(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) जिले के ह्रदय स्थल पर स्थित शिव मारुति मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक सदियों से माना जाता है।
इस प्राचीनतम धरोहर का अपना ही इतिहास है।भगवान शिव के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 12वीं-13वीं शताब्दी में हुआ था और आज भी इस मंदिर के स्तम्भ,मूर्तियों और दीवारों पर बनी कलाकृतियाँ अपना अविस्मरणीय इतिहास बयां करते हुए पुरातत्वविदों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
डॉ.हीरा सिंह गौड़ (असिस्टेंट प्रोफेसर,शास. महाविद्यालय राजनगर जिला अनूपपुर) ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि सामतपुर अनूपपुर जिला मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है।यह 230,8‟ उत्तरी अक्षांश और 810,42‟ पूर्वी देशांतर है।इस मंदिर में कई खंडित मूर्तियां उपलब्ध हैं।शहडोल गजतटीर में लिखा है कि सामंतपुर में एक पुराना मंदिर है जिसमें चार खंभे और दो प्रवेश द्वार हैं।जबकि प्रवेश द्वार पर गणेश विराजमान हैं।इस ले जाने वाले रथ में घोड़े के साथ चार खंभे हैं।यह गर्भगृह और आधार में अंतराल में विभाजित है और इसके आगे एक नया मंडप है।खड़ी स्थिति में अधिष्ठान टीले,जंघा, शिखर और अमलाक हैं।जंघा दो भागों में बंटा हुआ है।जहां पीछे की तरफ दो अलींदा और लेकम हैं।मंदिर में,अलिंदा के पीछे लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति है और ऊपर की ओर उमा- महेश्वर है।
यह भगवान शिव को समर्पित पंचरथ शैली में बनाया गया है। गर्भगृह योजना और ऊंचाई पर पंचरथ है। पांच अवरोही चरणों की उड़ान से गर्भगृह के तल तक पहुँचा जाता है। गर्भगृह की माप 2.10 मीटर लम्बा और 2.9 मी. चौड़ा है।अंतराल गर्भगृह के अंदर है और 2.3 मीटर लंबा और 2.4 मीटर चौड़ा मापता है।गर्भगृह की दीवार समतल है।गर्भगृह-द्वार को तीन शाखाओं से तराशा गया है।पहली, दूसरी और तीसरी शाखा को नागबल्लारी और सर्पिल कमल-स्क्रॉल से सजाया गया है।शाखाओं के निचले हिस्से को नागबल्लरी और सर्पिल कमल स्क्रॉल से सजाया गया है।शाखाओं के निचले हिस्से को मूर्तियों से सजाया गया है। द्वार के दाहिने किनारे पर पद्मापत्र के नीचे त्रिभंग मुद्रा में खड़ी दो भुजाओं वाली गंगा को उकेरा गया है और कमल के डंठल और कलश को धारण किया है।उसके लेकम पर माउंट क्रोकोडाइल खुदी हुई है।स्तनों सहित गंगा के अग्र भाग को काट दिया गया है।वह एक दाँतेदार मुकुटा, तातंकाचक्र और एक मेखला द्वारा बांधी गई साड़ी पहनती है। द्वार के बायें किनारे पर त्रिभंग मुद्रा में खड़ी दो भुजाओं वाली यमुना खुदी हुई है और कलश और कमल-डंठल ले जा रही है। माउंट कछुआ उसके लेकम पर दिखाया गया है। गर्भगृह-द्वार के लिंटेल को लालताबीम पर उकेरा गया है जिसमें ललितासन में बैठे चार सशस्त्र गणेश की छवि है।
ऊंचाई में मंदिर नीचे से ऊपर की ओर एक सादे भित, जद्यकुंभ, कर्णिका और पद्मलता की एक चित्रवल्लरी दिखाता है जो पीठ की ढलाई का निर्माण करता है।पीठा की ढलाई अधिष्ठान द्वारा की जाती है, ढलाई में शतरंज बोर्ड के डिजाइन के साथ खुरा सजाया जाता है, कुंभ को एक सादे मध्य बैंड के साथ उकेरा जाता है और एक रोसेट युक्त एक आला के साथ सजाया जाता है और चैत्य मेहराब, कलसा और कुदुओं से सजाए गए कपोटा के एक छोटे से शिखर से घिरा होता है। कांगा के ऊपर छाया, कपोत और कर्णिका से बनी वार्तंडिका ढलाई है। वरंदिका के ऊपर पंचरथ शिखर को चैत गावकों की जाली से उकेरा गया है।यह चारों कोनों में से प्रत्येक पर छह भूमि-अमलक दिखाता है।मंदिर लगभग नौ मीटर ऊंचा है। मंदिर सफेद बलुआ पत्थर से बना है और कल्चुरी काल यानी 12वीं-13वीं शताब्दी ईस्वी का है।
इसी क्रम में हमने कुछ लोगों से मंदिर से जुडी कहानी और किवदंतियों के बारे में जानने का प्रयास किया और पाया कि हर कोई इसकी कहानी अपने तरीके से ही बयां करता है।आस्था और भक्ति के प्रतीक शिव मारुति मंदिर में भगवन शिव और बजरंगबली सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं सच्चे मन से की गई भक्ति का फल अवश्य मिलता है।वहीँ मंदिर के पास रहने वाले शेषनारायण राठौर कहते हैं कि यह मंदिर बहुत पुराना है,मंदिर होने की वजह से ही यहाँ लोगों ने बस्ती बसाई और आज घनी आबादी के साथ यह स्थान एक जिला बन चुका है।मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान शिवलिंग काफी नीचे की ओर धंसा हुआ है ऐसी कहावत है कि बहुत पहले कुछ लोगों ने निर्णय लिया कि शिवलिंग के आस पास खुदाई कर उसे स्थान से ऊँचा किया जाए,परन्तु लगभग 8 फीट गहरी खुदाई करने पर भी शिवलिंग का निचला हिस्सा उन्हें नहीं मिला और खुदाई बंद करनी पड़ी।साथ ही मंदिर को लेकर कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि मंदिर का निर्माण नागवंशी राजाओं द्वरा किया गया होगा ना कि पाण्डवों द्वारा,साथ ही कहते हैं कि प्रतिदिन सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग और हनुमान जी की प्रतिमा पर पड़ती है, हालाँकि इस बात की सच्चाई का अनुमान लगाना तो मुस्किल है लेकिन इन सभी कुछ कही-कुछ अनकही बातों, किस्से-कहानियों के साथ सामतपुर का यह मंदिर चर्चा का विषय बना हुआ है और प्रतिदिन सुबह शाम लगभग 700 से 1000 श्रद्धालु यहाँ आते हैं।पूजा अर्चना कर रामायण की चौपाइया गाते हैं जिसमें युवा पीढ़ी के जवानों में विशेष रुझान देखने को मिलता है।
इस प्राचीनतम धरोहर का अपना ही इतिहास है।भगवान शिव के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 12वीं-13वीं शताब्दी में हुआ था और आज भी इस मंदिर के स्तम्भ,मूर्तियों और दीवारों पर बनी कलाकृतियाँ अपना अविस्मरणीय इतिहास बयां करते हुए पुरातत्वविदों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
डॉ.हीरा सिंह गौड़ (असिस्टेंट प्रोफेसर,शास. महाविद्यालय राजनगर जिला अनूपपुर) ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि सामतपुर अनूपपुर जिला मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है।यह 230,8‟ उत्तरी अक्षांश और 810,42‟ पूर्वी देशांतर है।इस मंदिर में कई खंडित मूर्तियां उपलब्ध हैं।शहडोल गजतटीर में लिखा है कि सामंतपुर में एक पुराना मंदिर है जिसमें चार खंभे और दो प्रवेश द्वार हैं।जबकि प्रवेश द्वार पर गणेश विराजमान हैं।इस ले जाने वाले रथ में घोड़े के साथ चार खंभे हैं।यह गर्भगृह और आधार में अंतराल में विभाजित है और इसके आगे एक नया मंडप है।खड़ी स्थिति में अधिष्ठान टीले,जंघा, शिखर और अमलाक हैं।जंघा दो भागों में बंटा हुआ है।जहां पीछे की तरफ दो अलींदा और लेकम हैं।मंदिर में,अलिंदा के पीछे लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति है और ऊपर की ओर उमा- महेश्वर है।
यह भगवान शिव को समर्पित पंचरथ शैली में बनाया गया है। गर्भगृह योजना और ऊंचाई पर पंचरथ है। पांच अवरोही चरणों की उड़ान से गर्भगृह के तल तक पहुँचा जाता है। गर्भगृह की माप 2.10 मीटर लम्बा और 2.9 मी. चौड़ा है।अंतराल गर्भगृह के अंदर है और 2.3 मीटर लंबा और 2.4 मीटर चौड़ा मापता है।गर्भगृह की दीवार समतल है।गर्भगृह-द्वार को तीन शाखाओं से तराशा गया है।पहली, दूसरी और तीसरी शाखा को नागबल्लारी और सर्पिल कमल-स्क्रॉल से सजाया गया है।शाखाओं के निचले हिस्से को नागबल्लरी और सर्पिल कमल स्क्रॉल से सजाया गया है।शाखाओं के निचले हिस्से को मूर्तियों से सजाया गया है। द्वार के दाहिने किनारे पर पद्मापत्र के नीचे त्रिभंग मुद्रा में खड़ी दो भुजाओं वाली गंगा को उकेरा गया है और कमल के डंठल और कलश को धारण किया है।उसके लेकम पर माउंट क्रोकोडाइल खुदी हुई है।स्तनों सहित गंगा के अग्र भाग को काट दिया गया है।वह एक दाँतेदार मुकुटा, तातंकाचक्र और एक मेखला द्वारा बांधी गई साड़ी पहनती है। द्वार के बायें किनारे पर त्रिभंग मुद्रा में खड़ी दो भुजाओं वाली यमुना खुदी हुई है और कलश और कमल-डंठल ले जा रही है। माउंट कछुआ उसके लेकम पर दिखाया गया है। गर्भगृह-द्वार के लिंटेल को लालताबीम पर उकेरा गया है जिसमें ललितासन में बैठे चार सशस्त्र गणेश की छवि है।
ऊंचाई में मंदिर नीचे से ऊपर की ओर एक सादे भित, जद्यकुंभ, कर्णिका और पद्मलता की एक चित्रवल्लरी दिखाता है जो पीठ की ढलाई का निर्माण करता है।पीठा की ढलाई अधिष्ठान द्वारा की जाती है, ढलाई में शतरंज बोर्ड के डिजाइन के साथ खुरा सजाया जाता है, कुंभ को एक सादे मध्य बैंड के साथ उकेरा जाता है और एक रोसेट युक्त एक आला के साथ सजाया जाता है और चैत्य मेहराब, कलसा और कुदुओं से सजाए गए कपोटा के एक छोटे से शिखर से घिरा होता है। कांगा के ऊपर छाया, कपोत और कर्णिका से बनी वार्तंडिका ढलाई है। वरंदिका के ऊपर पंचरथ शिखर को चैत गावकों की जाली से उकेरा गया है।यह चारों कोनों में से प्रत्येक पर छह भूमि-अमलक दिखाता है।मंदिर लगभग नौ मीटर ऊंचा है। मंदिर सफेद बलुआ पत्थर से बना है और कल्चुरी काल यानी 12वीं-13वीं शताब्दी ईस्वी का है।
इसी क्रम में हमने कुछ लोगों से मंदिर से जुडी कहानी और किवदंतियों के बारे में जानने का प्रयास किया और पाया कि हर कोई इसकी कहानी अपने तरीके से ही बयां करता है।आस्था और भक्ति के प्रतीक शिव मारुति मंदिर में भगवन शिव और बजरंगबली सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं सच्चे मन से की गई भक्ति का फल अवश्य मिलता है।वहीँ मंदिर के पास रहने वाले शेषनारायण राठौर कहते हैं कि यह मंदिर बहुत पुराना है,मंदिर होने की वजह से ही यहाँ लोगों ने बस्ती बसाई और आज घनी आबादी के साथ यह स्थान एक जिला बन चुका है।मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान शिवलिंग काफी नीचे की ओर धंसा हुआ है ऐसी कहावत है कि बहुत पहले कुछ लोगों ने निर्णय लिया कि शिवलिंग के आस पास खुदाई कर उसे स्थान से ऊँचा किया जाए,परन्तु लगभग 8 फीट गहरी खुदाई करने पर भी शिवलिंग का निचला हिस्सा उन्हें नहीं मिला और खुदाई बंद करनी पड़ी।साथ ही मंदिर को लेकर कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि मंदिर का निर्माण नागवंशी राजाओं द्वरा किया गया होगा ना कि पाण्डवों द्वारा,साथ ही कहते हैं कि प्रतिदिन सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग और हनुमान जी की प्रतिमा पर पड़ती है, हालाँकि इस बात की सच्चाई का अनुमान लगाना तो मुस्किल है लेकिन इन सभी कुछ कही-कुछ अनकही बातों, किस्से-कहानियों के साथ सामतपुर का यह मंदिर चर्चा का विषय बना हुआ है और प्रतिदिन सुबह शाम लगभग 700 से 1000 श्रद्धालु यहाँ आते हैं।पूजा अर्चना कर रामायण की चौपाइया गाते हैं जिसमें युवा पीढ़ी के जवानों में विशेष रुझान देखने को मिलता है।
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