अनूपपुर (अंचलधारा) कक्षा दसवीं
में पढ़ने वाली किसी भी लड़की के लिए परिवार की जिम्मेदारियों को उठाना आसान नहीं था,
ऐसे में और जब पिता चलने फिरने मे असमर्थ हों।मां और पिता की जिम्मेदारी के साथ अपनी
पढ़ाई की चिंता, कुछ ऐसा ही हाल था शांति का।
अनूपपुर जिले के ग्राम नोनघाटी की रहने वाली
शांति के पिता चलने फिरने में असमर्थ थे, भाई शादी के बाद से अलग रहने लगा था, बड़ी
बहन अपनी ससुराल में थी। ऐसे में माता पिता के साथ अपना खुद का ख्याल रखने की जिम्मेदारी
शांति पर आ चुकी थी। इन्हीं सबके बीच मप्र दीनदयाल अन्त्योदय योजना राज्य ग्रामीण आजीविका
मिषन के तहत् बनाये जा रहे समूह से शांति की मां सुमित्रा भी जुड़ गयी, गांव में ज्यादा
पढ़े लिखे समूह सदस्य नहीं थे ऐसे में समूह की सात तरह की पुस्तकों को लिखने का काम
शांति को मिल गया। अब वह भी अपनी मां के साथ समूह की बैठकों में जाने लगी, धीरे-धीरे
समूह से होने वाले फायदे को उसने भी समझा और समूह की मदद से कुछ करने का सोचने लगी।
परिवार की छोटी मोटी जरूरते समूह से पूरी होने लगीं, कुछ पैसा पुस्तके लिखने के बदले
मिल जाते, लेकिन परिवार की आजीविका, पिता के इलाज का खर्च, इन सबके लिए इतना काफी नहीं
था, घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए मां बेटी के लिए मजदूरी का साथ अभी छूटा नहीं
था। परिस्थितियां ऐसी बनी कि शांति के लिए आगे पढ़ाई जारी रखना संभव नहीं था। कुछ दिनों
बाद आजीविका मिषन के सहयोग से शांति ने ग्रामीण स्वरोजगार प्रषिक्षण केंद्र अनूपपुर
से मुर्गी पालन विषय पर प्रषिक्षण प्राप्त किया और इसी आधार पर मुख्यमंत्री आार्थिक
कल्याण योजना अंतर्गत उसका तीस हजार रू का ऋण प्रकरण बैंक से स्वीकृत होकर ऋण प्राप्त
हुआ।
शांति का एक कदम आगे बढ़ चुका था सफलता की ओर,
गतिविधि से होने वाली आय से उसने एक सिलाई मषीन भी खरीदी और सिलाई का काम भी प्रारंभ
कर दिया। धीरे धीरे आय में आर्थिक तंगी में कमी आने लगी और शांति के हौसलों में वृद्धि
हुयी। उसने प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में अपनी पढ़ाई को पुनः प्रारंभ किया और स्नातक
की परीक्षा पास कर ली। इसी बीच आजीविका मिषन की तरफ से प्रषिक्षणार्थी के रूप मे शांति
का इंदिरा गांधी आदिवासी विष्वविद्यालय, पोड़की अमरकंटक जाना हुआ और वहां पर प्रषिक्षण
के दौरान विष्वविद्यालय के प्रषिक्षक दल ने शांति की प्रतिभा और उसकी कुछ करने की लगन
को पहचाना और विष्वविद्यालय के जैविक केंद्र में काम करने का प्रस्ताव दिया। शांति
के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी, उसने सहर्ष सहायक के रूप में नौकरी ज्वाइन
कर ली, जिससे उसे प्रतिमाह बारह हजार रू मिलने लगे। वह बताती है कि यह नौकरी अस्थाई
है लेकिन अभी उसको इसकी बहुत जरूरत थी।
अब शांति बहुत खुष है, बताती है मां को मजदूरी
करने नही जाना पडता, पिता की भी देखरेख हो जाती है। साथ ही मां के सहयोग से मुर्गी
- बकरी पालन, सिलाई से पांच से छः हजार रू की तथा नौकरी से बारह हजार रू की आय हो जाती
है, कुल मिलाकर सत्रह से अठारह हजार रू की
मासिक आय हो जाती है। शांति के दिव्यांग पिता को आजीविका ग्राम संगठन के माध्यम से
ग्राम सभा में प्रस्ताव के आधार पर ट्राईसिकल भी मिल गई है एवं 300 रू मासिक पेंषन
भी मिल रही है। शांति खुष होते हुए बताती है , मै अभी प्रतिमाह तीन सै रू बचत खाते
में जमा करती हूं,अब आय बढ गई है तो बचत भी बढ़ाउगी। शादी के पहले स्कूटी लूंगी एवं
घर का लेंटर भी करवाउंगी। वह अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहती है उसके संघर्ष
के वक्त से लेकर सफलता तक के सफर में आजीविका
मिषन ने जो सहयोग दिया है इसे हमेषा याद रखेगी।
संकलन - अंकुश मिश्रा सहायक संचालक जिला जनसम्पर्क - अनूपपुर
अनूपपुर ब्यूरो/हिमांशू बियानी
संकलन - अंकुश मिश्रा सहायक संचालक जिला जनसम्पर्क - अनूपपुर
अनूपपुर ब्यूरो/हिमांशू बियानी
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