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राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार के अतिशय महत्वपूर्ण नायक हैं धरती अबा बिरसा मुंडा-कुलपति श्री त्रिपाठी

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंचलधारा)  इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय  अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 15 नवंबर 1875 को जन्मे महात्मा बिरसा मुंडा की जीवन गाथा और स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक समरसता में योगदान अविस्मरणीय एवं प्रेरक है।  उनका बचपन घोर गरीबी में बीता और बिरसा को शिक्षा के लिए अपने मामा के घर जाना पड़ा।  बचपन से ही मेधावी छात्र बिरसा मुंडा काफी हद तक स्व-निर्मित और जागरूक व्यक्ति थे।
एक सुधारक और क्रांतिकारी के रूप में, उन्होंने अंग्रेजों के जनविरोधी कृत्यों के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसने जनजातीय समुदाय को भूमि, जंगल, श्रम और आजीविका के विकल्पों से अलग कर दिया। आदिवासी किसानों पर अनुचित लगान लाया गया।वस्तुतः अंग्रेज समकालीन जनजातीय जीवन का शिकार कर रहे थे।  बिरसा ने आधुनिक झारखंड, बिहार और ओडिशा के क्षेत्र में कई क्रांतियों का नेतृत्व किया।
दमनकारी कराधान और सरकार द्वारा निरंतर शोषण ने आदिवासी समुदाय को लगातार आहत किया।बिरसा मुंडा के नेतृत्व में जनजातियों ने भूमि और जंगल पर आदिवासी समुदाय की प्रधानता की घोषणा की।प्रारंभ में, कानून की सीमा के भीतर एक शांतिपूर्ण विरोध बाद की तारीख में पूर्ण क्रांति में बदल गया।  आदिवासी प्रतीकों, लोक नृत्य और गीतों, जनजातीय भाषा, पारंपरिक गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से उनके प्रवचन सामंती और औपनिवेशिक उत्पीड़न के उनके प्रतिरोध की रूपरेखा तैयार करते हैं।  शोषण और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई में उन्होंने बड़े पैमाने पर स्वदेशी तकनीकों का इस्तेमाल किया।जब हाशिए के आदिवासी लोगों के लिए न्याय के लिए संघर्ष का वांछित परिणाम नहीं निकला, तो बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश राज को समाप्त करने की घोषणा की।'राज सेतर जाना, महारानी राज टुंडू जाना, 'रानी का राज्य समाप्त हो जाए और हमारा राज्य स्थापित हो जाए'।घोषणा के इन शब्दों ने ब्रिटिश राज के मूल आधार को चुनौती देने के लिए अनुयायियों के बीच एक मंत्र की तरह काम किया।शक्तिशाली औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ लड़ाई हालांकि स्वतंत्रता नहीं ला सकी लेकिन छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी लोगों को एकजुट करने में सफल रही।
स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के अलावा, बिरसा मुंडा ने  जनता के नेता के रूप में लगातार काम किया।, साथियों और जनता के लिए उनकी चिंता ने उन्हें 'धरती अबा बिरसा मुंडा' की उपाधि दी।  विविध क्षेत्रों के किसानों की दीनता, ग्रामीण ऋणग्रस्तता, भूमि का विखंडन, अंग्रेजों की भू-राजस्व नीति, नव-सामाजिक आदिवासी पहचान और राष्ट्रवाद के लिए वह निरंतर संघर्ष करते रहे। धरती आबा बिरसा मुंडा का जीवन आज और भविष्य के युवाओं के लिए सतत प्रेरक है।

"विराट ऊर्जा के स्रोत बिरसा"
प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी 

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय  विश्वविद्यालय, अमरकंटक में "बिरसा मुंडा का सामाजिक जीवन और आज का युवा" विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन संपन्न होगा जिसमें शिक्षा जगत के प्रबुद्ध विद्वानों और छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया कार्यक्रम में विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में जिंदगी को हिला दिया महामारी के बावजूद प्रत्येक देश प्रत्येक व्यक्ति आगे बढ़ने की इच्छा को नहीं रोक पाया। इस मुश्किल समय में भी हर व्यक्ति समय के पार जाना चाहता था। सफलता को आत्मसात करना चाहता था और भारत ने यह कर दिखाया। इस कठिन समय में हमारे डॉक्टर, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता और भारत के टीकाकरण अभियान ने दुनिया के सामने एक मिसाल रख दी है, कि विचार है, तो जुनून है और जुनून है, तो हिम्मत है। अतः आज बिरसा मुंडा का त्यागमय जीवन याद आता है। आने वाली 15 नवंबर को उनकी 146 वी जयंती है। कहते हैं, कि समय इंसान को मजबूत बनाता है और अनिश्चितता की गहराइयों में इंसानियत की भावना का उदय होता है। आज इसी कठिन दौर से देश-दुनिया गुजर रही है।
बिरसा मुंडा के मूल्यांकन की आधारशिला क्या होनी चाहिए? आज पूरी दुनिया जिस दौर से गुजर रही है या यूं कहें कि भारत के सार्वजनिक जीवन में आज जो कुछ चल रहा है वही बिरसा मुंडा के जीवन को व्यक्त करता है। स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में जिन हस्तियों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सक्रियता दिखाई उनकी प्रतिभा का प्रभाव स्वतंत्र भारत के रूप में दिखा। बिरसा मुंडा का संपूर्ण जीवन ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गुलामी में बीता। उन्होंने पराधीन भारत में जिन समस्याओं का सामना किया स्वतंत्र भारत उन समस्याओं का सामना न करें इसके लिए उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया। 
बिरसा ने पराधीन भारत में चुनौतियों का कैसे सामना किया, किस तरह की रणनीति बनाई वक्त के अनुकूल किस तरह से निर्णय लिए ये सब विचार अपने आप में गौंण हैं। मुख्य है उनका विचार है, कि  देश को आजाद कराना है। उन्होंने आजादी की राह में आने वाली चुनौतियों से जूझने की शक्ति जनजातीय संस्कृति के आधार पर सृजित की। बिरसा ने सेवा और संगठन को अपनी ढाल बनाया तथा धैर्य और त्याग उनके आभूषण थे।
धरती की सबसे बड़ी आबादी युवा आबादी में भारत के पास है। ये युवा आबादी देश और समाज के लिए वरदान साबित हो सकती है, जरूरत है, इन्हें देश के स्वतंत्रता सेनानियों से परिचय कराने की आवश्यकता है। जिससेदेश के करोड़ों युवा सामर्थ्यवान और कौशल संपन्न बनने के साथ-साथ देशभक्ति को आत्मसात कर सकें।
बिरसा ने उस दौर में शिक्षा ग्रहण की जब क्रिस्चियन स्कूलों में दूसरे धर्म के विद्यार्थियों को पढ़ने की अनुमति नहीं थी। फिर न चाहते हुए भी बिरसा का धर्मान्तरण करना पड़ा। क्रिस्चियन स्कूल में दाखिल होते ही बिरसा मुंडा का नामकरण बिरसा डेविड किया गया। अंग्रेजी शिक्षा के दौरान ही बिरसा मुंडा को अनुभव हुआ कि अंग्रेज सरकार हम भूमि पुत्रों को जबरन धर्मांतरित करके हमारी जमीन छीनना चाहती है। इस बात को महात्मा गांधी भी मानते थे कि अंग्रेजी राज ने देशज शिक्षा पद्धति को ध्वस्त कर दिया था। जिससे भारत में निरक्षरता बढ़ी। अभावों व गुलामी के दिनों में भारत के पास यह क्षमता थी। अब आज का युवा नई शिक्षा नीति 2020 के सहारे दुनिया के सामने भारत को एक नई पहचान दिलाएगा जिस तरह बिरसा ने जनजातीय समाज के त्याग और बलिदान को सबके सामने रखा। 
उन दिनों चेचक और हैजे की बीमारी ने सबको घेरा रखा था तब हजारों लोग मर रहे थे। ऐसे में सुशिक्षित बिरसा ने आदिवासी लोगों को स्वच्छता और सावधानी के तौर तरीके समझाकर बीमारी से काफी हद तक बचाने में सफल हुए। ठीक इसी तरह का समय आज भी है जब कि कोविड से जनजीवन अस्त व्यस्त है और युवा भारतीय जनजीवन और अर्थव्यवस्था को राह पर ला रहे हैं। जल जंगल जमीन को बचाने के लिए बिरसा ने 25 साल की अल्प आयु में समस्त देशवासियो को स्वाभिमान और स्वतंत्रता का अद्भुत पाठ पढ़ाया। मुंडा जनजाति आज भी बिरसा को भगवान बिरसा के रूप में याद करती है। ऐसे विलक्षण महामानव युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है"। 
कार्यक्रम का संचालन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र सिंह भदोरिया ने किया तथा प्रोफेसर भूमि नाथ त्रिपाठी द्वारा सभी को धन्यवाद दिया गया इस अवसर पर प्रो. ए.के. शुक्ला, प्रो. आशीष माथुर आदि ने ऑनलाइन जुड़कर कार्यक्रम को सफल बनाया।

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