Anchadhara

अंचलधारा
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विनम्र श्रद्धांजलि-------------- आसान नहीं है शिक्षाविद स्वर्गीय श्याम बहादुर नम्र होना

मनोज कुमार द्विवेदी
अनूपपुर (अंचलधारा) संपूर्ण साक्षरता मिशन मध्यप्रदेश में लागू होने वाला था। तत्कालीन शहडोल जिले के अनूपपुर, जैतहरी, कोतमा विकासखंड के लिये विकासखंड समन्वयकों के लिये क्षेत्र के जाने माने समाजसेवी स्व श्याम बहादुर नम्र जी से तत्कालीन कलेक्टर ने नाम मांगे थे। तब तक मुझे या अन्य किसी व्यक्ति को साक्षरता मिशन के विषय में कोई जानकारी थी नहीं । आलोक सिंह अनूपपुर के एसडीएम थे। नम्र जी से संभवतः उनकी कुछ चर्चा हुई एवं उनके प्रस्ताव पर ही मुझे सम्पूर्ण साक्षरता मिशन से जुडने का अवसर प्राप्त हुआ। श्री नम्र जी जाने माने शिक्षाविद् थे। उन्होंने साक्षरता मिशन की कक्षाओं के लिये बोधगम्य प्रवेशिकाएं तैयार की थीं । अनपढ़ प्रौढों को प्रवेशिकाओं के माध्यम से पढाना तभी संभव हो पाता जब वे उनके आयु समूह के अनुरुप सरल, स्वीकार्य होती। इस कार्य में नम्र जी को महारत हासिल थी। उनकी लिखी + बनाई किताबें पूरे मध्यप्रदेश में लागू हुई तथा बहुत से राज्यों ने उसकी थीम को स्वीकार किया। साक्षरता मिशन के माध्यम से नम्र जी के मार्गदर्शन में मुझे ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने का अनुभव प्राप्त हुआ।
शिक्षा को वे रोजगार मूलक बनाने के हामी रहे हैं। वे लकीर के फकीर तो बिल्कुल भी नहीं थे। जैतहरी विकासखंड के दस गाँव में उन्होंने शिक्षा की प्रयोगशाला पर काम किया । " अपना स्कूल " उनके मार्गदर्शन में श्रमनिकेतन संस्थान की ऐसी प्रयोगशाला थी जिसमे पढाने वाले ,पढने वाले , शिक्षण सामग्री+ विषयवस्तु सब कुछ स्थानीय था। उसी गाँव के बेरोजगार को ( चाहे वह कितना ही कम स्कूली शिक्षा प्राप्त हो) उन्होंने अपना स्कूल का गुरुजी बनाया। स्वयं उसके लिये प्रास्पेक्टस तैयार कर किताबें बनाईं। स्वयं उसके प्रमुख मार्गदर्शक थे तथा जमुडी, अनूपपुर, जैतहरी के युवक+ युवतियां उनकी टीम के सदस्य थे। उनमें से आज अधिकांश सरकारी शिक्षक बन गये हैं।
जब देश में रासायनिक खेती को लाभप्रद बतलाया जा रहा था,उन्होंने अंकुर फार्म हाउस , जमुडी को जैविक खेती की प्रयोग शाला बनाया। देश में अरहर की दाल जब ४०-४५ रुपये में मंहगी लगती थी तब अंकुर फार्म हाउस की जैविक दाल बडे शहरों में १५०-२०० रु किलो तक बिकती थी।
प्रकृति के प्रति उनका स्नेह आगाध था। इसके दर्शन उनके घर, उनकी जीवन शैली में होते थे। वे जीवट, निडर व साहसी तो इतने थे कि बहुत बार उनका साहस किसी दुस्साहस से बढ कर लगने लगता था। ७५ वर्ष से अधिक की आयु में वे थोडे अस्वस्थ हो गये थे। इसके बावजूद अन्ना हजारे के समर्थन में वे अकेले शहडोल में अनशन पर बैठ गये। लोगों ने उन्हे बहुत समझाया लेकिन जिद जुनून की तरह थी। हम सबने उनका स्वागत् अनूपपुर जिला मुख्यालय में किया था। संभवतः यह उनके शरीर के लिये नुकसानदेह साबित हुआ।
ग्रामीण क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान उनसे मिलने मैं जमुडी पहुँचा तो पहली बार उन्हे मैने बाहर खटिया में लेटे हुए देखा। श्रीमती अनुराधा जी, अनुराग, अमन सभी थे। मुझे वे थोडे कमजोर दिखे। पूछने पर बतलाया गया कि ब्लड प्रेशर बढा हुआ है, कमजोरी अधिक है। मैंने तत्काल उन्हे डाक्टर को दिखलाने का सुझाव दिया। मुझे थोडा डर भी लग रहा था। तब भी वे प्राकृतिक चिकित्सा की अडी में थे। हमने उन्हे तत्काल अनूपपुर में डाक्टर की सलाह लेने को कहा। लेकिन वे माने नहीं ।
उस वर्ष की ठंड जानलेवा साबित हुई। एक सुबह जब उन्हे कार में लाद कर जिला अस्पताल लाया गया,तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सचमुच नाम के विपरीत वे कार्य, लक्ष्य , प्रकृति के प्रति बहुत कठोर थे। इस तरह का " नम्र" होना बहुत कठिन ,लगभग असंभव है। उन्हें मेरी अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि ....ॐ शान्ति: 

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