( मनोज द्विवेदी )
अनूपपुर (अंचलधारा) भारत में लाकडाउन के २१ दिन पूरे होने को आए । हो सकता है कि आवश्यकता के अनुरुप सरकार शर्तों के साथ इसमें कुछ ढील दे या कुछ समय के लिये इसे बढा दे। मानव जीवन के लिये जो आवश्यक होगा , हमारी सरकार वही करेगी। जिस तरह से कोरोना के नये नये मामले सामने आ रहे हैं, संकेत यही हैं कि सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिये हमे लंबे समय तक तैयार रहना होगा।
कोरोना वायरस के कारण हम लाकडाउन, सोशल डिस्टेशिंग, क्वेरेन्टाइन जैसे शब्दों से परिचित हुए । कोरोना वायरस का दुनिया के किसी भी देश के पास ना तो अभी तक कोई पुख्ता इलाज है , ना ही इससे बचाव का कोई टीका ही ईजाद हुआ है। विभिन्न देशों के विभिन्न प्रयोगशालाओं में प्रयोग किये जा रहे हैं। सात - आठ माह में इसका वैक्सीन तथा इसकी दवा मार्केट में आ पाएगी। तब तक होम क्वेरेन्टाइन तथा सामाजिक दूरी को ही कारगर तरीका माना गया है। यदि मामला बिगडा तो सोशल डिस्टेशिंग , फिजिकल डिस्टेशिंग में भी बदल सकता है। जिसमे परिवार के सदस्यों को भी दूर - दूर रखने की कठिन प्रक्रिया अपनानी पड़े ।
आज लाक डाउन हमारे जीवन का ऐसा अनिवार्य पन्ना है , जो भले ही जुड़ा तो अनचाहे तरीके से है लेकिन इसका प्रभाव बहुत चमत्कारिक है। इससे मानव जीवन सुरक्षित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय, वैचारिक शुभता भी देखने को मिल रहा है। समूची पृथ्वी कोरोना इफेक्ट से गुजरती हुई आग मे तपाए कुंदन की तरह शुद्ध हो रही है । समाज को बहुत से अच्छे , शुभ , सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। बहुत से उपयोगी सबक हमारे + आपके जीवन के लिये प्रकृति ने उपलब्ध कराए हैं। कोरोना काल उस डरावनी रात की तरह है , जिसकी सुबह अत्यंत चमकीली, प्रदूषण मुक्त होने वाली है।
यह किसने सोचा था कि समय ना होने का रोना रोने वाले मनुष्य के पास सेवानिवृत्ति या लंबी बीमारी के बिना ही आत्मावलोकन के लिये , अपने लिये , परिवार के लिये समय ही समय होगा। किसी विद्वान ने कहा है कि एकांत लंपट तथा संत दोनों के लिये एक अवसर की तरह होता है। ना जानें कितने लोग होगें जो 21 दिन के लाकडाउन को सुअवसर की तरह लपक कर शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक उन्नति के लिये प्रयोग कर रहे होंगे । ऐसे भी लोग हैं जिनके लिये यह लाकडाउन किसी कारागार से कम नहीं होगा। तो बहुत से ऐसे लोग दिखे जिनकी वर्षों की दबी - छुपी प्रतिभा खुल कर समाज के सामने आ गयी। प्रकृति ने लाकडाउन का यह समय सबको समान रुप से आबंटित किया है। लोगों ने प्रारब्ध के अनुरुप अपने - अपने तरीके से उसका सदुपयोग / दुरुपयोग किया।
किसी के लिये यह नि: स्वार्थ मदद करने का समय था तो कुछ लोगों के लिये यह व्यापार ,राजनीति चमकाने का मौका । संयोग, प्रयोग दोनों के लिये समान अवसर रहा है। मन्दिर, गुरुद्वारे, चर्च, मस्जिदों में सार्वजनिक , सामूहिक आराधना बन्द हो गयी तो पृथ्वी पर ना तो अत्याचार बढ गया , ना ही अनाचार। विश्व इतिहास में पहली बार मानव जीवन की रक्षा के लिये सार्वजनिक ,गली - चौराहा छाप पूजा - अर्चना की परंपरा पर ब्रेक लगाया गया। क्या दुनिया भर के लोगों ने ठीक इसी समय अपने ईश्वर, अपने अल्लाह, अपने जीजस को याद नहीं किया ? क्या अलग - अलग धर्मों के आराध्यों ने अपने अनुयायियों की आराधना यह कह कर ठुकरा दी कि यह सड़क, खेल मैदान, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों पर क्यों नहीं की गयी ? दुनिया भर की सरकारों को इस ओर विचार करना चाहिए , साथ ही आम जनता को भी इस ओर आत्म चिंतन करना होगा।
लाकडाउन के 21 दिनों में लोगों ने बाजार, थियेटर, माल, पार्क, पर्यटन स्थलों के साथ अस्पतालों का मजबूरन बहिष्कार किया या करना पड़ा । बाजार की आर्थिक व्यवस्था चरमराने के बावजूद भुखमरी की कोई बडी घटना प्रकाश में नहीं आई। काम - धन्धे की तलाश में घरों से अन्य राज्यों में गये श्रमिकों / मजदूरों की जीवटता , उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को दुनिया ने देखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग हर दूसरे ,तीसरे गांव मे अन्य राज्यों से लोग वापस आए , लेकिन किसी के भी सर्दी , खांसी ,बुखार से पीडित होने की भी शिकायत नहीं मिली। यह देवभूमि भारत की मजबूती का पुख्ता प्रतीक है। हमने अल्प संसाधनों में इन 21 दिनों को भलीभाँति जिया है। बच्चे - बड़े, जवान - बुजुर्ग , स्त्री - पुरुष सभी साथ रहते हुए मानों दशकों बाद संयुक्त परिवार को एकसाथ रहते हुए जी सके। परिवार के सदस्यों को एक दूसरे से बतियाने, एक दूसरे को समझने का पर्याप्त अवसर मिला।
गंगा , यमुना, नर्मदा जैसी नदियों की आक्सीजन धारण क्षमता में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। जो कार्य करोड़ो रुपये व्यय करके सरकारें नहीं कर सकीं, गंगा - यमुना की जलधारा की शुद्धता उसकी रंगत से दिखने लगी। वायु शुद्धता बढ गयी तो एलर्जी, अस्थमा के मरीज भी कम हो गये। लाखों वाहनों के सडकों से बाहर होने पर डीजल ,पेट्रोल से होने वाला प्रदूषण ही समाप्त नहीं हुआ, ईंधन की बचत हुई , दुर्घटनाओं में जान गंवाने के मामले भी कम हो गये। जंगलों की हरियाली बढ गयी , तो जंगली जीव जन्तुओं को नगरीय क्षेत्रों में विचरते, लाखों कछुओं को समुद्रतटों में अण्डे देने की खबरें भी सभी ने देखी हैं।
कोरोनाकाल आज या कल गुजर जाएगा। इसके सबक मानवजीवन को बदल देने वाले हैं। जिस देश की जनता इससे मिले अनुशासन, सेवा , मानवधर्म , प्रकृति संवर्धन - शोधन में मानव योगदान, आध्यात्मिकता, मितव्ययता, योग- व्यायाम की सात्विक सनातन जीवन शैली , समयबद्धता का पाठ सही तरीके से सीख पाएगी , उसकी ही दीर्घजीविता होगी। भारत सरकार के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से देश की जनता यह मांग करे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कोरोनाकाल के बाद भी एक दिन का साप्ताहिक लाकडाउन देश में लागू करें । यह स्वस्थ, मजबूत, सनातनी देवभूमि को दुनिया में एक बार फिर दिशानिर्देशक की भूमिका में स्थापित करेगा।
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