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एकात्म पर्व के तहत आदि गुरु शंकराचार्य जी के जीवन दर्शन पर हुई चर्चा कहां देश को दिया एकता का संदेश

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंंचलधारा) भगवत्पाद आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती पर उनके जीवन दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के लिए  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशानुरूप पूरे प्रदेश में जन अभियान परिषद के माध्यम से 06 मई से 12 मई तक एकात्म पर्व पखवाड़ा मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में अनूपपुर जिले में आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती के उपलक्ष्य में सोन सभागार कलेक्ट्रेट अनूपपुर में एकात्म पर्व का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में माँ नर्मदा मठ (नर्मदा उद्गम स्थली) अमरकंटक के परंपरागत प्रधान उपासक आचार्य धनेश द्विवेदी (वंदे महराज), आचार्य उमेश द्विवेदी (बंटी महराज) तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्विद्यालय अमरकंटक के सहायक प्राध्यापक डॉ. नागेंद्र सिंह द्वारा आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। डॉ. नागेंद्र सिंह ने बताया कि भारत देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए देश के चारों दिशाओं में चार मठ बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम, पुरी की स्थापना की गई। उन्होने आचार्य शंकर के अद्वेत मत के संदर्भ में जीवन व्रत एवं  सनातन धर्म की संस्कृति व सभ्यता को विश्व मे प्रथम स्थान पर रखकर जीवन सफल बनाने पर बल दिया। माँ नर्मदा मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित उमेश  द्विवेदी (बंदे महाराज) ने कहा की आदि शंकराचार्य ने चार मठों (चार धाम) की स्थापना की है, जिसमें भारत की विभिन्न भाषाओं एवं संस्कृति को आदान प्रदान करने के लिए चारों मठों में पूजा करने वाले पुजारियों की व्यवस्था उत्तर को दक्षिण में एवं पूर्व को पश्चिम में पूजा करने का अवसर दिया। जिससे भारत में एकात्मता स्थापित हो सके। भारत में हमेशा सेवक को पूजा जाता है। आदिशंकराचार्य जी को शंकर जी का अवतार माना जाता है। माँ नर्मदा मठ (आनंद मठ) के परंपरागत प्रधान उपासक पंडित धनेश द्विवेदी ने कहा कि केवल 08 वर्ष की उम्र में संन्यास लेने के बाद आदि शंकर ने 32 वर्ष की उम्र तक यानी 24 वर्षों में देश की चार अलग-अलग दिशाओं में 8500 किलोमीटर के दायरे में चार मठों की स्थापना की। आज से 1200 वर्ष पहले बिना किसी साधन, बिना किसी सुविधा के केरल से चलकर पैदल ही पूरे देश की यात्रा आदि शंकराचार्य ने पूरी की। उन्होंने देश में धर्म के सही धर्म का प्रचार और ज्ञान के केन्द्रों की स्थापना की। सनातन धर्म जब संकट में था ऐसे समय मे आचार्य शंकर ने ही इसके पुनरोत्थान का कार्य किया। उन्होंने कहा कि हमारे देश का यह अद्भुत सौभाग्य है कि इस देश को भगवान राम, कृष्ण, आचार्य चाणक्य और शंकराचार्य जैसे महापुरुषों ने गढ़ा है। हमारे यहाँ भगवान राम ने उत्तर-दक्षिण को जोड़ा तो वहीं भगवान कृष्ण ने पूरब-पश्चिम को जोड़ा तो वहीं आदि शंकराचार्य ने भारत की सांस्कृतिक एकता को चार मठों के माध्यम से जोड़कर भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक परम्परा को स्थायी रूप से स्थापित करने का महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने कहा कि हम सभी अनूपपुर जिलेवासिओ का सौभाग्य है कि भारत भ्रमण के दौरान 60 दिनों तक वो पवित्र नगरी अमरकंटक में रहे उनका जन्म भारत के केरल राज्य के गांव  कलदि में  ब्राह्मण परिवार में हुआ था गुरु की तलाश में आचार्य शंकर 2000 किलोमीटर पैदल चलकर मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में गुरु गोविंद भगवत पाद के मार्गदर्शन में ब्रह्म सूत्र वेदों और उपनिषद का अध्ययन किया। उन्होंने कुछ दिनों में ही लगभग सभी प्राचीन लिपियों में महारत हासिल कर ली। उन्होंने कहा कि आचार्य शंकर का प्राकट्य उत्सव मनाने का उद्देश्य ये है कि हम उनके द्वारा बताए गए पदचिन्हों पर चलें सदा धर्म की रक्षा करें तभी धर्म भी आपकी रक्षा करेगा, अपना देश सर्वोपरि हो इसकी सभ्यता व सांस्कृतिक का आदर व सम्मान करें पूर्वजों द्वारा बताए गए सदमार्ग पर चलें तभी हमारा, समाज का, प्रदेश व इस देश का कल्याण सम्भव है। कार्यक्रम के दौरान पूर्व विधायक रामलाल रौतेल,अनूपपुर शहर के प्रबुद्धजन  मनोज द्विवेदी, राजेंद्र तिवारी, हरिओम वर्मा, अरुण सिंह, रश्मि खरे, प्रस्फुटन समिति के सदस्य, सीएमसीएलड़ीपी छात्र, स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार उपस्थित रहे।

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