(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) शाहिदे आजम,भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव सिंह के शहादत दिवस के अवसर पर जिला मुख्यालय अनूपपुर मे भगत सिंह विचार मंच द्वारा टाटा इंस्टीट्यूट के पास एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
विचार गोष्ठी की शुरुआत अतिथि कांग्रेस
जिलाध्यक्ष रमेश सिंह,जनक राठौर,पूर्व प्राचार्य डी.एस.राव, एस.के.राउत राय,आशीत मुखर्जी, डी.आर.बंधवा आदि ने शाहिद भगत सिंह के छाया चित्र पर पुष्प अर्पित कर विचार गोष्ठी को आगे बढ़ाया गया।जहाँ कांग्रेस जिलाध्यक्ष रमेश सिंह ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि देश के लिए आजादी के आंदोलन में शहीद होने वालों कतार में शहीद भगत सिंह राजगुरु एवं शहीद सुखदेव का अलग स्थान है। अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए उनके हुकूमत के विरुद्ध खड़ा होने के लिए इनके साहस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
युवा भारत माता के लाल के रूप में शहीद भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरु ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी।आजाद भारत के स्वप्नदृष्टा के रूप में वे हंसते-हसंते सूली पर चढ़ गए।शहीदों की शहादत की यह परंपरा भारत के प्रत्येक युवा वर्ग के प्रेरणा स्रोत के रूप में,देशभक्ति व राष्ट्र के प्रति उत्कृष्ट बलिदान के रूप में युगों युगों तक याद की जाएगी।पूर्व प्राचार्य डी.एस.राव ने भी शहीद भगत सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा की वे भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया।पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की।जब भगत सिंह करीब बारह वर्ष के थे जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था।इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए।इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं...? गांधी जी का असहयोग आन्दोलन छिड़ने के बाद वे गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रान्तिकारियों के हिंसक आन्दोलन में से अपने लिए रास्ता चुनने लगे।
गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन को रद्द कर देने के कारण उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ,पर पूरे राष्ट्र की तरह वो भी महात्मा गाँधी का सम्मान करते थे।पर उन्होंने गाँधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलन की जगह देश की स्वतन्त्रता के लिए हिंसात्मक क्रांति का मार्ग अपनाना अनुचित नहीं समझा।उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने।उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद,सुखदेव,राजगुरु इत्यादि थे। शहीद भगत सिंह असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया।जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया।विचार गोष्ठी में जनक राठौर,एस.के.राउत राय,आशीत मुखर्जी आदि ने अपने अपने विचार रखे।
विचार गोष्ठी की शुरुआत अतिथि कांग्रेस
जिलाध्यक्ष रमेश सिंह,जनक राठौर,पूर्व प्राचार्य डी.एस.राव, एस.के.राउत राय,आशीत मुखर्जी, डी.आर.बंधवा आदि ने शाहिद भगत सिंह के छाया चित्र पर पुष्प अर्पित कर विचार गोष्ठी को आगे बढ़ाया गया।जहाँ कांग्रेस जिलाध्यक्ष रमेश सिंह ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि देश के लिए आजादी के आंदोलन में शहीद होने वालों कतार में शहीद भगत सिंह राजगुरु एवं शहीद सुखदेव का अलग स्थान है। अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए उनके हुकूमत के विरुद्ध खड़ा होने के लिए इनके साहस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
युवा भारत माता के लाल के रूप में शहीद भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरु ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी।आजाद भारत के स्वप्नदृष्टा के रूप में वे हंसते-हसंते सूली पर चढ़ गए।शहीदों की शहादत की यह परंपरा भारत के प्रत्येक युवा वर्ग के प्रेरणा स्रोत के रूप में,देशभक्ति व राष्ट्र के प्रति उत्कृष्ट बलिदान के रूप में युगों युगों तक याद की जाएगी।पूर्व प्राचार्य डी.एस.राव ने भी शहीद भगत सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा की वे भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया।पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की।जब भगत सिंह करीब बारह वर्ष के थे जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था।इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए।इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं...? गांधी जी का असहयोग आन्दोलन छिड़ने के बाद वे गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रान्तिकारियों के हिंसक आन्दोलन में से अपने लिए रास्ता चुनने लगे।
गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन को रद्द कर देने के कारण उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ,पर पूरे राष्ट्र की तरह वो भी महात्मा गाँधी का सम्मान करते थे।पर उन्होंने गाँधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलन की जगह देश की स्वतन्त्रता के लिए हिंसात्मक क्रांति का मार्ग अपनाना अनुचित नहीं समझा।उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने।उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद,सुखदेव,राजगुरु इत्यादि थे। शहीद भगत सिंह असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया।जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया।विचार गोष्ठी में जनक राठौर,एस.के.राउत राय,आशीत मुखर्जी आदि ने अपने अपने विचार रखे।
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