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संसद भवन व विधानसभा में गेरुआ वस्त्र पहनना संतों की पहचान नहीं-श्रीधर शर्मा

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंंचलधारा) जिले के पावन धाम अमरकंटक में एक ओर महाशिवरात्रि के पावन पर्व की जोरदार तैयारी चल रही है तो दूसरी ओर समूचे भारतवर्ष में एक अलग ही हिन्दुत्व क्रांति देखने को मिल रही है।कभी किसी हिंदू धर्म ग्रंथ को लेकर विवादित बयान दिए जाते हैं तो कभी हिन्दू देवी देवताओं को लेकर टिप्पणी की जाती है और सनातन धर्म व संस्कृति पर प्रश्न चिन्ह लगाकर लोग स्वयं को सर्वज्ञ साबित करने में लिप्त हैं और हिंदू और हिन्दुत्व को संवारने की बजाय अपमानित करने में आनंदित महसूस कर रहे हैं।
               परमधर्म सांसद श्रीधर शर्मा ने बताया कि समूचे भारतवर्ष में हिंदुत्व का ढिंढोरा पीटने वाले राष्ट्रीय संगठन के प्रमुख के द्वारा दिया गया बयान कहीं न कहीं देश में हिंदुत्व और हिंदुओं की सामाजिक व्यवस्था पर कुठाराघात करने का प्रयास प्रतीत होता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देश में हिंदुत्व के लिए बेहतर कार्य किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन विगत दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत जी के द्वारा दिए गए बयान से हिंदुत्व एवं हिंदुओं को आहत किया गया है। ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने आर एस एस प्रमुख पर सवाल उठाते हुए कहा है कि गीता में भगवान ने कहा है कि वर्ण व्यवस्था उन्होंने बनाई है लेकिन भागवत जी ने किस अनुसंधान के तहत इस प्रकार का बयान दे दिया कि वर्ण व्यवस्था पंडितों की देन है।हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर भी स्वामी जी ने तंज कसते हुए कहा कि हिन्दू राष्ट्र की मांग को भी यदि जुमलेबाजी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ज्योतिष पीठाधीश्वर अनन्त विभूषण शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने कहा कि जो लोग भी यह मांग उठा रहे हैं, उन्हें हिंदू राष्ट्र का खाका सामने रखना चाहिए। हिंदू राष्ट्र होगा तो राजनीतिक व्यवस्था में क्या बदलाव आने वाला है, इस पर भी बात की जानी चाहिए। इसका खाका सामने रखे बिना इस पर बात करना बेइमानी है। स्वामी करपात्री जी महाराज ने हिंदू राष्ट्र की मांग को गलत कहा था। उनका कहना था कि हिंदू राष्ट्र से कुछ नहीं होगा।कहने को तो रावण भी हिंदू था और कंस भी। एक ब्राह्मण था और एक क्षत्रिय, लेकिन उनका हिंदू राष्ट्र कभी किसी का आदर्श नहीं रहा। करपात्री जी रामराज्य की मांग करते थे। वह शासन का आदर्श हैं। जहां प्रजा सुखी है, सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव है। जहां का राजा प्रजा के प्रति समर्पित है। वह प्रजा हित में कुछ भी छोड़ने को सदैव तत्पर है।

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