(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) जिले का प्रमुख पर्यटन स्थल श्रद्धालुओं से नए वर्ष में पटा रहा।अधिकांश लोगों ने अमरकंटक में नया साल मनाया यहां पर मेला सा लगा रहा चारों ओर चहल- पहल से नजारा बदला-बदला दिखा।
ज्ञातव्य हो कि नर्मदा नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है। नदी पश्चिम की ओर सोनमुद से बहती हुई,एक चट्टान से नीचे गिरती हुई कपिलधारा नाम की एक जलप्रपात बनाती है।घुमावदार मार्ग और प्रबल वेग के साथ घने जंगलों और चट्टानों को पार करते हुए रामनगर के जर्जर महल तक पहुंचती हैं।रामायण, महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं।पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार, नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी।जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था। गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को 'सोमोद्भवा' कहा है।
कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है। मेघदूत में रेवा या नर्मदा का वर्णन है। विश्व में नर्मदा ही एक ऐसी नदी है,जिसकी परिक्रमा की जाती है और पुराणों के अनुसार जहां गंगा में स्नान से जो फल मिलता है नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उस फल की प्राप्ति होती है। नर्मदा नदी पूरे भारत की प्रमुख नदियों में से एक ही है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।
बाबा कल्याण दास जी महाराज ने बताया कि मां नर्मदा भगवान शिव की पुत्री हैं।इसलिए शिवतन्या भी कहते हैं। भगवान शिव की तपस्या से प्रकट हुई जब भगवान शिव कालकोर्ट का पान किया। उस समय उनके गले में जलन होने लगी। जब वह मैकल पर्वत के ऊपर से जा रहे थे, अचानक उनकी वेदना शांत हो गई और नीचे की तरफ देखें तो इसमें मैकल पर्वत के ऊपर उनको अपने अपने स्वभाव को छोड़कर भगवान के भजन में लीन थे।
देवताओं का स्वभाव हैं, अधिक भोग करना और असुर लोगों का का स्वभाव दूसरे प्राणियों को दुख देना हैं। अश्रु के अंदर की हिंसा समाप्त हो गए और सभी लोग इस मैकल पर्वत पर तप कर रहे थे। भगवान शिव नर्मदा जी उद्गम स्थल पर तपस्या करने लगे। 5000 हजार पर्यंत तपस्या में लीन थे, उसी समय उनके कंठ से पसीना निकला जब भगवान शिव ने आंख खोली तब उन्हें एक कन्या दिखाई दी।उन्होंने अपने अंतर्दृष्टि से स्वीकार किया की यह मेरी पसीने से ही प्रकट हुई। इसलिए उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार की और नर्मदा को निर्देश दे कि तुम मैकल पर्वत से पश्चिम की ओर हो। तुम्हारे दोनों तटों पर साधु संत तपस्या करें और जो नर्मदा के पानी को पाषाण स्पर्श कर लेगा वह शिवतुल्य माना जाएगा।
सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनु रेवा के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत की एक नदी और भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। मध्य प्रदेश राज्य में इसके विशाल योगदान के कारण इसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है।
यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है। यह अपने उद्गम से पश्चिम की ओर 1,312 किमी चल कर खंभात की खाड़ी, अरब सागर में जा मिलती है। नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त की दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर ) ऋषियों ने तपस्या की।
अमरकंटक में नए वर्ष को लेकर प्रशासन द्वारा सुरक्षा की तगड़ी व्यवस्था की गई थी।कोरोना की वजह से पिछले 2 सालों में श्रद्धालुओं की संख्या कम हुई है। अमरकंटक की सभी होटल एवं लॉज पूर्व से बुक हो चुके थे।अमरकंटक में मुख्य मंदिर पहुंचने वाले मार्ग में लगने वाली दुकानों को व्यवस्थित कर दूसरी जगह लगवाया गया हैं। साफ-सफाई की व्यवस्था भी की गई। इसके साथ ही चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल की तैनाती भी रही।
अमरकंटक में कपिलधारा, जलप्रपात, दूध धारा, माई की बगिया, सोनमुड़ा, जैन मंदिर, कबीर चबूतरा, नर्मदा कुंड आदि जरा काफी चहल-पहल देखी गई।
ज्ञातव्य हो कि नर्मदा नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है। नदी पश्चिम की ओर सोनमुद से बहती हुई,एक चट्टान से नीचे गिरती हुई कपिलधारा नाम की एक जलप्रपात बनाती है।घुमावदार मार्ग और प्रबल वेग के साथ घने जंगलों और चट्टानों को पार करते हुए रामनगर के जर्जर महल तक पहुंचती हैं।रामायण, महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं।पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार, नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी।जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था। गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को 'सोमोद्भवा' कहा है।
कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है। मेघदूत में रेवा या नर्मदा का वर्णन है। विश्व में नर्मदा ही एक ऐसी नदी है,जिसकी परिक्रमा की जाती है और पुराणों के अनुसार जहां गंगा में स्नान से जो फल मिलता है नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उस फल की प्राप्ति होती है। नर्मदा नदी पूरे भारत की प्रमुख नदियों में से एक ही है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।
बाबा कल्याण दास जी महाराज ने बताया कि मां नर्मदा भगवान शिव की पुत्री हैं।इसलिए शिवतन्या भी कहते हैं। भगवान शिव की तपस्या से प्रकट हुई जब भगवान शिव कालकोर्ट का पान किया। उस समय उनके गले में जलन होने लगी। जब वह मैकल पर्वत के ऊपर से जा रहे थे, अचानक उनकी वेदना शांत हो गई और नीचे की तरफ देखें तो इसमें मैकल पर्वत के ऊपर उनको अपने अपने स्वभाव को छोड़कर भगवान के भजन में लीन थे।
देवताओं का स्वभाव हैं, अधिक भोग करना और असुर लोगों का का स्वभाव दूसरे प्राणियों को दुख देना हैं। अश्रु के अंदर की हिंसा समाप्त हो गए और सभी लोग इस मैकल पर्वत पर तप कर रहे थे। भगवान शिव नर्मदा जी उद्गम स्थल पर तपस्या करने लगे। 5000 हजार पर्यंत तपस्या में लीन थे, उसी समय उनके कंठ से पसीना निकला जब भगवान शिव ने आंख खोली तब उन्हें एक कन्या दिखाई दी।उन्होंने अपने अंतर्दृष्टि से स्वीकार किया की यह मेरी पसीने से ही प्रकट हुई। इसलिए उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार की और नर्मदा को निर्देश दे कि तुम मैकल पर्वत से पश्चिम की ओर हो। तुम्हारे दोनों तटों पर साधु संत तपस्या करें और जो नर्मदा के पानी को पाषाण स्पर्श कर लेगा वह शिवतुल्य माना जाएगा।
सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनु रेवा के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत की एक नदी और भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। मध्य प्रदेश राज्य में इसके विशाल योगदान के कारण इसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है।
यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है। यह अपने उद्गम से पश्चिम की ओर 1,312 किमी चल कर खंभात की खाड़ी, अरब सागर में जा मिलती है। नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त की दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर ) ऋषियों ने तपस्या की।
अमरकंटक में नए वर्ष को लेकर प्रशासन द्वारा सुरक्षा की तगड़ी व्यवस्था की गई थी।कोरोना की वजह से पिछले 2 सालों में श्रद्धालुओं की संख्या कम हुई है। अमरकंटक की सभी होटल एवं लॉज पूर्व से बुक हो चुके थे।अमरकंटक में मुख्य मंदिर पहुंचने वाले मार्ग में लगने वाली दुकानों को व्यवस्थित कर दूसरी जगह लगवाया गया हैं। साफ-सफाई की व्यवस्था भी की गई। इसके साथ ही चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल की तैनाती भी रही।
अमरकंटक में कपिलधारा, जलप्रपात, दूध धारा, माई की बगिया, सोनमुड़ा, जैन मंदिर, कबीर चबूतरा, नर्मदा कुंड आदि जरा काफी चहल-पहल देखी गई।
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