(मनोज द्विवेदी)
अनूपपुर (अंचलधारा) प्रसिद्ध लेखक एवं विचारक मनोज द्विवेदी का मानना है कि कोरोना के सामुदायिक संक्रमण से देश को बचाने के लिये भारत में लागू लाकडाऊन- 4 को एक सप्ताह शेष हैं। शुक्रवार , 23 मई को 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 6500 से अधिक पाजिटिव मामले सामने आने के बाद देश में अतिरिक्त सतर्कता की आवश्यकता महसूस की जा रही
है। केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों द्वारा अपने राज्यों की जनता को ट्रेन ,बसों से ढोने का काम जिस तेजी से किया जा रहा है , यह उम्मीद है कि एक या दो सप्ताह मे अधिकांश श्रमिक अपने - अपने घर पहुंच चुके होगें। यह देखना होगा कि प्रतिदिन पाजिटिव मामलों की संख्या 5000 - 6000 से ऊपर होने के पीछे बडा कारण अन्य राज्यों से अपने घर पहुंचे ये श्रमिक हैं या कोरोना जांच की प्रक्रिया में आई तेजी है। राहत की बात यह है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या दुनिया के अन्य छोटे - बडे देशों की तुलना में तथा सवा अरब की आबादी के हिसाब से नगण्य है। जबकि हमारे देश के डाक्टर्स ने 40% से अधिक कोरोना पाजिटिव्स की जानें बचा ली हैं। इसे कम संसाधनों वाले भारत की बडी सफलता मानने वालों की कोई कमी नहीं है।
है। केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों द्वारा अपने राज्यों की जनता को ट्रेन ,बसों से ढोने का काम जिस तेजी से किया जा रहा है , यह उम्मीद है कि एक या दो सप्ताह मे अधिकांश श्रमिक अपने - अपने घर पहुंच चुके होगें। यह देखना होगा कि प्रतिदिन पाजिटिव मामलों की संख्या 5000 - 6000 से ऊपर होने के पीछे बडा कारण अन्य राज्यों से अपने घर पहुंचे ये श्रमिक हैं या कोरोना जांच की प्रक्रिया में आई तेजी है। राहत की बात यह है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या दुनिया के अन्य छोटे - बडे देशों की तुलना में तथा सवा अरब की आबादी के हिसाब से नगण्य है। जबकि हमारे देश के डाक्टर्स ने 40% से अधिक कोरोना पाजिटिव्स की जानें बचा ली हैं। इसे कम संसाधनों वाले भारत की बडी सफलता मानने वालों की कोई कमी नहीं है।
दूसरी ओर दो माह लंबे लाकडाऊन के कारण जनता को जान बचाने की भारी कीमत चुकानी पड रही है। उद्योग धंधे बंद होने , आर्थिक गतिविधियों के ठप पड़ने से जीडीपी के माईनस में जाने, मंदी आने, रोजगार में कमी, लूट- चोरी- छीना छपटी की वारदात मे वृद्धि, जनता में हताशा की आशंकाओं के बीच विभिन्न दलों की कुटिल राजनीति कोरोना से युद्ध को हलका बना रही है। अन्य देशों के विपरीत भारत में विपक्ष पर इस महामारी में भी अवसर तलाशने के आरोप लग रहे हैं। छोटी - मोटी खींचतान के बावजूद केन्द्र- राज्यों की सरकारों ने बेहतर समन्वय से कार्य करते हुए जनता को सुरक्षित रखने का हर संभव यत्न जरुर किया है।
मार्च के दूसरे सप्ताह ( जब कोरोना के चलते लाकडाऊन की सुगबुगहाहट शुरु हुई थी ) में भारत मास्क, पीपीई,सेनेटाइजर, कोविड स्पेशियल हास्पिटल्स की जिस कमी से जूझ रहा था, आज उसके उलट इस विषय में भारत एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बन कर ऊभरा है। लाकडाऊन कॆ समय देश की बहुसंख्यक आबादी मास्क , हाथों की धुलाई तथा सोशल डिस्टेशिंग से लेकर इम्यून सिस्टम, व्यायाम, योग के महत्व को आत्मसात कर लिया है। बडी आबादी कोरोना से महायुद्ध में सफलता के त्रि - सूत्र को अच्छी तरह समझ चुकी है।
सवाल है कि क्या लाकडाऊन- 4 के तत्काल बाद जब बाजार, माल्स, फैक्ट्रियों, कारखानों के सशर्त प्रारंभ होनें, ट्रेन- बस- हवाई सेवाओं के शुरु होने की प्रबल संभावना है...तो उसके ठीक पूर्व कोरोना संक्रमण के बढते मामले क्या देश में सहानुभूति, संवेदना, सहयोग का बैक फायर है ? मरकजी जमातियों की बडी लापरवाही / साजिश के खतरों से देश उबर नही सका था कि कुछ राज्यों से भूखे , उतावले मजदूरों की पैदल घरों की ओर वापसी ने भारत के सबसे बडे तबके की असहायता, उसकी मजबूरी, उसकी समझदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं ?
पलायन, बेशक सरकारों की विफलता है लेकिन अपनी , अपने परिवार की , समाज की जान जोखिम में डाल कर , बिना जांच - बिना परीक्षण एक राज्य से दूसरे राज्य , एक शहर से दूसरे शहरों को जाती भीड़ ने लाकडाऊन, सोशल डिस्टेशिंग, धारा - 144 की खुले आम धज्जियां उडा कर रख दीं। अच्छा होता कि इन श्रमिकों की मनोदशा , इनकी माली हालत पर पहले से विचार कर लिया जाता। राज्य एवं केन्द्र सरकार पर इस विफलता का ठीकरा फोडा जा रहा है। न्यूज - व्यूज चैनलों , अन्तर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों की टी आर पी इन श्रमिकों की तस्वीरों, इनकी बेचारगी, मजबूरी के बूते उछाल मारने लगी। कांग्रेस तथा वाम दलों के आई टी सेलों को मानों भरपूर खाद मिल गयी हो।
इन प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी उनके कार्य स्थान / संस्थान तथा उनके गाँव / गृह राज्यों को बेतरह भारी पडने वाली है। मजदूरों की घर वापसी से फैक्ट्रियों, कारखानों, खेतों, कंपनियों का उत्पादन प्रभावित कर रहा है। तो दूसरी ओर अन्य राज्यों / शहरों से कोरोना संक्रमण की पहुंच लगभग प्रत्येक जिले तक हो गयी है। म प्र के शहडोल जैसे छोटे जिले से वायरल हुए स्वास्थ्य विभाग का एक पत्र इसकी बानगी स्पष्ट करता है। जिसमे आने वाले माह में संभावित मरीजों की संख्या
कई गुना बढने की आशंका है। सरकार ने उसी अनुपात में अपनी तैयारी भी पूरी कर ली है।
#गांव स्तर की आम जनता कोरोना के खतरे से अवगत हो चुकी है। गांव में आने वाले प्रत्येक बाहरी व्यक्ति को देखते ही सभी सतर्क हो जाते हैं। एक वाकया मेरे सामने का है...विधानसभा कोतमा के एक जनजातीय बहुल गांव में लाकडाऊन के दौरान मैं अपने एक पत्रकार मित्र के साथ वहाँ की दशा तथा व्यवस्था देखने के उद्देश्य से गया था। मास्क लगा कर , ग्लव्स पहन कर पूरी सावधानी बरते हुए स्कूल के समीप जैसे ही हमने गाडी से उतर कर लोगों से बात करने की कोशिश की, दस से पन्द्रह लोगो ने हमें घेर लिया। उनकी आशंका कोरोना संक्रमण को लेकर बाहरी तत्वों के गाँव में आने को लेकर थी। यद्यपि मास्क थोडा नीचे करते ही कुछ लोगों ने हमें तुरन्त पहचान लिया तथा सामान्य बातें होने लगीं। लेकिन सुकून की बात यह थी कि गाँव स्तर पर भी लोग कोरोना को लेकर जागरुक हो चुके हैं। लाकडाऊन की यह बड़ी सफलता मानी जा सकती है कि इसने देश को बीमारी से लड़ने के लिये आन्तरिक शक्ति प्रदान कर दी है, लोग अपने बचाव के लिये पूरी तरह से तैयार हैं । यहाँ तक कि वो सरकार द्वारा दी जा रही तमाम ढील पर सवाल खडे कर रहे हैं।
तो क्या भारत में कोरोना की पराजय हो चुकी है ? उत्तर हां तथा ना दोनों में है। मोदी सरकार ने राज्यों की मदद से पिछले तीन माह मे कोरोना संक्रमण को सामुदायिक होने से रोके रखा है। संक्रमण की संख्या अनुमान से अधिक होने का केवल तीन कारण है -- 1- विदेश से भारत आए लोग . 2-- मरकजी जमातियों का रवैया तथा 3-- राज्यों से श्रमिकों की अचानक सामूहिक घर वापसी।
पिछले कुछ दिनों मे संक्रमित संख्या प्रतिदिन 5 से 6 हजार बढने के बावजूद मृत्यु दर बहुत कम तथा कोरोना मरीजों के स्वस्थ होने की दर 40 प्रतिशत से अधिक है। यह भारत के लिये शुभ संकेत हैं।
कडक कर्फ्यू की मांग जनता ऐसे ही नहीं कर रही है । आम जनता भी समझ रही है कि कोई भी देश लंबे समय तक लाकडाऊन को लागू नहीं रख सकता । ना ही आर्थिक गतिविधियों, उत्पादन को रोका जा सकता है। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का बयान यह स्पष्ट करता है कि लाकडाऊन के बावजूद बम्पर उत्पादन हुआ है। रोजगार, उत्पादन, अर्थव्यवस्था के लिये कोरोना से जल्दी मुक्ति जरुरी है। जो हाल फिलहाल तो संभव नहीं दिख रहा। ऐसे में जरुरी है कि कोरोना संक्रमितों का इलाज करते हुए कोरोना संक्रमण की चेन पर तगडा वार किया जाए। यह तब होगा जब कोरोना वायरस को कोई संवाहक ( vector) ना मिले। आम तौर पर कोरोना वायरस कुछ घंटे से लेकर अलग - अलग सतह पर कुछ दिन तक जीवित रह सकता है। यदि इस बीच उसे कोई मनुष्य ना मिले तो वह स्वयं नष्ट हो जाएगा। लाकडाऊन में मिली छूट से लोगों की भीड फिर से सडकों पर, बैंकों में, शराब दुकानों में ,सब्जी मण्डी, बाजारों मे बिना सोशल डिस्टेशिंग , बिना मास्क के उतर आई है। अन्य राज्यों/ शहरों से आए छात्र- छात्राएं, श्रमिकों, अन्य लोगों को 14 दिन के होम क्वेरेन्टाईन का उल्लंघन करते देखा जा रहा है। समाज का बडा वर्ग मिली हुई छूट का विरोध कर रहा है। यह मांग हो रही है कि सरकार एक सप्ताह - दस दिन देश को सेना के हवाले करके कडक कर्फ्यू लगाने पर विचार करे। स्थानीय पुलिस ,स्थानीय प्रशासन कई मोर्चे पर एक साथ जूझ रहा है। सेना के साथ एक सप्ताह का कर्फ्यू संक्रमण की श्रंखला को ध्वस्त करने में अत्यंत कारगर हो सकता है। कडक कर्फ्यू इस आशय में कि दूध तथा दवा को छोडकर किसी को कोई छूट ना दी जाए। देश - दुनिया जब महामारी की चपेट में है तो इस विकल्प पर भी सरकार को अवश्य विचार करना चाहिए ।
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