भारतीय परम्परागत ज्ञान का कोई
विकल्प नहीं है-कुलपति
(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)अनूपपुर (अंंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक एवं राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित "समाज विज्ञान की भारतीय शोध पद्धति" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा अपने उद्बोधन में कहा गया कि समाज अभेद होता है, समाज में रहने वाले लोग संस्कृति का निर्माण करते हैं। समाज विज्ञान में शोध की कई पद्धतियां है। भारत में परंपरागत ज्ञान आज भी कारगर एवं सिद्ध है। सिर्फ आवश्यकता है उसको सहेजने और उसके उपयोग करने की। आज भी धान और गेहूं का कोई विकल्प नहीं है, अमरकंटक क्षेत्र की धरा और नर्मदा नदी की धारा में कई तरह की औषधियां सुरक्षित हैं, आवश्यकता है उन्हें पहचानने की। यह क्षेत्र शोध कार्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। हमारे ऋषि मुनि कंदमूल फलों के जानकार थे, परन्तु आज की पीढ़ी में इसकी पहचान अभी होना बाकी है। इस दिशा में शोधार्थियों को कार्य करना चाहिए ताकी देश आगे बढ़ सके हमारा शोध इतना अच्छा होना चाहिए की पूरी दुनिया हमारी और कुछ पाने की दृष्टि से देखे। हम अब जानते हैं कि आधार से आकाश की यात्रा शोध के माध्यम से पूरी हो सकती है।
कार्यक्रम कि शुरुआत में समन्वयक प्रो. अनुपम शर्मा द्वारा इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के संदर्भ में प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि इसमें 102 शोध पत्रों को शामिल किया गया। प्रतिभागियों में से डॉ. प्यारे लाल आदिले द्वारा अपने विचार रखे गए।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथ प्रो. कृष्ण भट्ट ( कुलाधिपति - केंद्रीय विश्वविद्यालय उड़ीसा) ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को आने वाली पीढियां लगातार आगे बढ़ा रही हैं। ये संगोष्ठी अपने आप में संपूर्ण है, क्योंकि शोधार्थियों को अपनी बात रखने का पूरा मौका और समय मिला।
विशिष्ट अतिथि के रुप में डॉ. वैदेही (पूर्व प्राचार्य - आदर्श कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, बदलापुर) ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय अपने संस्कारों से पहचाने जाते हैं और आज भारतीय शोध पद्धतियां लगतार प्रयोग में लायी जा रही हैं, इससे हमारा शोध कार्य का स्तर उठ रहा है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. राजकुमार भाटिया (अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर, दिल्ली) हमारे देश में ज्ञान बहुत है परंतु वह दवा हुआ है। आज आवश्यकता है उस ज्ञान को समाज के लिए, समाज के समक्ष और समाज को उपयोगी बनाने के लिए लाया जाए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. जया प्रसाद (पूर्व प्रो-कुलपति, केंद्रीय विश्वविद्यालय - केरल) द्वारा अपने उद्बोधन में आत्मनिर्भर भारत एवं ज्ञान के परंपरागत ज्ञान को शोध के माध्यम से दुनिया के सामने रखने का समय आ गया है। आज यह समय है कि हम भारतीय शोध पद्धति को दुनिया के समझ रखें और भारतीय ज्ञान का लोहा मनवाए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. जी.सी.आर. जायसवाल (पूर्व कुलपति - अवध एवं पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय) द्वारा अपने उद्बोधन में कहा गया कि समस्याओं को समाज की दृष्टि से देखना चाहिए और उस पर शोध होना चाहिए जो समाज को आगे ले जाये। हमारे यहां जनजातीय लोक संस्कृति बहुत समृद्ध है, इस संस्कृति से हमें ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। भारत की संस्कृति विशाल है। यहां के विद्यार्थी सर्वश्रेष्ठ हैं, बस आवश्यकता है इन्हें संस्कारों देने की।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी (कुलपति - अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़) ने अपने उद्बोधन में कहा कि समंक का संकलन आज प्राथमिक है तो कल वही समंक द्वितीयक हो जाएंगे। अतः संमकों के रूप में ना पढ़कर हमें समस्याओं और उनके समाधान का रास्ता ढूंढना चाहिए। भारतीय ज्ञान परंपरा उच्च कोटि की है इसे ऋषि मुनियों ने लिपिबद्ध किया है। बस आवश्यकता है उस ज्ञान को अपने आप में, अपने शोध में आत्मसात करने की।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो.शीला राय (महासचिव - राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद एवं अध्यक्ष - भारतीय गांधी अध्ययन समिति) द्वारा सभी के प्रति आभार प्रकट किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विनय कुमार द्वारा किया गया।कार्यक्रम में छात्र छात्राओं सहित बड़ी संख्या में शिक्षकगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
कार्यक्रम कि शुरुआत में समन्वयक प्रो. अनुपम शर्मा द्वारा इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के संदर्भ में प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि इसमें 102 शोध पत्रों को शामिल किया गया। प्रतिभागियों में से डॉ. प्यारे लाल आदिले द्वारा अपने विचार रखे गए।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथ प्रो. कृष्ण भट्ट ( कुलाधिपति - केंद्रीय विश्वविद्यालय उड़ीसा) ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को आने वाली पीढियां लगातार आगे बढ़ा रही हैं। ये संगोष्ठी अपने आप में संपूर्ण है, क्योंकि शोधार्थियों को अपनी बात रखने का पूरा मौका और समय मिला।
विशिष्ट अतिथि के रुप में डॉ. वैदेही (पूर्व प्राचार्य - आदर्श कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, बदलापुर) ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय अपने संस्कारों से पहचाने जाते हैं और आज भारतीय शोध पद्धतियां लगतार प्रयोग में लायी जा रही हैं, इससे हमारा शोध कार्य का स्तर उठ रहा है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. राजकुमार भाटिया (अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर, दिल्ली) हमारे देश में ज्ञान बहुत है परंतु वह दवा हुआ है। आज आवश्यकता है उस ज्ञान को समाज के लिए, समाज के समक्ष और समाज को उपयोगी बनाने के लिए लाया जाए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. जया प्रसाद (पूर्व प्रो-कुलपति, केंद्रीय विश्वविद्यालय - केरल) द्वारा अपने उद्बोधन में आत्मनिर्भर भारत एवं ज्ञान के परंपरागत ज्ञान को शोध के माध्यम से दुनिया के सामने रखने का समय आ गया है। आज यह समय है कि हम भारतीय शोध पद्धति को दुनिया के समझ रखें और भारतीय ज्ञान का लोहा मनवाए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. जी.सी.आर. जायसवाल (पूर्व कुलपति - अवध एवं पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय) द्वारा अपने उद्बोधन में कहा गया कि समस्याओं को समाज की दृष्टि से देखना चाहिए और उस पर शोध होना चाहिए जो समाज को आगे ले जाये। हमारे यहां जनजातीय लोक संस्कृति बहुत समृद्ध है, इस संस्कृति से हमें ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। भारत की संस्कृति विशाल है। यहां के विद्यार्थी सर्वश्रेष्ठ हैं, बस आवश्यकता है इन्हें संस्कारों देने की।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी (कुलपति - अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़) ने अपने उद्बोधन में कहा कि समंक का संकलन आज प्राथमिक है तो कल वही समंक द्वितीयक हो जाएंगे। अतः संमकों के रूप में ना पढ़कर हमें समस्याओं और उनके समाधान का रास्ता ढूंढना चाहिए। भारतीय ज्ञान परंपरा उच्च कोटि की है इसे ऋषि मुनियों ने लिपिबद्ध किया है। बस आवश्यकता है उस ज्ञान को अपने आप में, अपने शोध में आत्मसात करने की।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो.शीला राय (महासचिव - राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद एवं अध्यक्ष - भारतीय गांधी अध्ययन समिति) द्वारा सभी के प्रति आभार प्रकट किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विनय कुमार द्वारा किया गया।कार्यक्रम में छात्र छात्राओं सहित बड़ी संख्या में शिक्षकगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
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