(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) शोधार्थी छात्र विकास चंदेल समाज कार्य विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक ने कहा कि जनजातीय लोक संस्कृति में प्रकृति तथा समाज का सामूहिक समावेश लगभग प्रत्येक त्यौहारों में देखने को मिलता है।“छेरछेरा तिहार” छत्तीसगढ़ एवं पूर्वी मध्यप्रदेश का एक प्रमुख त्यौहार है।जिसे ना केवल जनजातीय किंतु गैर जनजाति समुदाय भी धूमधाम के साथ मनाते हैं।त्यौहार को छत्तीसगढ़ी में तिहार कहा जाता है।यह त्यौहार नई फसल के आने की खुशी में किसानों द्वारा फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है।हरियाली अमावस्या से लेकर नवा-खाई तथा छेर-छेरा त्यौहार अन्न उत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है।छेर-छेरा पर्व पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, मुख्यतः एक दिवसीय त्यौहार होने के बावजूद यह कई स्थानों पर 2 से 5 दिन तक मनाया जाता
है।त्यौहार का औपचारिक समापन तिलवा चौथ अर्थात माघ चौथ के दिन होता है। धान का उपार्जन होने पर घर-घर में धान का भंडारण होता है इस कारण छेरछेरा मांगने वालों को धान, चावल आदि दान किया जाता है।छेर-छेर छेरता – कोठी के के धान हेरता, छेरी के छेरा... छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरहेरा”गाकर हाथों में टोकरी लेकर नृत्य करते हुए, बच्चे तथा युवा अन्न दान मांगते हैं।संकिलत अनाज को एकत्र करके नदी किनारे या किसी रमणीय स्थल पर जाकर सामूहिक भोज किया जाता है, छेरछेरा उत्सव में देसी पकवान बनाकर अपने ईष्टदेवता, ग्रामदेवता और धरती माता की पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। ताकि जीवन में खुशहाल बनी रहे। इसे कई स्थानों पर पुन्नी तिहार, खिचराही, शकंभरी पूजा आदि नामों से भी जाना जाता है।
जिले के विभिन्न गावों में छेर-छेरा त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया गया, जिसमें महिलाओं द्वारा सुआ तथा राई नृत्य तथा पुरूषों द्वारा शैला नृत्य करके दान के इस पर्व को मनाया गया।
है।त्यौहार का औपचारिक समापन तिलवा चौथ अर्थात माघ चौथ के दिन होता है। धान का उपार्जन होने पर घर-घर में धान का भंडारण होता है इस कारण छेरछेरा मांगने वालों को धान, चावल आदि दान किया जाता है।छेर-छेर छेरता – कोठी के के धान हेरता, छेरी के छेरा... छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरहेरा”गाकर हाथों में टोकरी लेकर नृत्य करते हुए, बच्चे तथा युवा अन्न दान मांगते हैं।संकिलत अनाज को एकत्र करके नदी किनारे या किसी रमणीय स्थल पर जाकर सामूहिक भोज किया जाता है, छेरछेरा उत्सव में देसी पकवान बनाकर अपने ईष्टदेवता, ग्रामदेवता और धरती माता की पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। ताकि जीवन में खुशहाल बनी रहे। इसे कई स्थानों पर पुन्नी तिहार, खिचराही, शकंभरी पूजा आदि नामों से भी जाना जाता है।
जिले के विभिन्न गावों में छेर-छेरा त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया गया, जिसमें महिलाओं द्वारा सुआ तथा राई नृत्य तथा पुरूषों द्वारा शैला नृत्य करके दान के इस पर्व को मनाया गया।
0 Comments