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आरटीओ विभाग बना मूकदर्शक बस यात्रियों को दिया जा रहा फर्जी टिकिट आखिर कौन लचर व्यवस्था का जिम्मेदार

 

(हिमांशू बियानी/जिला ब्यूरो)

अनूपपुर (अंंचलधारा) जिले भर में यात्रियों के लिए चलने वाली बसों में टिकट के नाम पर कागज का टुकड़ा पकड़ाया जा रहा है।अगर आप किसी भी बस में यात्रा कर रहे हो टिकिट आपका एक ही रहेगा।ऐसे में आपके सामान को यदि कुछ नुकशान होता है या वहां दुर्घटना होती है तो आप टिकट होने के बावजूद यह दावा नहीं कर पाएंगे की आपने इसी बस में यात्रा की थी।यह काम धड़ल्ले से हो रहा है और परिवहन इंस्पेक्टर मूकदर्शक बनकर इसे चलने दे रहे है।इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।अनूपपुर बस स्टेण्ड से रोजाना लगभग 200 बसे गुजराती है।इनमे रोजाना 8000 से 10000 यात्री यात्रा करते है।बसे भले ही 200 हो लेकिन आप किसी भी बस का टिकिट लेंगे तो आपको एक जैसा ही मिलेगा।इस टिकिट में बस सर्विस प्रोवाइडर का नाम,बस का क्रमांक,यात्रा की दूरी,बस का किराया तक नहीं लिखा रहता है।यह केवल बेहद छोटा सा टुकड़ा होता है जो यात्रियों से रुपये लेने के बदले थमा दिया जाता है।यहाँ तक की बस स्टैंड अनूपपुर सहित जिले भर के किसी भी बस स्टैंड में किसी भी तरह की किराया सूची भी चस्पा नहीं रहती है।इस कारण यात्रा करने वाले यात्रियों से मनमाना किराया वसूला जाता है चूँकि किराया प्रिंट नहीं होता है इसलिए हाथ से घसीटा राइटिंग में जो कुछ भी लिख दिया वही राशि देनी होती है।
                  बस स्टैंड पर आने वाली लगभग एक दर्जन से अधिक बसों के टिकिट यात्रियों से लेकर उनकी जाँच की गई तो पता चला की सभी टिकिट एक जैसी है शहडोल की ओर से आने वाली बस से उतरे गोपाल सिंह ने जब पड़ताल कर रही टीम को बस की टिकिट बताया तो उसमे कही पर भी बस का नंबर या बस सर्विस का नाम नहीं लिखा था।इसमें हाथ से घसीटा राइटिंग में लिखा था जो की स्पष्ट नहीं था।इसी तरह से कोतमा मनेंद्रगढ़ की ओर से आई एक बस में आये दम्पति का एक बैग बस स्टेण्ड अनूपपुर में छूट गया था।थोड़ी देर बाद याद आने पर बस स्टेण्ड पहुंचने पर बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गई थी और दूसरे दिन बैग न मिलने की बात बताई। टिकिट पूछने पर उन्होंने टिकिट दिखाई जो सभी बसों की तरह ही हूबहू थी,कोई भी अंतर टिकिट में नहीं दिखाई दिया जिससे वो कोई शिकायत कर सके।अमरकंटक की ओर से आने वाली बसों में भी हालत ऐसी ही थी कुछ बसों में तो सिर्फ किराया बस लिया जाता है टिकिट तो यात्रियों को दी ही नहीं जाती है।
              दरअसल कोई भी बस संचालक अलग से अपनी टिकिट बुक नहीं छपवाते है,जिले में संचालित होने वाली बसों में दी जाने वाली टिकिट आसानी से बाजार से 30 रूपए में पूरी टिकिट बुक मिल जाती है सभी बस ऑपरेटर एक ही बुक खरीदकर इसी में से टिकिट फाड़ कर हाथ में मनमाने अंक लिखकर यात्रियों को थमा देते है।किराया भी अपने मन से घसीटा राइटिंग में लिख देते है जिसे पढ़ पाना बेहद ही मुश्किल रहता है। 
         यात्रियों के लिए जिले भर के किसी भी बस स्टेण्ड पर कही भी किराया सूची चस्पा नहीं है जिस दीवार पर किराया सूची रहती है वह पर तरह-तरह के विज्ञापनों के पोस्टर चस्पा है तो कही पर पेंट कर दिए गए है। बसों के भीतर भी किराया सूची चस्पा नहीं है।जिससे यात्रा करने वाले यात्रियों से मनमाने पैसे बस संचालक वसूल रहे है। 
        जब मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम द्वारा यात्रियों के यात्रा के लिए बस संचालित होती थी तो उस समय पर उन बसों की टिकट पर पूरी जानकारी प्रिंट की रहती थी।टिकिट में बस का क्रमांक,यात्रा की दुरी,समय के साथ पैसे भी स्पस्ट रूप से दिखाई देते थे। किन्तु आज निजी बस संचालको के मनमाने रवैये से यात्रियों को ठगा जा रहा है।

इनका कहना है-

मोटर व्हीकल एक्ट के तहत टिकट देने का प्रावधान है अगर टिकट में बस सर्विस क्रमांक, यात्रा की दूरी, पैसे स्पष्ट नहीं दिए जा रहे है तो मैं जांच करवा लेता हूं।

रामसिया चिकवा
आरटीओ अधिकारी अनूपपुर

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