(चुभती बात)
मनोज द्विवेदी, कोतमा- अनूपपुर
अनूपपुर (अंचलधारा) क्या कांग्रेस का शीर्ष नेत्रत्व २०१८ विधानसभा चुनाव में विजय को लेकर आश्वस्त नहीं है या वह इस पर भी चिन्तित है कि पार्टी के अन्य नेताओं की अपेक्षा ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद तेजी से बढा है । गुरुवार को म प्र के नये अध्यक्ष कमलनाथ की घोषणा के साथ जिस तरह से ५+१ का फार्मूला लागू किया गया है वह पार्टी की योजना कम ,उसके गिरते आत्मविश्वास की झलक अधिक मिलती है।
गुरुवार, २६ अप्रैल म प्र की राजनीति के लिये गहमागहमी भरा रहा। दोपहर होते होते ए आई सी सी ने म प्र कांग्रेस अध्यक्ष पद से अरुण यादव की विदाई करते हुए सत्तर वर्ष से अधिक उम्र के छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ को नया अध्यक्ष बना दिया। यह कोई चॊंकाने वाला निर्णय नही था। २००८ व २०१३ मे प्रदेश मे कांग्रेस की चुनावी कमान जिन कन्धों पर थी ,उनसे किसी चमत्कार की अपेक्षा नहीं थी।दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह राहुल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के किये न पिछले चुनाव मे कुछ हुआ था ऒर न ही अरुण यादव की अध्यक्षी में संगठन मे प्राण वापस आए । संसद मे अपेक्षाकृत अधिक मुखर सिंधिया व सचिन पायलट को बहुत से अवसरों पर राहुल - प्रियंका गांधी से अधिक योग्य चेहरा माना गया। मीडिया मे भी इन्हे संभावित विकल्प के रुप मे चर्चा मिली। म प्र की राजनीति मे ब्राह्मणों की उपेक्षा व जातिगत उथल पुथल के बीच यह अपेक्षा की गयी थी कि शायद कांग्रेस ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेले। संभवतः अपने पुत्र के भविष्य को लेकर चिंतित दिग्विजय सिंह के विरोध व अन्य किसी कारण से राहुल गांधी ने सिंधिया जैसे अपेक्षाकृत युवा सक्रिय चेहरे पर ७० वर्षीय कमलनाथ के अनुभव ( ?) को तरजीह दी। कमल के मुकाबले कमलनाथ को पाकर प्रदेश मे जो प्रतिक्रिया हुई उस पर ५+१ के फार्मूले ने सवाल खडे कर दिये।
कमलनाथ को अध्यक्ष बनाने के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को कैंपेनिंग कमेटी का अध्यक्ष तथा बाला बच्चन , जीतू पटवारी, रामनिवास रावत व सुरेन्द्र चॊधरी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने से जाति व क्षेत्रीय समीकरण साधने के प्रयास भले ही हुए हों ,यह सवाल भी उठ खडा हुआ कि क्या कमलनाथ की योग्यता पर आलाकममान को भरोसा नही है। अरुण यादव,कांतिलाल भूरिया,अजय सिंह राहुल ,सज्जन सिंह वर्मा की भूमिका अभी स्पष्ट नही है। अजय सिंह राहुल नेता प्रतिपक्ष हैं, न्याय यात्रा के दॊरान पुष्पराजगढ मे उनका नाचते हुए वीडियो वायरल होने से संवेदनशीलता पर प्रश्न खडे हुए थे।
तमाम कयासों के बावजूद सिंधिया को म प्र की कमान न मिलना दिग्विजय - अजय सिंह गुट की जीत माना जा रहा है। वही यह भी सवाल उठ खडे हुए हैं कि क्या राहुल गांधी ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता , स्वीकार्यता से भयभीत हैं ? क्या उन्हे यह डर है कि २०१८ - १९ मे अपेक्षित सफलता न मिलने पर उन्हे पार्टी के भीतर चैलेन्ज मिल सकता है। बहरहाल राजनैतिक गलियारे मे यह चर्चा सरगर्म है कि शिवराज सिंह - राकेश सिंह के सामने कमलनाथ कमजोर कडी साबित हो सकते हैं।
अनूपपुर ब्यूरो/ हिमांशु बियानी
अनूपपुर ब्यूरो/ हिमांशु बियानी
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