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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र में मनाया गया गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह

(हिमांशू बियानी / जिला ब्यूरो)
अनूपपुर (अंचलधारा) कृषि विज्ञान केंद्र, इंदिरा गॉधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में अध्यक्ष डॉ. एस. के. पाण्डेय के मार्गदर्शन में गाजर घास उन्मूलन जागरुकता सप्ताह मनाया गया। जागरुकता सप्ताह के अन्तर्गत गाजर घास द्वारा होने वाली हानि तथा गाजर घास को नष्ट करने के विषय में जानकारी विभिन्न कार्यक्रमो जैसे- रेडियो टॉक, व्हाट्एप संदेश, यूट्यूब वीडियो, किसान मीटिंग आदि के माध्यम से किसानों को प्रदान की गई।

अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र अमरकंटक द्वारा दिये गए निर्देशों एवं सुझावों के अनुसार सभी विषय वस्तु विशेषज्ञों ने सराहनीय स्तर पर जन जागरूकता अभियान क्रम को आगे बढ़ाया। सूर्यकांत नागरे, विषय वस्तु विशेषज्ञ (शस्य विज्ञान) ने बताया कि- गाजरघास या पार्थेनियम को देश के विभिन्न भागो में अलग अलग नामों से जाना जाता है जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक-चाँदनी, गंधी बूटी आदि। यह खरपतवार 1955 में हमारे देश में आया उसके बाद यह भारत के सम्पूर्ण भाग में फैल गया। वर्तमान में यह खरपतवार लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र मे फैल चुकी है । यह मुख्यतः खाली स्थानो, अनुपयोगी भूमियों, बगीचों, पार्को, स्कूलों, रहवासी क्षेत्रों, सड़कों तथा रेलवे लाइन के किनारो आदि पर बहुतायत में पायी जाती है। पिछले कुछ वर्षो से इसका प्रकोप सभी प्रकार की खाद्यान्न फ़सलों सब्जियों एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है। वैसे तो गाजरघास पानी मिलने पर वर्षभर फल फूल सकती है परंतु वर्षा ऋतु मे इसका अधिक अंकुरण होने पर यह भीषण खरपतवार का रूप ले लेती है। गाजरघास का पौधा 3-4 महीनें में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष मे इसकी 3-4 पीढि़याँ पूरी हो जाती है।
गाजरघास एक बहुत ही दुष्प्रभावी खरपतवार है। गाजरघास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग (डरमेटाइटिस), एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दाना आदि जैसी बीमारियॉ हो जाती है। पशुओ के लिए भी यह खरपतवार अत्यधिक विषाक्त होता है। गाजरघास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियाँ खत्म होने लगती हैं। जैव विविधता के लिए गाजरघास एक बहुत बडा खतरा बनती जा रही है। इसके कारण फसलों की उत्पादकता बहुत कम हो जाती है।
अनिल कुर्मी, विषय वस्तु विशेषज्ञ (पौध सुरक्षा) ने गाजरघास के नियंत्रण के लिए विभिन्न उपाय सुझाये वर्षा ऋतु मे गाजरघास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिए। घर के आस पास एवं संरक्षित क्षेत्रो में गेंदे के पौधे लगाकर गाजरघास के फैलाव व वृद्धि को रोका जा सकता है।अक्टूबर नवम्बर मे अकृषित क्षेत्रो मे प्रतिस्पर्धात्मक पौधे जैसे चकौड़ा (कैसिया सिरेसिया या कैसिया तोरा) के बीज एकत्रित कर उन्हे फरवरी-मार्च में बिखेर देना चाहिए यह वनस्पति गाजरघास की वृद्धि एवं विकास को रोकती है।वर्षा आधारित क्षेत्रों मे शीघ्र बढ़ने वाली फसलें जैसे ढैंचा, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि फ़सलो की बोनी करनी चाहिए।अकृषित क्षेत्रो मे शाकनाशी रसायन जैसे ग्लायफोसेट 1.0 - 1.5 प्रतिशत या मेट्रीब्यूजिन 0.3 - 0.5 प्रतिशत घोल का गाजरघास में फूल आने के पहले छिड़काव करने से यह नष्ट हो जाती है। 20 प्रतिशत नमक घोल का उपयोग फूल आने से पहले करना चाहिए। मेक्सिकन बीटल (जाइग्रोग्रामा बाइकोलोराटा) नामक कीट को वर्षा ऋतु मे गाजरघास पर छोडना चाहिए।फसलों में गाजरघास को रसायनिक विधि द्वारा नियंत्रित करने के लिए खरपतवार वैज्ञानिक की सलाह अवश्यक ले।जगह - जगह संगोष्ठियाँ कर लोगो को गाजरघास के दुष्प्रभाव एवं नियंत्रण के बारे मे जानकारी देकर जागरूक करें ।
दिनांक 21 अगस्त 2020 को अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र अमरकंटक के नेतृत्व में कार्यालय के आस पास गाजरघास उन्मूलन का कार्यक्रम केंद्र के सभी कर्मचरियों के सहयोग से सफलता पूर्वक संचालित किया गया।

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