(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्विद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर कहा कि इस वर्ष का ध्येय वाक्य है “बाघ की उत्तरजीविता हमारे हाथों में है। यह सही मायने में यह तभी संभव हो सकेगा जब हम “जल, जंगल और जमीन” को बचायेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस बाघ संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए यह वार्षिक उत्सव है, जो प्रति वर्ष 29 जुलाई को आयोजित किया जाता है। यह 2010 में रुस के सेंट पिटर्सबर्ग में शिखर सम्मेलन में बनाया गया था। इस दिन का लक्ष्य बाघों के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और बाघ संरक्षण मुद्दों के लिए जन जागरूकता और समर्थन बढ़ाने के लिए वैश्विक प्रणाली को बढ़ावा देना है। बाघ विलुप्त होने के कगार पर हैं और अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का उद्देश्य इस तथ्य पर ध्यान देना और उनकी संख्या में हो रही कमी को रोकने की कोशिश करना है। टाइगर डे का उद्देश्य उनके निवासों की रक्षा और विस्तार करना है और आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने का लक्ष्य है। WWE IFAW और Smithsonian Institute सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इस दिन को जोर शोर से मनाते हैं।
वर्तमान में बाघों की संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर है. पिछले 100 वर्षों में बाघों की आबादी तेजी से घटी है। भारत का यह राष्ट्रीय पशु है। इसे देश की शक्ति, शान और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। नवीनम बाघ गणना के अनुसार भारत में बाघ की संख्या 2967 है जो विश्व की संख्या का लगभग 70 प्रतिशत है।
2018 की बाघ गणना के बाद भारत में बाघों की संख्या पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है। देश मे बाघ की गणना 2019 में जारी की गयी थी। बाघ गणना के शीर्षस्थ देश के रुप में भारत ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया है।
वर्ष 1915 में बाघों की संख्या एक लाख थी। बाघों की कुछ प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। भारत उन देशों में शामिल है जिसमे बाघों की जनसख्या सबसे अधिक है। भारत, नेपाल, रूस एवं भूटान में पिछले कुछ समय से बाघों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। मनुष्यों द्वारा शहरों और कृषि का विस्तार किया गया, जिसकी वजह से बाघों का 93 फीसदी प्राकृतिक आवास खत्म हो चुका है। बाघों का अवैध शिकार भी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से बाघ अब विलुप्तप्राय श्रेणी में आ चुके हैं। इनका अवैध शिकार उनके चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए किया जाता है। इनका इस्तेमाल परंपरागत दवाइयों को बनाने में किया जाता है। बाघों की हत्या कई बार शान में भी की जाती है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन भी बहुत बड़ी वजह है जिससे बाघों की आबादी कम हो रही है। बाघ वृक्षों पर पंजे के निशान और मूत्र से अपनी सीमा क्षेत्र बनाता है, जो दूसरे बाघों को बताने के लिए होती है। अगर जंगल अच्छा है,उसमें शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या अच्छी खासी है तो वह छोटे इलाके में भी आराम से रह सकते हैं। पूरी दुनिया में बाघों की कई तरह की प्रजातियां मिलती हैं। इनमें 6 प्रजातियां मुख्य हैं, साइबेरियन बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं। बंगाल टाइगर, या पेंथेरा टिगरिस, प्रकृति की सबसे अद्भुत रचनाओं में से एक है। यह बाघ परिवार की एक उप-प्रजाति है और यह भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार एवं दक्षिण तिब्बत के क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके शौर्य, सुंदरता और बलशाली रूप को देखते हुए बंगाल टाइगर को राष्ट्रीय पशु के सम्मान से नवाज़ा गया है। मांस खाने वाले स्तनधारी जीवों में बाघ के कैनाइन दांत सबसे लम्बे होते हैं। यह दांत 4 इंच तक बढ़ सकते हैं जो बब्बर शेर के कैनाइन दांतों से भी बड़े हैं। इन शक्तिशाली जीवों के पास अंदर से बाहर जाने वाले पंजे भी होतें हैं, जो उन्हें चढ़ाई करने में सहायता करते हैं। अन्य जीवों की अपेक्षा बाघों की देखने और सुनने की शक्ति कहीं ज्यादा होती है। इंडोचाइनीज टाइगर बाघ की यह प्रजाति कंबोडिया, चीन, बर्मा, थाईलैंड और वियतनाम में पाई जाती है। इस प्रजाति के बाघ पहाड़ों पर ही रहते हैं। इस वर्ष 2021 में अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का ध्येय वाक्य है “बाघ की उत्तरजीविता हमारे हाथों में है" को ध्यानपूर्वक देखा जाए तो इस विषय पर भारत ने 50 साल पहले चिंतन करना शुरू कर दिया था। बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी को देखते हुए 1973 में एक अधिनियम पारित किया था जिसका नाम प्रोजेक्ट टाइगर है। 1973 में टाइगर रिजर्व क्षेत्रों की संख्या 9 थी किन्तु वर्तमान में इसकी संख्या बढ़कर 50 टाइगर रिजर्ब चुकी है। मध्य प्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य है जहाँ बांधवगढ़, सतपुड़ा, कान्हा,पन्ना, पेंच,संजय डुबरी नामक टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में देश के सबसे ज्यादा 526 बाघ है। इस वर्ष का ध्येय वाक्य “बाघ की उत्तरजीविता हमारे हाथों में है" यह सही मायने में तभी पूरी होगी जब हम “जल, जंगल और जमीन” को बचायेंगे। इसके लिए हम सब को मिलकर प्रयास करना होगा कि वर्षा के जल का संरक्षण करें, जल संरक्षण नित्य नए तरीकों की खोज की जाए। वन्य जीवों और वनौषधियों के संरक्षण के लिए जनजातीय समुदाय के विशिष्ट ज्ञान का आश्रय लिया जाना चाहिए। नदियों और जंगल के नालों के आस-पास रिहायशी बस्तियों के निर्माण प्रतिबंधित होने चाहिए तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण पर बल दिया जाना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस बाघ संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए यह वार्षिक उत्सव है, जो प्रति वर्ष 29 जुलाई को आयोजित किया जाता है। यह 2010 में रुस के सेंट पिटर्सबर्ग में शिखर सम्मेलन में बनाया गया था। इस दिन का लक्ष्य बाघों के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और बाघ संरक्षण मुद्दों के लिए जन जागरूकता और समर्थन बढ़ाने के लिए वैश्विक प्रणाली को बढ़ावा देना है। बाघ विलुप्त होने के कगार पर हैं और अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का उद्देश्य इस तथ्य पर ध्यान देना और उनकी संख्या में हो रही कमी को रोकने की कोशिश करना है। टाइगर डे का उद्देश्य उनके निवासों की रक्षा और विस्तार करना है और आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने का लक्ष्य है। WWE IFAW और Smithsonian Institute सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इस दिन को जोर शोर से मनाते हैं।
वर्तमान में बाघों की संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर है. पिछले 100 वर्षों में बाघों की आबादी तेजी से घटी है। भारत का यह राष्ट्रीय पशु है। इसे देश की शक्ति, शान और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। नवीनम बाघ गणना के अनुसार भारत में बाघ की संख्या 2967 है जो विश्व की संख्या का लगभग 70 प्रतिशत है।
2018 की बाघ गणना के बाद भारत में बाघों की संख्या पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है। देश मे बाघ की गणना 2019 में जारी की गयी थी। बाघ गणना के शीर्षस्थ देश के रुप में भारत ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया है।
वर्ष 1915 में बाघों की संख्या एक लाख थी। बाघों की कुछ प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। भारत उन देशों में शामिल है जिसमे बाघों की जनसख्या सबसे अधिक है। भारत, नेपाल, रूस एवं भूटान में पिछले कुछ समय से बाघों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। मनुष्यों द्वारा शहरों और कृषि का विस्तार किया गया, जिसकी वजह से बाघों का 93 फीसदी प्राकृतिक आवास खत्म हो चुका है। बाघों का अवैध शिकार भी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से बाघ अब विलुप्तप्राय श्रेणी में आ चुके हैं। इनका अवैध शिकार उनके चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए किया जाता है। इनका इस्तेमाल परंपरागत दवाइयों को बनाने में किया जाता है। बाघों की हत्या कई बार शान में भी की जाती है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन भी बहुत बड़ी वजह है जिससे बाघों की आबादी कम हो रही है। बाघ वृक्षों पर पंजे के निशान और मूत्र से अपनी सीमा क्षेत्र बनाता है, जो दूसरे बाघों को बताने के लिए होती है। अगर जंगल अच्छा है,उसमें शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या अच्छी खासी है तो वह छोटे इलाके में भी आराम से रह सकते हैं। पूरी दुनिया में बाघों की कई तरह की प्रजातियां मिलती हैं। इनमें 6 प्रजातियां मुख्य हैं, साइबेरियन बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं। बंगाल टाइगर, या पेंथेरा टिगरिस, प्रकृति की सबसे अद्भुत रचनाओं में से एक है। यह बाघ परिवार की एक उप-प्रजाति है और यह भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार एवं दक्षिण तिब्बत के क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके शौर्य, सुंदरता और बलशाली रूप को देखते हुए बंगाल टाइगर को राष्ट्रीय पशु के सम्मान से नवाज़ा गया है। मांस खाने वाले स्तनधारी जीवों में बाघ के कैनाइन दांत सबसे लम्बे होते हैं। यह दांत 4 इंच तक बढ़ सकते हैं जो बब्बर शेर के कैनाइन दांतों से भी बड़े हैं। इन शक्तिशाली जीवों के पास अंदर से बाहर जाने वाले पंजे भी होतें हैं, जो उन्हें चढ़ाई करने में सहायता करते हैं। अन्य जीवों की अपेक्षा बाघों की देखने और सुनने की शक्ति कहीं ज्यादा होती है। इंडोचाइनीज टाइगर बाघ की यह प्रजाति कंबोडिया, चीन, बर्मा, थाईलैंड और वियतनाम में पाई जाती है। इस प्रजाति के बाघ पहाड़ों पर ही रहते हैं। इस वर्ष 2021 में अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का ध्येय वाक्य है “बाघ की उत्तरजीविता हमारे हाथों में है" को ध्यानपूर्वक देखा जाए तो इस विषय पर भारत ने 50 साल पहले चिंतन करना शुरू कर दिया था। बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी को देखते हुए 1973 में एक अधिनियम पारित किया था जिसका नाम प्रोजेक्ट टाइगर है। 1973 में टाइगर रिजर्व क्षेत्रों की संख्या 9 थी किन्तु वर्तमान में इसकी संख्या बढ़कर 50 टाइगर रिजर्ब चुकी है। मध्य प्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य है जहाँ बांधवगढ़, सतपुड़ा, कान्हा,पन्ना, पेंच,संजय डुबरी नामक टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में देश के सबसे ज्यादा 526 बाघ है। इस वर्ष का ध्येय वाक्य “बाघ की उत्तरजीविता हमारे हाथों में है" यह सही मायने में तभी पूरी होगी जब हम “जल, जंगल और जमीन” को बचायेंगे। इसके लिए हम सब को मिलकर प्रयास करना होगा कि वर्षा के जल का संरक्षण करें, जल संरक्षण नित्य नए तरीकों की खोज की जाए। वन्य जीवों और वनौषधियों के संरक्षण के लिए जनजातीय समुदाय के विशिष्ट ज्ञान का आश्रय लिया जाना चाहिए। नदियों और जंगल के नालों के आस-पास रिहायशी बस्तियों के निर्माण प्रतिबंधित होने चाहिए तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण पर बल दिया जाना चाहिए।
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