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लाकडाऊन एवं स्वदेशी आर्थिक मॉडल आयुर्वेद तथा योग पद्धति की ओर बढता भारत

(मनोज कुमार द्विवेदी)
अनूपपुर (अंचलधारा) कोरोना का हाहाकारी संक्रमण काल पांच माह बाद भी सिकुडता नहीं दिख रहा । तेलंगाना राज्य ने 29 मई तक लाकडाऊन बढा दिया तो दूसरे राज्यों में लाकडाऊन से निकलने या इसे आगे बढाने की योजना पर विचार किया जा रहा है। कोरोना से बचाव के साथ दुनिया के तमाम देशों के लिये अर्थव्यवस्था को संभाले रखने की बड़ी चुनौती है। अमेरिका, ब्रिटेन, रुस, आस्ट्रेलिया, फ्रांस ,चीन, जापान जैसे देशों में बडे व्यापार युद्ध की आशंका गहराती जा रही है। चीन में कोरोना बना या बनाया गया, दुनिया में यहाँ से स्वाभाविक फैलाव हुआ या फैलाया गया , इसके पीछे की मंशा स्पष्ट ना होने के बाद भी चीन द्वारा विश्व व्यापार पर बढत लेने , घटिया उपकरण आपूर्ति करने के आरोप लग रहे हैं। बहुत सी विदेशी कंपनियों के चीन से बोरिया बिस्तर समेटने की तैयारियों के बीच भारतीय अर्थ व्यवस्था के लिये संभावनाएं तलाशने का कार्य भी हो रहा है।
वहीं भारत में एक वर्ग ऐसा भी है जो भारतीय जीवन शैली में सुधार के साथ स्वदेशी आर्थिक माडल को मजबूत करने के लिये चिंतन, मनन कर रहा है। विगत दिवस देश के 200 से अधिक लेखकों, संपादकों, ब्लागर्स की आन लाईन संपन्न हुई वीडियो कांफ्रेस में
लाकडाऊन के दौरान भारतीय जीवन शैली पर चर्चा करते हुए आने वाले वर्षों में कोरोना संक्रमण के माहौल से देश को बचाते हुए भारतीय अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने पर विचार विमर्श किया गया। जिसमे निकला निचोड़ यही है कि भारत को यदि आने वाले वर्षों में विश्व की बडी शक्ति बनना है तो स्वदेशी आर्थिक माडल की संभावनाओं पर कार्य करना होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने पिछले माह राष्ट्रीय चैनलों तथा सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से भारत की जनता को संबोधित करते हुए इस आशय की अपील की थी कि यथा संभव विदेशों पर निर्भरता कम करना होगा। यह देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इण्डिया की नीति को महज आगे बढाने की बात नहीं हो रही है। ना ही इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वदेशी जागरण का अभियान समझ कर खारिज किया जा सकता है। यद्यपि देश में एक वर्ग ऐसा है , जो जैसे ही स्वदेशी की बात शुरु हो, उसे चाईना विरोध से जोडकर कमजोर करने का अभियान चलाता रहा है। इसे समझना होगा कि सदियों से भारत अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति घरेलू निर्माण के बूते करता रहा है। वैश्विक बाजारीकरण से कोई देश बच नहीं सकता लेकिन उस पर निर्भरता कम की जा सकती है।
कोरोना संकट के शुरूआती सप्ताह में भारत को पीपीई ( पर्सनल प्रोटक्शन इक्विपमेंट ) की कमी से जूझना पड़ा । चीन से मंगवाए गये पीपीई घटिया तथा
संदिग्ध पाए गये। विश्व के अन्य देशों में भी चीन ने प्रति अविश्वास बढा है। ऐसे में भारत में मार्च - मई के बीच दो माह में कई कंपनियों ने उच्च गुणवत्ता के लाखों पीपीई बना डाले। ये विदेशी पीपीई से अच्छे व सस्ते हैं। ऐसा ही मास्क निर्माण में भी हुआ है। जब बहुत से बडे देश मास्क की कमी से जूझ रहे थे ,तब म प्र के छोटे से अनूपपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने मोर्चा संभाला। ग्रामीण आजीविका मिशन कॆ स्वसहायता समूहों से जुडी महिलाओं ने तय मानक के अनुरुप सस्ता व बढिया , उच्च गुणवत्ता का मास्क बनाना शुरु किया। अकेले इस जिले ने दो लाख मास्क की आपूर्ति की है। देश को यह जानकर आश्चर्य होगा कि सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह, कलेक्टर चन्द्रमोहन ठाकुर से लेकर छोटे - बडे सभी लोग इस वाशेबल मास्क का उपयोग सरलता से कर रहे हैं। मास्क निर्माण भारत के अधिकांश शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों मे हो रहा है। कोरोना के चलते लाकडाऊन में देश पीपीई, मास्क, हाइड्राक्सी क्लोरोक्वीन सहित अन्य दवाईयों, सेनेटाइजर के स्वेदेशी उत्पादन मे आत्म निर्भर हुआ है। दुनिया के बहुत से देशों को भारत सस्ता , अच्छा इक्विपमेंट , दवाएं , मास्क निर्यात करने की स्थिति मे आ चुका है।
कोरोना बदलाव की एक वैश्विक परिस्थिति है, जिसमें दुनिया भर की अर्थ व्यवस्था गिरावट तथा मंदी का दॊर आना लाजिमी है। भारत में लाकडाऊन के दौरान राज्यों ने केन्द्र सरकार की योजना के अनुरुप लोगों को जो जहाँ है, वहीं रखने का कार्य नहीं किया। कंपनियां, फैक्ट्री, प्रतिष्ठान , दुकानें बन्द होने पर करोड़ों श्रमिकों के सामने रहने, खाने, पीने ,जीवन बचाए रखने की बडी चुनौती सामने आ खडी हुई। अन्य राज्यों , शहरों में जाकर काम करने वाले भूख से बचने के लिये अपने - अपने गृह राज्यों की वापसी के लिये निकल पडे।
इन पर संक्रमण, बेरोजगारी, भूख की तिहरी मार है। बडी संख्या मे श्रमिकों की घर वापसी से देश के संसाधनों पर भारी चोट पडने की आशंका है। श्रमिकों, मजदूरों के वापस जाने से बन्द पडे कारखानों, फैक्ट्रियों, संस्थानों को फिर से चालू करना कठिन होगा। जो श्रमिक पिछले तीन माह से बेरोजगार हैं, वापस अपने गांव पहुंच चुके हैं, उन्हे राशन देना तथा काम उपलब्ध कराना सरकारों के लिये बडी चुनौती होगी।
ऐसे मे स्वदेशी आर्थिक माडल की ओर देश बढता दिख रहा है। यह जरुरी है कि नया आर्थिक माडल कम उर्जा भक्षी हो , इसमें कम से कम ऊर्जा का व्यय हो। पर्यावरण संरक्षण की चिंता को दूर करता हो। रोजगार मूलक हो एवं वैज्ञानिक तकनीकी के कुशल उपयोग पर केन्द्रित हो। तकनीकी का चयन सिर्फ कंपनियाँ या सरकार ना करें।‌ इसके लिये स्थानीय समाज, परिस्थितियों को प्रधानता दी जा सकती है। यह ग्राम केन्द्रित होगी तो स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मुहैया करा पाएगा।
कोरोना जैसे वैश्विक वायरस युद्ध में भारत ने मजबूती दिखलाई है। आर्थिक मंदी एवं रोजगार सुलभता को लेकर सरकार में बडी योजना पर कार्य चल रहा है। आने वाले समय में भारत को भोजन, वस्त्र, दवाओं, रोग प्रतिरोध जीवन शैली की सनातन परंपराओं की ओर वापस जाना होगा। जो वस्तुएँ हमारे लिये
आवश्यक नहीं हैं, उसका बेवजह संग्रह ना करें। भारत में निर्मित शुद्ध , सस्ते या थोडे मंहगे , गुणवत्ता युक्त वस्तुओं का प्रयोग करें। विदेशी संसाधनों पर निर्भरता कम से कम रहे। आवश्यक ना हो तो विदेशी वस्तुओं का परित्याग करें। पेट्रोल , डीजल का उत्पादन देश में कम होता है। लेकिन यह आवश्यकता की वस्तुएँ हैं। इनका कम से कम उपयोग करें। इलाज के लिये भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को गुणवत्ता युक्त बना कर आम जनजीवन के समीप लाना होगा। आयुर्वेद हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति है। भारत को इसका वैश्वीकरण करना होगा। जडी बूटी आधारित चिकित्सा पद्धति विश्व के लिये भारत का बहुमूल्य उपहार हो सकता है। प्रकृति आधारित चिकित्सा केन्द्रों को विस्तारित करने की जरुरत है। ग्राम को आर्थिक विकास की इकाई बनाकर भौगोलिक तथा पर्यावरणीय विविधता के अनुरुप अलग - अलग कार्य क्षेत्र विकसित किये जा सकते हैं।
योग + आयुर्वेद युक्त जीवन शैली सनातन भारत की सात्विक, सरल, आध्यात्मिक लेकिन मजबूत जीवन का आधार रही है। विगत् कुछ दशकों से अलग - अलग कारणों से हमने अपनी जडों को छोड कर पाश्चात्य जीवन शैली को अपना लिया। कोरोना ने पाश्चात्य जीवन शैली पर गंभीर सवाल खडे किये हैं। इनकी तुलना में भारतीय जीवन पद्धति अधिक मजबूती से टिकी रह सकी। स्वस्थ जीवन शैली को
अपना कर हम अपना , अपने परिवार की , समाज की तथा इसके माध्यम से देश की मजबूती के लिये कार्य कर सकते हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक योग तथा आयुर्वेद को अपना कर भारतीय स्वदेशी आर्थिक माडल का मजबूत सैनिक बन सकता है। स्वदेशी आर्थिक माडल में भारत की सवा अरब आबादी का स्वस्थ, समर्पित ,एक निष्ठ होना आवश्यक होगा। यह भारत को आने वाले वर्षों में विश्व शक्ति बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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