हिमांशु बियानी/जिला ब्यूरो
अनूपपुर। (अंचलधारा) छठ पूजा की भक्ति एवं रोनक से पूरे अनूपपुर जिले में एक अलग छटा देखी गई।नहाए खाए के साथ बुधवार से छठ पर्व प्रारंभ हो चुका है गुरुवार को खरना के साथ व्रत का शुभारंभ हुआ।छठ पूजा व्रत में शुक्रवार
को माताओं ने डूबते सूर्य को अर्ध देकर संतान व परिजनों की सुख समृद्धि की कामना की एवं आशीष मांगा।पूरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान सूर्य देव की पूजा अर्चना की।सूर्य उपासना का यह पर्व अगली सुबह उगते सूर्य को अर्ध चढ़ाने के साथ समाप्त होगा। इन दोनों ही पहर(शाम और सुबह) में नदी-तालाबों पर बने घाटों पर कमर तक भरे पानी में माताएं खड़ी होकर सूर्य को नमस्कार करने के साथ धरती पर जीवन देने वाले प्रकृति संसाधन और सूर्य की किरणों से रोशन होने वाली सृष्टि के लिए धन्यवाद देती है
और इसी सृष्टि में अपने परिवार के सदस्यों के सुखमय जीवन, पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति की कामनाओं को लेकर सूर्य का आह्वान करती है। जिसमें उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर वह हमेशा सूर्यदेव की उपासना करती रहेगी कहती है। पर्व में व्रतियों द्वारा विशेष प्रसाद ठेकुआ, चावल के लड्डू, गुजिया, मिठाई सहित मौसमी फल बांस की बनी हुई टोकरी (डाला) में डालकर देवकारी में रखा जाता है। पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और पूजा का अन्य सामान लेकर डाला को घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है।यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सिर के ऊपर की तरफ रखते है।ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को
पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब श्रीकृष्ण द्वारा बताए जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। तब उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला था। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। पूजा के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग, 6 फुट की दूरी , सैनिटाइजर वा मास्क के जैसी सावधानियां अपनाई गई।नगर पालिका एवं प्रशासन ने भी अपनी ओर से अच्छी व्यवस्था कर रखी थी।उत्तर भारतीयों का यह पर्व संतान प्राप्ति व सुख समृद्धि के लिए 3 दिन त्याग व तप कर मनाया जाता है।जिससे स्त्री पुरुष व परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं।
को माताओं ने डूबते सूर्य को अर्ध देकर संतान व परिजनों की सुख समृद्धि की कामना की एवं आशीष मांगा।पूरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान सूर्य देव की पूजा अर्चना की।सूर्य उपासना का यह पर्व अगली सुबह उगते सूर्य को अर्ध चढ़ाने के साथ समाप्त होगा। इन दोनों ही पहर(शाम और सुबह) में नदी-तालाबों पर बने घाटों पर कमर तक भरे पानी में माताएं खड़ी होकर सूर्य को नमस्कार करने के साथ धरती पर जीवन देने वाले प्रकृति संसाधन और सूर्य की किरणों से रोशन होने वाली सृष्टि के लिए धन्यवाद देती है
और इसी सृष्टि में अपने परिवार के सदस्यों के सुखमय जीवन, पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति की कामनाओं को लेकर सूर्य का आह्वान करती है। जिसमें उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर वह हमेशा सूर्यदेव की उपासना करती रहेगी कहती है। पर्व में व्रतियों द्वारा विशेष प्रसाद ठेकुआ, चावल के लड्डू, गुजिया, मिठाई सहित मौसमी फल बांस की बनी हुई टोकरी (डाला) में डालकर देवकारी में रखा जाता है। पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और पूजा का अन्य सामान लेकर डाला को घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है।यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सिर के ऊपर की तरफ रखते है।ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को
पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब श्रीकृष्ण द्वारा बताए जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। तब उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला था। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। पूजा के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग, 6 फुट की दूरी , सैनिटाइजर वा मास्क के जैसी सावधानियां अपनाई गई।नगर पालिका एवं प्रशासन ने भी अपनी ओर से अच्छी व्यवस्था कर रखी थी।उत्तर भारतीयों का यह पर्व संतान प्राप्ति व सुख समृद्धि के लिए 3 दिन त्याग व तप कर मनाया जाता है।जिससे स्त्री पुरुष व परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं।
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