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अमरकंटक की शान है नर्मदा महोत्सव - फुंदेलाल सिंह

                  (हिमांशू बियानी / जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को ने नर्मदा जयंती के महत्व के संबंध में बताया कि नर्मदा जयंती, भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक त्यौहार
है। यह अमरकंटक में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि यह माँ नर्मदा का जन्म स्थान है। इसके अलावा यह पूरे मध्यप्रदेश में बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। जनवरी माह में हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से माघ माह की शुक्लपक्ष की सप्तमी को माँ नर्मदा का जन्म हुआ था। इसलिए यह हर साल मनाया जाता है। भारत में 7 धार्मिक नदियाँ हैं उन्हीं में से एक है माँ नर्मदा, हिन्दू धर्म में इसका बहुत मह्त्व है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने देवताओं को उनके पाप धोने के लिए माँ नर्मदा को उत्पन्न किया था और इसलिए इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है। एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया। उस समय उस राक्षस का वध करते हुए देवताओं ने बहुत से पाप भी किये। जिसके चलते देवता, भगवान् विष्णु और ब्रम्हा जी सभी, भगवान शिव के पास गए। उस समय भगवान शिव आराधना में लीन थे. देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि – “हे प्रभु राक्षसों का वध करने के दौरान हमसे बहुत पाप हुए है, हमें उन पापों का नाश करने के लिए कोई मार्ग बताइए”. तब भगवान् शिव ने अपनी आँखें खोली और उनकी भौए से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरा जिससे एक कन्या ने जन्म लिया. वह बहुत ही रूपवान थी, इसलिए भगवान विष्णु और देवताओं ने उसका नाम नर्मदा रखा। इस तरह भगवान शिव द्वारा नर्मदा नदी को पापों के धोने के लिए उत्पन्न किया गया।
कई देवी देवता निवास
करते हैं नर्मदा में
इसके अलावा उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की, भगवान् शिव उनकी आराधना से प्रसन्न हुए तभी माँ नर्मदा ने उनसे ऐसे वरदान प्राप्त किये, जो किसी और नदियों के पास नहीं है. वे वरदान यह थे कि मेरा नाश किसी भी प्रकार की परिस्थिति में न हो चाहे प्रलय भी क्यों न आ जाये, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूँ जो पापों का नाश करे, मेरा हर एक पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये, मेरे तट पर सभी देव और देवताओं का निवास रहे” आदि. इस कारण नर्मदा नदी का कभी विनाश नही हुआ, यह सभी के पापों को हरने वाली नदी है, इस नदी के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में विराजमान किया जाता है, इसका बहुत अधिक मह्त्व है और इसके तट पर देवताओं का निवास होने से कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही पापों का विनाश हो जाता है।
माँ नर्मदा का 
उद्गम एवं मार्ग 
नर्मदा नदी भारत के विंधयाचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों पर मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के अमरकंटक नामक स्थान के एक कुंड से निकलती है। यह इन दोनों पर्वतों के बीच पश्चिम दिशा में बहती है। यह कुंड मंदिरों से घिरा हुआ है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाँचवीं सबसे लम्बी नदी है। यह भारत की गोदावरी और कृष्णा नदी के बाद तीसरी ऐसी नदी है। जोकि पूरे भारत के अंदर ही प्रवाहित होती है। इसे “मध्यप्रदेश की जीवन रेखा” भी कहा जाता है। यह उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच पारम्परिक सीमा के रूप में पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती है। यह भारत की एक मात्र ऐसी नदी है, जोकि पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इसकी कुल लम्बाई 1312 किमी की है और यह गुजरात के भरूच शहर से गुजरती हुई खम्भात की खाड़ी में जाकर गिरती है। इस नदी के तटों में बहुत से तीर्थ स्थल है जहाँ लोग दर्शन करने आते है। यह नदी मध्यप्रदेश के साथ – साथ छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में भी प्रवाहित होती है। माँ नर्मदा की परिक्रमा का भी प्रावधान है और यह एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा होती है, इसके आलवा और किसी नदी के बारे में ऐसा नहीं कहा गया। इसलिए इसके तट में रहने वाले श्रद्धालु इसके मह्त्व को समझते है और कहते है कि इसके दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है।
नर्मदा 
जयंती महोत्सव 
नर्मदा जयंती महोत्सव एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है। इसकी भव्यता के बारे में सभी जानते हैं। जैसे ही यह अवसर आता है, लोग कई हफ्तों पहले से ही इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। इस साल यह 31 जनवरी से 2 फरवरी को मनाया जायेगा। इस दिन नर्मदा तटों को सजाया जाता है। बहुत से पंडित, साधू – संत इस दिन हवन भी करते है। कई लोग इस दिन माँ नर्मदा को चुनरी भी चढ़ाते हैं। साथ में इस दिन भंडारा भी किया जाता है। 
महा आरती में 
मिलता है पुण्य
शाम के समय माँ नर्मदा के तट पर बहुत से कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। जोकि माँ नर्मदा की आराधना के रूप में होते है। लेकिन इससे पहले माँ नर्मदा की महा आरती की जाती है। इसका दृश्य तो देखते ही बनता है दूर – दराज से लोग माँ नर्मदा की महा आरती में शामिल होने के लिए आते है। ताकि उन्हें पुण्य की प्राप्ति हो सके और साथ ही वे इसका प्रसाद गृहण करते है। और सभी माँ नर्मदा की आराधना में लीन हो जाते है।

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