(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) बनारस के समाजसेवी संत लालबाबा का लंबी बीमारी के बाद जिला चिकित्सालय अनूपपुर में निधन हो गया। वे लगभग 25 वर्ष से अमरकंटक में साधनारत थे। चूंकि वो बाल ब्रम्हचारी थे और वर्षों पूर्व अपना परिवार त्याग कर साधना और समाजसेवा के लिये अमरकंटक और इसके आसपास के क्षेत्र में निवासरत थे। इसलिये उनके निधन उपरान्त उनकी अंत्येष्टि जिला चिकित्सालय प्रशासन के समक्ष बड़ी चुनौती बन गया। लालबाबा के संत होने के कारण यह चिंता स्वाभाविक थी कि यदि उनका अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल ( यद्यपि उन्हे कोरोना की पुष्टि नहीं थी ) के तहत किया जाता तो संत समाज और धर्मावलंबियों में नाराजगी फैल सकती थी। इससे चिंतित चिकित्सालय प्रबंधन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक वीरेन्द्र दाहिया को इसकी सूचना दी। स्वयंसेवकों ने इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ बाबा की अंत्येष्टि नर्मदा तट ,अमरकंटक में की।
वट सावित्री अमावस्या और
सूर्य ग्रहण का अद्भुत संयोग
लालबाबा की साधना उनके संतत्व का ही यह प्रतिफल था कि जब उनका अंतिम संस्कार नर्मदा तट पर वट सावित्री अमावस्या , सूर्य ग्रहण पर्व के दिन हुआ । इस अवसर पर स्वयंसेवकों में प्रमुख रुप से वीरेन्द्र दाहिया,रोशन पुरी, लखन महाराज, दुर्गेश जी,दिलीप शर्मा, धीरेन्द्र द्विवेदी, पंकज मिश्रा, रामेश्वर अग्रवाल, अभिषेक सिंह गोलू, विजय कुमार राठौर, दिनेश साहू, शिवकुमार खैरवार , रामलाल सेन ने अंत्येष्टि मे सहयोग किया। लालबाबा का शेष कर्मकाण्ड हिन्दू रीति रिवाज एवं स्थानीय परंपरा के अनुसार अमरकंटक मे किया जाएगा।
स्वयंसेवकों ने
दिखलाई मानवता
बाबा पिछले छ: महीने से बीमार थे। उनकी खराब तबियत को देखते हुए उन्हे जिला चिकित्सालय में 6 माह पूर्व भर्ती करवाया गया था। अप्रैल में कुछ स्वस्थ होने पर वे अमरकंटक वापस चले गये थे। स्वयंसेवकों ने बीमारी की दशा में उनकी बहुत सेवा सुश्रुवा की। 9 जून को अचानक उनके निधन की सूचना मिलने पर स्वत:स्फूर्त तरीके से स्वयंसेवकों ने अमरकंटक के कुछ वरिष्ठ संतों की अनुमति मिलने पर अंत्येष्टि की।
जनजाति समाज के
स्वयंसेवक ने दी मुखाग्नि
लालबाबा के किसी रिश्तेदार, संबंधी की जानकारी ना होने के कारण संघ के स्वयंसेवकों ने बाबा की अंत्येष्टि का जिम्मा अपने कंधों पर लिया। जनजातीय समाज के स्वयंसेवी युवक रोशन पुरी ने बाबा का अंतिम संस्कार स्वयं करने की इच्छा जाहिर की। उन्होने अपने पिता रामदास पुरी से इस हेतु अनुमति प्राप्त कर नर्मदा तट पर पुरोहित लखन महाराज द्विवेदी के मार्गदर्शन में पंचगव्य स्नान सहित पूरे विधि विधान से बाबा का अंतिम संस्कार किया। बनारस के एक ब्राम्हण संत का अंतिम संस्कार नर्मदांचल के जनजातीय स्वयंसेवक के हाथों प्रारब्ध ने लिख रखा था। सामाजिक समरसता , हिन्दू संस्कृति और सनातन संस्कार का ऐसा समन्वय विरले ही देखने को मिलता है।
सच्चे मायनों
में थे संत
लाल बाबा गर्ग का जन्म बनारस के ब्रा्हण परिवार रामकुमार गर्ग के घर 65 वर्ष पूर्व हुआ था। उन्होंने बनारस से संस्कृत से आचार्य की शिक्षा प्राप्त की। आध्यात्मिक रुझान होने के कारण वे पहले बनारस और फिर अमरकंटक में किसी स्थान पर पिछले 25 वर्ष से कठोर साधना में लीन थे। उन्होंने अमरकंटक में कोई आश्रम, मठ या पक्का निर्माण नहीं करवाया था। संपत्ति के नाम पर मात्र एक झोला, कुछ कपड़े, पुस्तकें तथा एक सायकिल थी। संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ वे शक्ति अनुष्ठान में रुचि रखते थे। अंतिम समय में दुनिया से जाते - जाते भी समाज को मानवता , संवेदना और एकजुटता का संदेश दे गये।
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