(विनम्र श्रद्धांजलि
-- मनोज द्विवेदी,अनूपपुर)
अनुपपुर (अंचलधारा)
जिला गठन के बाद चैथे कलेक्टर के रुप में के के खरे ( आई ए एस ) की नियुक्ति अनूपपुर
में हुई। अनूपपुर जिला तब संसाधन विहीन था। ना कलेक्टर, एस पी का दफ्तर ...ना कलेक्टर
,एस पी का जिला मुख्यालय में बंगला। जिस आई ए एस ,आई पी एस को यहाँ भेजा जाता था ,
दो दिन मे पूरे जिले का आसानी से तफरी करते हुए भ्रमण कर लेता था लेकिन यह समझने में
छरू - सात महीने लग जाते थे कि आखिर इसे जिला क्यों बनाया गया ? मनीष रस्तोगी छरू महीने
मे फ्रस्टेट होकर चले गये , तो मनीष सिंह लोक सभा चुनाव करा कर चलते बने। डी के तिवारी
सरलता ,सहजता के पर्याय थे ,स्टाफ की कमी तथा बाबुऒं की हिन्दी की अशुद्धि दूर करते
- करते उनका कार्यकाल असमय पूरा हो गया।
के के खरे साहब
सही मायनों में अभी तक के ऐसे सफल कलेक्टर थे ,जिन्हे सांसद - विधायकों के विरोध का
सामना नहीं करना पडा। समन्वय इतना कि जिले के हर कुछ कर डालने योग्य शख्स से उनका सीधा
संवाद था। आधी रात या सुबह छरू बजे पहली - दूसरी घंटी में फोन पर उपलब्ध । हर समस्या
को सूचना की तरह ग्रहण करते थे , त्वरित समाधान भी ।
’’’ रेलवे फाटक
तब ( आज भी ) जिला मुख्यालय की बडी समस्या थी। इसकेअसमय बन्द रहने एवं समय पर अस्पताल
ना पहुंचने के कारण बहुत से बच्चों ने फाटक के किनारे जन्म लिया तथा बहुतों ने दम भी
तोडा । कलेक्टर साहब चचाई से एक घंटे पहले चलते थे। दस मिनट रास्ते में लगता था , तो
चालीस - पचास मिनट फाटक में खडे रहते थे। तब के विधायक रामलाल रॊतेल के साथ हमने रेल
रोको आन्दोलन किया , गिरफ्तारी भी दी। खरे साहब ने रेल विभाग की फाईलों को टांड पर
चढवा दिया तथा रेलवे के अधिकारियों को पांच घंटे चैम्बर के बाहर बैंच मे बिठाए रखा
। शाम को कलेक्टर साहब के साथ हम सबने चंदास नदी के उपर बने रेलवे पुल का स्थल अवलोकन
किया। महीना बीतते - बीतते उसी पुल के नीचे अण्डर ब्रिज खुल गया। नगर को रेलवे फाटक
का एक विकल्प मिल गया था। दूसरा ( फ्लाई ओव्हर ब्रिज ) आज तक नहीं बन पाया है।
’’’ राशन दुकानों
में धांधली की खबरें आए दिन प्रकाशित होती रहती थीं। पत्रकार आए दिन इसकी शिकायत करते
थे। कलेक्टर साहब ने पांच शीर्ष पत्रकारों ( जिसमें स्वाभाविक रुप से मैं भी था ) की
टीम बना कर राशन दुकानों की जांच करने का लिखित आदेश जारी कर दिया। व्यवस्था में आंशिक
सुधार हुआ। बाद में पत्रकारों के सुझाव पर ही उसे बन्द भी किया गया।
’’’ एक सुबह ९ बजे
पुष्पराजगढ के दूरस्थ ग्राम पडमनिया की यात्रा पर मैं तथा समाजसेवी मधुकर चतुर्वेदी
मोटर सायकिल से निकले। ना सडक थी , ना मोबाइल नेटवर्क । गहरी खाई, सिर से ऊपर तक मोवा
घांस का बियावान। शायं चार बजे पडमनिया पहुंचे तथा मालाचुआ ( शहडोल ) हो कर घर वापस
लॊटे। हमने दैनिक कीर्तिक्रांति के अंतिम पेज पर खबर छापी ष् जिले का काला पानी पडमनिया
ष् । सच मानें ....संयुक्त शहडोल जिले व तब तक अनूपपुर जिले में पंकज अग्रवाल के बाद
के के खरे दूसरे कलेक्टर थे जो पडमनिया गये थे। एक साल होते होते लांघाटोला - पडमनिया
सडक बन चुकी थी।
’’’ संयुक्त जिला
कार्यालय दो नेताओं के बीच अहं की लडाई में अटका हुआ था ( जैसे आज फ्लाई ओव्हर ब्रिज
एवं जिला अस्पताल ) । खरे साहब को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने बिना किसी शोरगुल
के संयुक्त जिला कार्यालय, जिला अस्पताल, जेल भवन के लिये जमीन अधिग्रहण किया।
’’’ अमरकंटक को
सरोवरों की नगरी बनाने का श्रेय सिर्फ खरे सर को है। पुष्पराजगढ क्षेत्र में उन्होंने
नर्मदा, जोहिला के उपर बांधों की श्रंखला खडी कर दी। यह उस क्षेत्र के लिये आज भी वरदान
है।
’’’ अवैध कार्यों
को रोकने के लिये जिला बदर का रिकार्ड उनके नाम पर है। तब गेहूं के साथ कुछ घुन भी
पिसे। लेकिन कोई शक नहीं कि अपराध नियंत्रण में उनका पुलिस से अधिक दबदबा था।
अनूपपुर जिले के
इतिहास में वे अकेले कलेक्टर थे ,जिन्होंने तीन साल से अधिक का कार्यकाल पूरा किया।
वस्तुतरू तब उनके दम पर जिले में बहुत से लोगों ने समाजोपयोगी कलेक्टरी की। भरोसा इतना
कि कभी टूटा नहीं ।
’’’ भूमि बटाईदार
अधिनियम ज ब बनने के अंतिम चरण पर था, उनके सेवानिवृत होने के कुछ माह बाद ,मैं तथा
पत्रकार अजीत मिश्रा भोपाल स्थित उनके निवास पर थे। अनूपपुर उनके रग रग में बसा था।
बंटाईदार अधिनियम के सूत्रधार वे थे। उन्होंने इसे बनाया, नीति आयोग में प्रस्तुत किया,एक
किताब भी लिखी। अभी कुछ माह पूर्व ही यह मध्यप्रदेश में लागू की गयी है।
’’’ श्री के के
खरे के दुखद निधन की खबर सोशल मीडिया पर देखने के बाद सहसा भरोसा ही नहीं हुआ। बहुत
बुद्धिमान, काबिल, संवेदनशील, मददगार, व्यक्ति परख अधिकारीध् इंसान थे। उनके संस्मरणो
बारे में एक किताब लिख सकता हूँ । एक कुशल प्रशासक के साथ एक शानदार मित्र। उन्हे भुला
पाना अनूपपुर जिले के लिये आसान नहीं होगा। मण्डला का नर्मदा महाकुंभ तथा मेढबंधान
लाखों लोगों का भला कर गया। सतना के लोगों की अपनी अलग यादें हैं । वे हमारे बीच नहीं
रह गये ...सही मायने में वे सच्चे नर्मदापुत्र थे। उनके किये कार्य लंबे समय तक लोगों
को उनकी याद दिलाते रहेगें। भूमि सुधार अधिनियम उन्हे राजस्व क्षेत्र में अमिट बना
गया है।
’’’ उन्हे मेरी
विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.....ॐ शान्ति:
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