(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंंचलधारा) शासकीय तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर के अर्थशास्त्र, इतिहास तथा समाजशास्त्र विभाग द्वारा संयुक्त रूप से अधिकार व लोकतंत्र विषय पर एक ऑनलाइन संवाद का आयोजन 10 फरवरी 2023 को किया गया।
इस कार्यक्रम का शुभारभ प्राचार्य डॉ.जे.के.संत के द्वारा किया गया।डॉ.संत ने अपने संदेश में कहा कि इस तरह की चर्चाओं से युवा शोधवेत्ता लाभान्वित होंगे।संवाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ.कमल नयन चौबे ने कहा कि लोकतंत्र को उसकी संस्थाओं तथा लक्ष्यों के आधार पर समझ जा सकता है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संस्थाओं में थोड़े बहुत राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद संस्थागत मजबूती बनी हुई है यद्यपि इस पर सरकार द्वारा हस्तक्षेप किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ी है; परंतु, मूल्यों की प्राप्ति के स्तर पर अभी यह बात नहीं दिखाई देती। उन्होंने आगे कहा कि पहचान या अस्मिता की राजनीति कई बार व्यापक लक्ष्यों को पीछे रखकर छोटे-मोटे लाभ लेकर संतुष्ट हो जाती है।
लोकलुभावन वाद से सत्ता के प्रति सवाल पूछने और सरकार की जवाबदेही में कमी आई है और लोगों की आज्ञा पालन की प्रवृत्ति बढ़ी है जो स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की डॉ तरुशिखा सर्वेश ने कहा कि समानता एकरूपता नहीं है और लोकतंत्र में भिन्नताओं का सम्मान करना चाहिए।उन्होंने राज्य में उभरती प्रवृत्ति का संकेत करते हुए कहा कि राज्य का दायरा सुरक्षा के संदर्भ में बढ़ रहा है; परंतु, निजी जीवन तथा स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं पर विश्वास कम होता है तथा तानाशाही व निरंकुश संस्थाओं की स्थापना की मांग बढ़ने लगती है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सिविल सोसाइटी को आगे बढ़कर अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिए।
डी एन महाविद्यालय गुलावठी बुलंदशहर से पीयूष त्रिपाठी ने संवाद का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि लोकतंत्र, संस्थाओं की जवाबदेही तथा समावेशन की प्रक्रिया है। लोकतंत्र के स्तर को मापने के लिए यह देखना होगा कि क्या अंतिम व्यक्ति ऊपर तक अपनी आवाज पहुंचा सकता है और प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकता है।
B इसके पूर्व तुलसी महाविद्यालय की प्रो.प्रीति वैश्य ने अतिथियों का स्वागत किया,आगरा कॉलेज आगरा के डॉ. अनूप सिंह ने वक्ताओं का परिचय दिया तथा कार्यक्रम के अंत में इस कार्यक्रम की सह-संयोजक प्रो.पूनम धांडे ने वक्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया।
तुलसी महाविद्यालय की प्रो.प्रीति वैश्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ.अमित भूषण द्विवेदी ने कहा कि परिचर्चा से लोकतंत्र के बारे में हमारी समझ का विस्तार हुआ है।
इस कार्यक्रम का सह-संयोजन प्रो.विनोद कुमार कोल कर रहे थे।इस मौके पर महाविद्यालय के आयोजन समिति के पदाधिकारी, विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थाओं के शोध छात्र एवं फैकल्टी जन उपस्थित रहें।
इस कार्यक्रम का शुभारभ प्राचार्य डॉ.जे.के.संत के द्वारा किया गया।डॉ.संत ने अपने संदेश में कहा कि इस तरह की चर्चाओं से युवा शोधवेत्ता लाभान्वित होंगे।संवाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ.कमल नयन चौबे ने कहा कि लोकतंत्र को उसकी संस्थाओं तथा लक्ष्यों के आधार पर समझ जा सकता है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संस्थाओं में थोड़े बहुत राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद संस्थागत मजबूती बनी हुई है यद्यपि इस पर सरकार द्वारा हस्तक्षेप किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ी है; परंतु, मूल्यों की प्राप्ति के स्तर पर अभी यह बात नहीं दिखाई देती। उन्होंने आगे कहा कि पहचान या अस्मिता की राजनीति कई बार व्यापक लक्ष्यों को पीछे रखकर छोटे-मोटे लाभ लेकर संतुष्ट हो जाती है।
लोकलुभावन वाद से सत्ता के प्रति सवाल पूछने और सरकार की जवाबदेही में कमी आई है और लोगों की आज्ञा पालन की प्रवृत्ति बढ़ी है जो स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की डॉ तरुशिखा सर्वेश ने कहा कि समानता एकरूपता नहीं है और लोकतंत्र में भिन्नताओं का सम्मान करना चाहिए।उन्होंने राज्य में उभरती प्रवृत्ति का संकेत करते हुए कहा कि राज्य का दायरा सुरक्षा के संदर्भ में बढ़ रहा है; परंतु, निजी जीवन तथा स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं पर विश्वास कम होता है तथा तानाशाही व निरंकुश संस्थाओं की स्थापना की मांग बढ़ने लगती है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सिविल सोसाइटी को आगे बढ़कर अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिए।
डी एन महाविद्यालय गुलावठी बुलंदशहर से पीयूष त्रिपाठी ने संवाद का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि लोकतंत्र, संस्थाओं की जवाबदेही तथा समावेशन की प्रक्रिया है। लोकतंत्र के स्तर को मापने के लिए यह देखना होगा कि क्या अंतिम व्यक्ति ऊपर तक अपनी आवाज पहुंचा सकता है और प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकता है।
B इसके पूर्व तुलसी महाविद्यालय की प्रो.प्रीति वैश्य ने अतिथियों का स्वागत किया,आगरा कॉलेज आगरा के डॉ. अनूप सिंह ने वक्ताओं का परिचय दिया तथा कार्यक्रम के अंत में इस कार्यक्रम की सह-संयोजक प्रो.पूनम धांडे ने वक्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया।
तुलसी महाविद्यालय की प्रो.प्रीति वैश्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ.अमित भूषण द्विवेदी ने कहा कि परिचर्चा से लोकतंत्र के बारे में हमारी समझ का विस्तार हुआ है।
इस कार्यक्रम का सह-संयोजन प्रो.विनोद कुमार कोल कर रहे थे।इस मौके पर महाविद्यालय के आयोजन समिति के पदाधिकारी, विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थाओं के शोध छात्र एवं फैकल्टी जन उपस्थित रहें।
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