Anchadhara

अंचलधारा
!(खबरें छुपाता नही, छापता है)!

ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व से परिपूर्ण है............

 

शिवलहरा की अभिलेखित
 गुफाएँ अमूल प्राचीनतम धरोहर
(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा)जिला मुख्यालय से 50 कि.मी. की दूरी तथा पवित्र नगरी अमरकंटक से महज 125 किलोमीटर की दूरी पर दारसागर ग्राम पंचायत के अंतर्गत शिवलहरा नामक स्थल पर शैलोत्कीर्ण गुफा,भालूमाडा से लगभग 3 कि.मी. की दूरी पर केवई नदी के बायें तट पर स्थित है।जिनमे प्रथम शताब्दी ईस्वी की ब्राह्मी लिपि शिलालेख,प्राकृत भाषा में मूल्देव अमात्य के द्वारा चेरी गोदडी,दुर्वासा एवं सीतामढ़ी गुफा में लेख उत्कीर्ण कराया गया है।  
          यह स्थान शिवलहरा धाम के नाम से भी प्रचलित है और देश की अमूल्य प्राचीनतम धरोहर होने के साथ-साथ स्थानीय आस्था का भी प्रतीक माना जाता रहा है।प्रो. आलोक श्रोत्रीय,डॉ.मोहन लाल चढार के द्वारा शिलालेखों का विवेचन किया गया,जिसमे अभिलेखों से स्वामिदत्त के राज्य में सिवमित और मोगली (मोग्दली) के पुत्र, वत्स गोत्र के मूलदेव द्वारा शिलागृह के निर्माण की जानकारी होती है।
          यह स्वामिदत्त कौन था...? इसकी जानकारी किसी अन्य साक्ष्य से अब तक नहीं हुई है।असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. हीरा सिंह गोंड कहते हैं कि शिवलहरा की गुफाओं और उनमें पाए जाने वाले अभिलेखों के अध्ययन से इन गुफाओं का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व उद्घाटित होता है। शिवलहरा की गुफाएँ तथा केवई नदी का तटवर्ती क्षेत्र अत्यंत मनोहारी दृश्य उपस्थित करता है।महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है और हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।इसके अलावा भी बड़ी संख्या में पर्यटक तथा आस पास के निवासी आमोद-प्रमोद के लिए यहाँ आते रहते हैं।यह गुफाएँ मध्यप्रदेश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश के गुहा वास्तु के विकास को समझने की दृष्टि से विशिष्ट स्थान रखती हैं। इनके बारे में अभी विद्वत जगत को भी अधिक जानकारी नहीं है। गुफाओं की भित्तियों पर ईस्वी सन की आरंभिक शताब्दियों के शिलालेख लिखे होने के कारण यह गुफाएँ और भी महत्वपूर्ण हो गयी हैं।भारतीय पुरालिपि के विकास,प्राकृत भाषा के विकास और अभिलेख शास्त्र के मूलभूत तत्वों को समझने के लिए अनुसंधान- कर्ताओं के लिए इन गुफाओं की महत्ता निर्विवाद है।शंख लिपि की पहेली को समझाने का सूत्र इस गुहा समूह की एक गुफा के स्तम्भ पर अंकित है।इसमें भी इस गुहा समूह का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व बहुत बढ़ जाता है। भारतीय इतिहास के अज्ञात पक्षों और इसकी टूटी हुई कड़ियों को जोड़ने में इन गुफाओं और अभिलेखों पर भविष्य में होने वाले शोध और अधिक प्रकाश डाल सकेंगे।

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