रचनाएं गाते रहे, बहुत सारे पत्रकार जो पत्रकारिता भी करते थे। साहित्य भी रचते थे और आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय रूप से भी भाग लेते थे, देश की आज़ादी में उनके महत्वपूर्ण अवदान को हमेशा याद किया जायेगा। लार्ड कर्जन की नीतियों और दिल्ली दरबार के जलसे का बाल मुकुंद गुप्त ने शिव शम्भू के छिट्ठे में बखूबी खबर ली है। प्रताप नारायण मिश्र ने ब्राहमण पत्र के माध्यम से अंग्रेजी शासन की विसंगतियों को रेखांकित किया, राम प्रसाद बिस्मिल सिर्फ क्रांतिकारी ही नहीं थे बल्कि  एक राष्ट्र भक्त शायर थे। इसी तरह रोशन अली बड़े क्रांतिकारी और शायर थे।काकोरी काण्ड में शामिल हुए और देश के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। ”ज़िन्दगी ज़िंदा दिली का नाम है रोशन” “खाके वतन मेरी कफ़न में रख दी जाए, यही मेरी सबसे बड़ी तमन्ना है” ये पंक्तियाँ आज भी लोगों की जुबान पर सुनाई देती हैं।आशय यह है कि हमारा जीवन अगर बलिदान पर केन्द्रित नहीं रहा, इस जीवन में देश  की आज़ादी के लिए  हमारे जीवन में कोई स्वप्न नहीं रहा तो यह जीवन किसी काम का नहीं।
इस कार्यक्रम में मगध विश्वविद्यालय,बोध गया बिहार से हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष प्रो. विनय भारद्वाज मुख्य वक्ता  के रूप में जुड़े। प्रो विनय भारद्वाज ने प्रेमचंद, यशपाल, भीष्म साहनी, मन्नू भंडारी, श्री लाल शुक्ल के साहित्य में अभिव्यक्त आज़ादी के मूल्यों को रेखांकित किया। अपने वक्तव्य में प्रो. विनय ने राष्ट्रीय  चेतना के गीतों का भी जिक्र किया, दरअसल साहित्य और सिनेमा का अंतर क्रियात्मक सम्बन्ध है, दोनों विधाएं एक दूसरे के पूरक हैं।
इस संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. रेणु सिंह ने किया, विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. रेनू सिंह ने राष्ट्रकवि मैथिलि शरण गुप्त के भारत भारती, माखन लाल चतुर्वेदी की क्रांतिकारियों को सपर्पित कविता पुष्प की अभिलाषा और सुभद्रा कुमारी चौहान की झांसी की रानी कविता को याद किया साथ ही साथ शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्यकारों के स्वाधीनता आन्दोलन के साहित्यिक अवदान को रेखांकित किया। अतिथियों का स्वागत मानविकी एवं भाषाशास्त्र संकाय की अधिष्ठाता प्रो. अभिलाषा सिंह ने किया, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जीतेन्द्र कुमार सिंह ने किया और कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. पूनम पाण्डेय ने किया श्री अरविन्द गौतम ने तकनीकी सहायता की, इस अवसर पर विभाग के अन्य शिक्षक डॉ. प्रवीण कुमार, डॉ. वीरेन्द्र प्रताप समेत विश्वविद्यालय के अनेक संकायों के अधिष्ठाता, विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, प्राध्यापक और सभी प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारीयों ने गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई। इस वेब संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय से  बड़ी संख्या में शोध-छात्रों और छात्रों ने सहभागिता की।

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