Anchadhara

अंचलधारा
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रक्तदान करते युवक ने फोटो लेने से किया मना कहा- दान है...तो प्रचार क्यों -मनोज द्विवेदी

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंचलधारा) समझ, बुद्धि, विवेक , संस्कार का उम्र से कोई बहुत लेना-देना रहता नहीं है।बहुत से बड़ी उम्र के नासमझ देखने को आए दिन मिल जाते हैं तो कभी-कभी ऐसी घटना घट जाती है कि कम उम्र का व्यक्ति या बच्चा भी बड़ी सीख दे जाता है।
कल ऐसी ही एक घटना अनूपपुर जिला चिकित्सालय में घटी। कोतमा विधानसभा अन्तर्गत ग्राम कोठी के एक मरीज के लिये बी पॉजिटिव रक्त की जरुरत थी।ध्यानाकर्षण किये जाने पर मैंने डा. आर. पी.श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने बतलाया कि बी पॉजिटिव ब्लड अस्पताल में नहीं है। तब रक्त उपलब्ध करवाने के लिये मैंने अपने लोगों को टटोलना शुरु किया।पुरानी बस्ती , अनूपपुर निवासी कमलेश तिवारी ( पिन्टू) से आग्रह करने पर उन्होंने व्यवस्था करने के लिये आश्वस्त कर दिया।पिन्टू तिवारी रक्त दान के लिये हमेशा सुलभ रहने वाला जाना-माना नाम है।
दस मिनट में ही उन्होंने मुझे एक नम्बर व्हाट्स एप करके बतलाया कि यह व्यक्ति जिला अस्पताल आ रहा है, कृपया आप भी पहुंच जाएं। 
पुरानी बस्ती , वार्ड नम्बर 13 का तिवारी नाम का युवक लगभग 23 वर्ष का है। वह पहली बार रक्त दान करने आया था।रक्त परीक्षण के बाद जैसे ही उसके रक्तदान की प्रक्रिया शुरु हुई तो मौके पर उपस्थित कुछ पत्रकारों ने उनकी तस्वीर खींचने की कोशिश की तो उसने विनम्रता से फोटो लेने से मना कर दिया। पत्रकारों ने उन्हे समझाया कि रक्तदान बड़ा कार्य है,आप पहली बार रक्तदान कर रहे हो...समाचार प्रकाशन से अन्य लोगों को प्रेरणा मिलेगी। लेकिन इसके बावजूद रक्तदाता तिवारी जी ने पुन: यह कहते हुए फोटो खिंचवाने से मना कर दिया कि रक्तदान सबसे पवित्र कार्य है। यदि इसका मैं ढिंढोरा पिटवाऊं तो दान शब्द का महत्व ही नहीं रह जाएगा। 
फोटो, सेल्फी, सोशल मीडिया के इस प्रचार-प्रसार वाले दौर में जब लोग नाखून कटवा कर शहीद बन जाते हैं.... महज 22 साल के एक युवक की ऐसी भावना देख कर हम सभी हतप्रभ थे। बस्ती के इस महान तिवारी जी का बडप्पन , उनके माता-पिता द्वारा दिये गये संस्कार ,उनकी समझ से हम सभी अभिभूत थे। हम सबने उनका हृदय से अभिनन्दन किया और वो सरल ,सहज मुस्कान बिखेरते रहे। सचमुच ! नि: स्वार्थ मदद का भाव सर्वश्रेष्ठ होता है। इतनी कम उम्र में यदि उन्हे इसका अहसास है तो निश्चित रुप से यह उनके माता- पिता, गुरु द्वारा दी गयी शिक्षा - संस्कार का प्रभाव ही है। शाबाश तिवारी जी ...युग - युग जियो। आपके माता - पिता, गुरु  को शत् शत् प्रणाम्। 

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