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पत्रकार बुरे वक्त को अच्छे वक्त में बदलने की ताकत रखता है-प्रो. बलदेवभाई शर्मा

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा ’आजादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत "स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी पत्र का योगदान" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस वेब संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो. बलदेवभाई शर्मा, कुलपति कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. जयंत सोनवलकर, कुलपति भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय, भोपाल एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी, कुलपति, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के थे। 
इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. बलदेवभाई शर्मा ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के तहत आयोजित इस महत्वपूर्ण विषय पर संगोष्ठी हेतु विभाग का कदम प्रशंसनीय है यह कार्यक्रम युवा पीढी के लिए अत्यंत उपयोगी एवं ज्ञानवर्द्धक है। इसके द्वारा युवा उन पत्रकारों के कार्यों से परिचित हो पाएगे जो उन्होंने देश को आजादी दिलाने हेतु किये। देश को आजादी दिलाने में पत्रकारिता की भूमिका हमत्वपूर्ण थी। उन्होंने मदनमोहन मालवीय, माधवराव सप्रे, बाबूराव विष्णु पराडकर, तिलक जी की पत्रकारिता का उदाहरण देते हुए कहा कि इस दौर में पत्रकारिता की ताकत, त्याग, समर्पण और प्रेरणा थी। इस बात का स्मरण युवा पीढ़ी को सदैव रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि ’बुरे वक्त को अच्छे वक्त में बदलने की ताकत पत्रकार की ही होती है। पत्रकार पूरे समाज के विकृत माहौल को सुखमय बनाने की ताकत रखने और कोरोनाकाल में भी पत्रकारों ने कोरोना योद्धा की तरह कार्य किया और अपनी जान की परवाह न करते हुए हमें निरंतर सूचनाएं पहुंचाते रहें। उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों के उदाहरण द्वारा आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता के योगदान को विस्तारपूर्वक विवेचित किया। 
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि डॉ. जयंत सोनवलकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत को आजादी दिलाने में हिंदी पत्रकारिता की भूमिका अतयंत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने भारतेंदु हरिशचंद्र, बालकृष्ण भट्ट, राजाराममोहन राय, पंडित बालगंगाधार तिलक के पत्रों पर प्रकाश डालते हुए इन पत्रों की स्वतन्त्रता आंदोलन में भूमिका पर विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि भारतेंदु हरिशचन्द्र ने कविवयन सुधा, हरिशचन्द्र चंद्रिका, बालाबोधनी द्वारा भारतीयों में स्वतंत्रता के प्रति चेतना जगाने का कार्य किया। उन्होंने कहा कि उस समय पत्र बहुभाषी निकलते थे मालवीयजी ने ’हिंदुस्तान’ पत्र द्वारा तिलक ने ’मराठी केसरी’ द्वारा आजादी का अलख जगाया। इसी के साथ उन्होने युगान्तर, भजहरूल सुरूर, वयाने आजादी आदि पत्रों की स्वाधीनता संग्राम में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का जिक्र भी अपने उद्बोधन में किया। साथ ही उन्होने वर्तमान समय की पत्रकारिता और नई शिक्षा नीति पर भी अपने विचार रखे। 
अधिष्ठाता (अकादमिक) प्रो. आलोक श्रोत्रिय ने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े मूल्यों के प्रचार-प्रसार में हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका पर अपने विचार विभिन्न समाचार-पत्रों के उदाहरणों द्वारा विवेचित कियें। संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्याक्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, प्रो. मनीषा शर्मा ने सभी अतिथियों का स्वागत के साथ विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश हुकुमत से भारत को आजादी दिलवाने में जहां एक ओर अहिंसावादी क्रांतिकारियो, कवियों ने अपने प्राणों की परवाह न कर अपनी जन्मभूमि हेतु अपना सर्वस्व दॉव पर लगा दिया वही हिंदी पत्रकारिता ने भी आजादी की इस ज्वाला को अनवरत प्रज्जवलित रखने में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया। 
बेव संगोष्ठी में बड़ी संख्या में विश्विद्यालय के शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक अधिकारी- कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं शामिल हुए। संगोष्ठी में आभार प्रदर्शन प्रो. राघवेन्द्र मिश्रा, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ने किया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री अभिलाषा एलिस तिर्की, सहायक प्राध्यापक पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ने किया।

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