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आजीविका समूह से जुड़कर मोहवती ने स्थापित किया स्वरोजगार


अनूपपुर (अंचलधारा)
जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखंड पुष्पराजगढ़ के एक सामान्य से ग्राम टिटही की सामान्य पारिवारिक महिला मोहवती के जीवन में समूह से जुड़ने के बाद आये बदलाव को देखा जा सकता है। कम उम्र में ही माता पिता ने मोहवती के हाथ पीले कर दिये, ससुराल आयी तो देखा कि पति जयपाल सिंह की आय इतनी ज्यादा और स्थायी नहीं है कि उससे जीवन का गुजारा बिना किसी दुख तकलीफ के हो सके। एक आम गरीब परिवार की महिला की तरह उसका जीवन भी रोजमर्रा की जरूरतो के लिए संघर्ष प्रारंभ हुआ और तलाष शुरू हुयी एक आसरे की एक सहारे की। ग्राम में आजीविका मिषन के अंतर्गत बनाये जा रहे स्व सहायता समूह से जुड़कर मोहवती ने अपने बेहतर भविष्य के सपनों को पूरा करने की दिषा मे एक कदम आगे बढ़ाया।
इंद्रा समूह से जुड़कर मोहवती ने सबसे पहले चार हजार रू ऋण के रूप में लिए और उससे गांव में ही चाय की दुकान शुरू की, इस गतिविधि से बहुत लाभ तो नहीं हुआ, लेकिन कुछ और करने की प्रेरणा जरूर मिली। समूह से लिया गया समस्त ऋण वापस कर मोहवती ने पुनः समूह से दस हजार रू ऋण के रूप में लिए और चाय की दुकान के साथ किराना दुकान भी प्रारंभ कर दी, साथ में पति जयपाल सिंह को जिम्मेदारी सौंपी और दोनों मिलकर गतिविधि संचालित करने लगे। धीरे धीरे गतिविधि से फायदा होने लगा और लाभ होते देख दोनों पति पत्नि और मेहनत से जुट गये। इसके बाद मोहवती ने अपने सिलाई के कौषल को व्यवसाय में बदलते हुए पुनः समूह से पांच हजार रू ऋण लेकर सिलाई का काम प्रारंभ कर दिया।
आजीविका समूह से वित्त पोषित तीनों गतिविधियों से परिवार की आय पर्याप्त होने लगी, आय बढ़ने से टूटे फूटे घर की मरम्मत करवाकर रहने लायक बनाया, मोटर सायकल और टेलीविजन भी खरीद लिया। हंसते हुए वह बताती हैं कि प्रतिमाह उन्हें इन गतिविधियों से कम से कम बारह से तेरह हजार रू की आमदनी हो जाती है, जिससे हमारी सामान्य जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं और कुछ बचत भी हो जाती है।
मोहवती कहती हैं कि इस गांव में यदि आजीविका समूह नहीं होता तो शायद मेरे परिवार की जिंदगी भी दूसरों के यहां मजदूरी करते और साहूकार से ऋण लेते ही बीतती। समूह ने सिर्फ मेरी परिवार की आजीविका को संवहनीय बनाया है बल्कि समाज में सम्मान के साथ जीने का अवसर भी प्रदान किया है।
आज मोहवती सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुयी है बल्कि वह अन्य सामाजिक कार्यों में भी बढ़चढ कर भाग लेने लगी है तथा गांव की अन्य महिलाओं को कुछ करने की प्रेरणा देती हैं। कहा जा सकता है कि समूह के माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति से सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव का एक प्रतीक बन गयी हैं मोहवती।

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